Holika Dahan 2025 Time Muhurat: फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि पर 13 मार्च को होलिका दहन होगा. इस साल होली का पर्व शुक्रवार 14 मार्च को मनाया जाएगा. होली के एक दिन पहले होलिका दहन का महत्व दोगुना होता है. इस दिन होलिका दहन की अग्नि नकारात्मक ऊर्जा का नाश करती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है. होलिका दहन
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
13 मार्च को होलिका दहन है, इसी दिन शाम को होलिका दहन किया जाता है लेकिन 13 मार्च को भद्रा की शुरुआत शाम 06 बजकर 57 मिनट से होगी और इसका समापन रात 10 बजकर 22 मिनट पर होगा.
होलिका दहन के लिए करीब 1 घंटे का शुभ मुहूर्त है. होलिका दहन के लिए 13 मार्च को रात 11 बजकर 26 से देर रात 12 बजकर 30 मिनट का समय उत्तम है.
होलिका दहन पूजा विधि
- होलिका दहन वाले स्थान पर लकड़ियां, उपले और अन्य जलाने वाली चीजों को एकत्रित किया जाता है.
- इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त पर विधिवत रूप से पूजन करते हुए होलिका में आग लगाई जाती है.
- होली की रात होलिका के पास और किसी मंदिर में दीपक जलाएं. होली दहन के समय परिवार के सभी सदस्यों को होलिका की तीन या सात परिक्रमा करनी चाहिए.
- होलिका दहन के समय होलिका में नारियल, अनाज, गोबर के कंडे और पूजन सामग्री डाल देनी चाहिए.
- होलिका की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत की तीन, पाँच अथवा सात माला बाँधी जाती हैं. फिर कलश के जल को होलिका के समक्ष अर्पित कर दें.
होलिका दहन कथा
प्रह्लाद का पिता हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु का शत्रु था. वह अपने पुत्र द्वारा भगवान विष्णु की भक्ति करने के घोर विरोधी था. जब प्रह्लाद ने हिरण्यकशिपु की आज्ञा मानने को अस्वीकार कर दिया, तो हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन राक्षसी होलिका को प्रह्लाद की हत्या करने का आदेश दिया. होलिका के पास अग्नि से सुरक्षित रहने हेतु भगवान ब्रह्मा द्वारा उपहार में दी गयी दिव्य ओढ़नी थी.
होलिका ने प्रह्लाद को विशाल अग्नि में जलाकर मारने की योजना बनाई होलिका ने प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठ गयी, किन्तु भगवान विष्णु की असीम कृपा से, होलिका के स्थान पर दिव्य ओढ़नी ने प्रह्लाद को अग्नि से सुरक्षित बचा लिया.
लोककथाओं के अनुसार, अग्नि दहन होने पश्चात प्रह्लाद ने भगवान विष्णु का नाम जपना आरम्भ कर दिया था. जब भगवान विष्णु ने अपने प्रिय भक्त को सङ्कट में देखा, तो उन्होंने होलिका के ऊपर से ओढ़नी को अपने भक्त प्रह्लाद पर उड़ाने के लिये वायु के एक झोंके को आदेश दिया. इसीलिये राक्षसी होलिका विशाल अग्नि में भस्मीभूत हो गयी और भगवान विष्णु की कृपा तथा मायावी ओढ़नी के कारण प्रह्लाद को कोई क्षति नहीं हुई.
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