श्रीलंका में बौद्ध भिक्षू को इस्लाम पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर मिली सख्त सजा, जानिए क्या

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Sri Lanka news: कोलंबो मजिस्ट्रेट अदालत ने 2016 में इस्लाम को लेकर की गई टिप्पणियों के मामले में एक कट्टरपंथी श्रीलंकाई बौद्ध भिक्षु को गुरुवार (9 जनवरी) को 9 महीने के जेल की सजा सुनाई है. कोलंबो के एडिशनल मजिस्ट्रेट पासन अमरसेना ने भिक्षु गैलागोडा अथथे ज्ञानसारा (49) पर 1,500 रुपये का जुर्माना भी लगाया. पिछले साल मार्च में ज्ञानसारा को हाई कोर्ट ने 4 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी. 

ज्ञानसारा को पांच महीने बाद अपील न्यायालय के जरिये रिहाई मिल गई थी. भिक्षु (जो 2012 से मुस्लिम अल्पसंख्यक विरोधी अभियान चला रहा था) को मार्च 2016 में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में की गई टिप्पणियों के लिए आरोपित किया गया था. आज ज्ञानसारा को जो सजा सुनाई गई वह अदालत में उपस्थित न होने को लेकर थी. उच्च न्यायालय ने कहा कि ज्ञानसारा ने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से धार्मिक और सांप्रदायिक विघटन पैदा किया था. ज्ञानसारा को 2018 में अदालत की अवमानना ​​के लिए गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उसे राष्ट्रपति से क्षमादान मिल गया था.   

श्रीलंका में मुसलमान आबादी और सामाजिक स्थिति
श्रीलंका में मुसलमानों की आबादी 22 मिलियन है, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 10% है. इस्लाम श्रीलंका में तीसरा सबसे बड़ा धर्म है. यहां के अधिकांश मुसलमान तमिल भाषा बोलते हैं. हालांकि, उनकी सामाजिक और राजनीतिक स्थिति अक्सर चर्चा का विषय बनती है.

गलागोदात्ते ज्ञानसारा विवादित बौद्ध भिक्षु
गलागोदात्ते ज्ञानसारा एक प्रमुख बौद्ध भिक्षु, जिन्हें चार साल की सजा सुनाई गई थी. वो श्रीलंका की राजनीति में एक विवादित व्यक्ति हैं. ज्ञानसारा अपने कट्टर बौद्ध विचारों के लिए जाने जाते हैं और श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के करीबी माने जाते हैं.

गोटाबाया राजपक्षे और ज्ञानसारा के संबंध
पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने ज्ञानसारा को धार्मिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए एक पैनल का प्रमुख बनाया, जो देश की कानूनी प्रणाली में सुधार के लिए जिम्मेदार था. इस कदम से उनकी भूमिका और प्रभाव को लेकर कई सवाल उठे हैं. विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदायों के बीच.

श्रीलंका में मुसलमानों के लिए चुनौतियां
श्रीलंका के मुसलमानों को अक्सर सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. देश में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति के कारण, मुसलमानों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं.

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