Kaal Bhairav Jayanti 2024: ब्रह्मा से नाराज शिव बने काल भैरव, भोले का भयंकर रुप देख देवी देवताओ

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Kaal Bhairav Jayanti 2024: हिंदू धर्म (Hindu Dharm) में काल भैरव जयंती के दिन का बहुत ही आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है. इस दिन लोग व्रत रखकर काल भैरव भगवान की पूजा करते हैं. काल भैरव को भगवान शिव का सबसे उग्र अवतार माना जाता है. काल भैरव का काले कुत्ते पर सवार होते हैं. मान्यता है कि काल भैरव शिव और पार्वती के मंदिरों की देखरेख करते हैं.

पंचांग (Panchang) के अनुसार काल भैरव जयंती हर साल मार्गशीर्ष या अगहन महीने (Aghan 2024) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. इस साल 2024 में काल भैरव जयंती 23 नवंबर 2024 को है. आइये जानते हैं कैसे हुई थी भगवान शिव (Lord Shiva) के इस उग्र अवतार की उत्पत्ति.

काल भैरव की उत्पत्ति कैसे हुई (Kaal Bhairav Katha in Hindi)

शिव पुराण (Shiv Purana) से लेकर स्कंदपुराण में काल भैरव की उत्पत्ति की कथा का वर्णन मिलता है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों में इस बात को लेकर बहस हो रही थी, कि तीनों में सर्वश्रेष्ठ कौन है. इस बात का निर्णय करने की जिम्मेदारी त्रिदेव ने सभी देवताओं की दी. सभी देवताओं ने अपने-अपने मत रखें. जिससे शिवजी और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) तो संतुष्ट हो गए लेकिन ब्रह्मा जी ने असंतुष्ट होकर शिवजी को बुरा-भला कह दिया.

शिवजी ने देखा कि सभी देवताओं की उपस्थिति में ब्रह्मा उन्हें बुरा-भला कह रहे हैं, जिससे उन्हें बहुत क्रोध आ गया. भगवान शिव के इसी क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई. कालभैरव का रुद्र अवतार देख सभी देवता भयभीत हो गए और शिव से शांत रहने की विनती करने लगे. लेकिन कालभैरव ने क्रोध से ब्रह्मा जी पांच मुख में एक मुख को काट दिया.

इसके बाद ब्रह्मा जी ने शिवजी के इस रौद्र अवतार काल भैरव से माफी भी मांगी और वे शांत हो गए. लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप भी लग चुका था और उन्हें इसका दंड भी भोगना पड़ा. तब शिवजी ने उन्हें तीर्थ भ्रमण का सुझाव दिया और काल भैरव धरतीलोक पर तीर्थ भ्रमण के लिए निकल पड़े.

काल भैरव वर्षों तक धरतीलोक पर भिखारी के रूप में भटकने लगे. आखिरकार शिव की नगरी काशी में पहुंचकर उनका दोष सप्ताह हुआ. दंड भोगने के कारण कालभैरव को दंडपाणी भी कहते हैं.

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