‘दुनिया की फैक्ट्री’ चीन के सामने कहां खड़ा है भारत? मैन्युफैक्चरिंग में कौन शेर तो कौन सवा शेर

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Last Updated:January 10, 2025, 16:08 ISTचीन 31% वैश्विक उत्पादन के साथ शीर्ष पर, भारत केवल 3% पर. भारत सेवाओं में मजबूत, पर विनिर्माण में कमजोर बुनियादी ढांचा, कम उत्पादकता और धीमी मंजूरी बाधाएं है. सरकार “मेक इन इंडिया” और पीएलआई से बदलाव लाने की कोशिश कर रही है.भारत का ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट में शेयर 3 फीसदी है. हाइलाइट्सचीन का वैश्विक उत्पादन में 31% हिस्सा है.भारत का वैश्विक उत्पादन में केवल 3% हिस्सा है.भारत सरकार ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा दे रही है.नई दिल्ली. वैसे तो भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन एक्सपोर्ट्स की बात की जाए तो यह सर्विस प्रधान देश है. भारत के एक्सपोर्ट में सबसे ज्यादा हिस्सा सर्विसेज का ही है. स्टेटिस्टा की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2021-22 में सिर्फ आईटी सेक्टर में 125 अरब डॉलर की सर्विस एक्सपोर्ट की. इसके अलावा अन्य सेक्टर्स के लिए भी करीब 59 अरब डॉलर की सेवाओं का निर्यात किया गया. अगर इन दोनों को मिला दिया जाए तो किसी भी अन्य गुड्स का एक्सपोर्ट इनके आसपास भी नहीं रहा. लेकिन मैन्युफैक्चरिंग के मोर्चे पर भारत की कहानी उतनी अच्छी नहीं दिखती. बेशक इसमें सुधार हो रहा है लेकिन चीन से मैन्युफैक्चरिंग के मामले में सीधी टक्कर लेने में देश अभी काफी पीछे है.

इस बात में कितनी सच्चाई है इसका अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि 2022 में दुनिया में जितनी मैन्युफैक्चरिंग हुई उसका 31 फीसदी अकेले चीन से आया. चीन को इसीलिए दुनिया की फैक्ट्री कहा जाता है. इस मामले में दूसरे स्थान पर यूएस रहा लेकिन वह भी चीन से कोई थोड़े अंतर से पीछे नहीं है. वर्ल्ड मैन्युफैक्चरिंग में यूएस की हिस्सेदारी 16 फीसदी रही जो चीन से लगभग आधी है. यूएस के बाद जापान और जर्मनी हैं फिर कहीं भारत का नंबर आता है. ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट में भारत का शेयर 2022 में मात्र 2.9 फीसदी था. कुछ जानकारों के मुताबिक, अब यह बढ़कर 3 फीसदी हो गया. इसके बावजूद भारत मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी के मामले में चीन से 10 गुना पीछे है.

सर्विस प्रधान देश भारतभारत का निर्यात प्रमुख रूप से एक सर्विस प्रधान है. भारत से सबसे ज्यादा निर्यात आईटी सेक्टर से जुड़ी सेवाओं का होता है. 2021-22 में भारत ने आईटी सेक्टर में कुल 125 अरब डॉलर की सर्विसेज का निर्यात किया. अन्य क्षेत्रों की सेवाओं के निर्यात को जोड़ दिया जाए तो नंबर बढ़कर 280 अरब डॉलर के करीब पहुंच जाता है. भारत ने इस दौरान पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, पर्ल्स व अन्य बहुमूल्य स्टोन्स, ट्रांसपोर्ट और मशीनरी आदि को मिलाकर भी कुल 212 अरब डॉलर के ही गुड्स का निर्यात किया. यूबीसी सिक्योरिटीज इंडिया की मुख्य भारतीय अर्थशास्त्री तनवी गुप्ता जैन ने सीएनबीसी से बातचीत में बताया है कि भारत के निर्यात का 50 फीसदी केवल सर्विस सेक्टर से आता है. उन्होंने कहा है, “मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी केवल 13 फीसदी है. अगर 13 फीसदी को बढ़ाकर 25 फीसदी भी कर दिया तो भी चीन की बराबरी नहीं हो पाएगी.”

क्या भारत कभी देगा मुकाबला?जैन कहती हैं कि अभी ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट में भले ही भारत की हिस्सेदारी केवल 3 फीसदी हो लेकिन अगले 1 दशक में इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. उनका कहना है कि भारत अगला चीन बन सकता है लेकिन इसकी राह में 3 मुख्य रोड़े हैं. बकौल जैन, “भारत के साथ सबसे बड़ी दिक्कत इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी हुई है, खासतौर पर कनेक्टिविटी और अत्यधिक अस्थिर बिजली आपूर्ति. दूसरी समस्या लेबर प्रोडक्टिविटी और तीसरी समस्या धीमी नियामकीय प्रक्रियाएं है.मुझे लगता है कि भारत को अपनी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए इन तीन मोर्चों पर अच्छा काम करना होगा. “

मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए क्या कर रहा भारतविनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए भारत तेजी से काम कर रहा है. चीन के खिलाफ बनते सेंटीमेंट्स का भारत को फायदा मिल रहा है. भारत सरकार के मेक इन इंडिया इनिशिएटिव के जरिए वैश्विक कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित किया जा रहा है. प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम के जरिए कंपनियों को भारत में विनिर्माण करने पर मौद्रिक लाभ दिए जा रहे हैं. पीएलआई का विस्तार करते हुए इसे 16 अलग-अलग सेक्टर्स में लागू कर दिया गया है. इसके बजट को भी बढ़ाकर 16 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है. इसके अलावा देशभर में कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए एक्सप्रेसवे, हाईवे, रेलवे और जलमार्गों का भी विस्तार किया जा रहा है.

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