डर गई हैं ममता! बवाल से बेहाल हुईं CM, बोल रही हैं राष्ट्र विरोधी बातें

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मोदी बंगाल को जलाने की कोशिश कर रहे हैं… बंगाल जला तो बिहार, झारखंड, ओड़िशा, असम और नार्थ ईस्ट भी जलेगा… मोदी की कुर्सी छीन लेंगे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान की यह शब्दावली है. आरजी कर अस्पताल में डाक्टर रेप-मर्डर मामले में प्रदर्शन से परेशान ममता इसे बंगाल के खिलाफ साजिश करार देने की कोशिश कर रही हैं.

कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में महिला डाक्टर से रेप-हत्या की घटना के बाद से पश्चिम बंगाल उबल रहा है. जूनियर डाक्टर पखवाड़े से अधिक समय से हड़ताल पर हैं. राजनीतिक और छात्र संगठनों समेत दूसरे संगठन भी अलग-अलग तरीके से रेप-हत्या की घटना का प्रतिवाद कर रहे हैं. दुर्गा पूजा का आयोजन करने वाले क्लबों ने सरकारी मदद लेने से मना करना शुरू किया है. बंगाल की इस लोमहर्षक घटना पर राज्यपाल तो गुस्से में हैं ही, राष्ट्रपति ने भी इसकी आलोचना की है. इस मामले में भी ममता केंद्र की नाकामी साबित करने पर तुली हैं. ममता और उनके भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी अब यह कहने लगे हैं कि रेप के दोषियों को फांसी की सजा हो. अभिषेक 15 दिनों में तो ममता 50 दिनों के अंदर अदालत से दोषियों को सजा देने की मांग कर रही हैं. ममता ने पीएम को इस बाबत पत्र लिखा है. ममता ने इसके लिए अपने स्तर पर कानून बनाने की बात भी कही है. संभव है कि विधानसभा में इससे संबंधित बिल सरकार इसी सत्र में लाए. केंद्र सरकार ने शीघ्र न्याय के उनकी मांग पर सफाई देकर उनकी मंशा पर ही सवाल खड़ा कर दिया है. केंद्र ने कहा है कि इसके लिए सभी राज्यों में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की स्वीकृति दी गई है, लेकिन बंगाल उदासीन रहा. भाजपा के बंद के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई भिड़ंत और राष्ट्रपति के बयान के बाद ममता बनर्जी तिलमिला गई हैं.

ममता के बयान में दिख रही तिलमिलाहट


ममता बनर्जी डॉक्टर रेप-हत्या के खिलाफ लगातार चल रहे प्रदर्शनों से तिलमिला गई हैं. उनकी तिलमिलाहट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें इसमें बंगाल को जलाने की साजिश नजर आ रही है. आश्चर्य यह कि ममता को इस साजिश में पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरा दिखता है. सच यह है कि अभी तक केंद्र सरकार ने इस मामले या इस तरह के बंगाल में दूसरे मामलों पर भी अपनी ओर से कोई कार्रवाई नहीं की है. सीबीआई जांच भी हाईकोर्ट के निर्देश पर ही हो रही है. मोदी से इस मामले को जोड़ने का कोई औचित्य नहीं. रही बात भाजपा के प्रदर्शन की तो विरोध जताने वालों में भी अकेले भाजपा नहीं है. वामपंथी छात्र संगठन और पार्टियों ने विरोध प्रदर्शन किया. कांग्रेस के राहुल गांधी ने तो सबसे पहले इसकी निंदा की थी. इसी क्रम में भाजपा ने भी विरोध प्रदर्शन किया. राष्ट्रपति राष्ट्र का सर्वोच्च पद है. राष्ट्रपति के पास भी अपना सूचना तंत्र है. उन्हें जो जानकारी मिली, उस आधार पर उन्होंन बयान दिया. इसे चिंताजनक बताया. फिर इसमें बंगाल को जलाने की साजिश ममता को कैसे दिख गई! उन्होंने बंगाल की इस घटना को बांग्लादेश से जोड़ दिया. धमकी तो ऐसे दी, जैसे धुर विरोधी पाकिस्तान के नेता भारत के संबंध में जहर उगलते रहते हैं. ममता के बयान की शब्दावली और भाव देखें तो बात समझ में आ जाएगी कि उनकी तिलमिलाहट का स्तर कहां तक पहुंच चुका है. उन्होंने कहा- बंगाल जला तो बिहार, यूपी और असम भी जलेंगे. आग दिल्ली तक पहुंच जाएगी. मोदी की कुर्सी गिर जाएगी.

पहली बार दलीय भाव छोड़ जागा बंगाल

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पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले संदेशखाली का प्रकरण सामने आया था. इलाके के कुख्यात और संदेशखाली की घटनाओं के किंगपिन शाहजहां शेख तक हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सीबीआई पहुंची. तब भी ममता तिलमिला गई थीं. उन्होंने सीबीआई जांच रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर भी दस्तक दी. हालांकि उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिला. शाहजहां पर आरोप था कि उसके लोग हिन्दू महिलाओं को रात में बैठक के बहाने बुलाते हैं और उन्हें रोक कर उनके साथ गलत काम करते हैं. उसके और भी काले कारनामे बाद में जांस से उजागर हुए हैं. इसके बावजूद बंगाल में ऐसा उबाल नहीं आया था, जैसा इस बार आरजी कर अस्पताल कांड के बाद आया है. बिना किसी भेदभाव के हर दल के लोग इससे बेहद खफा हैं. यहां तक कि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के कई नेता भी इसके विरोध में बयान दे चुके हैं. राज्य सरकार के सम्मान लौटाए जा रहे हैं. पर, ममता को इसमें भाजपा और नरेंद्र मोदी की साजिश नजर आती है.

ममता देती रही हैं संघीय ढांचे को चुनौती



ममता बनर्जी पहले से ही बाहरी-भीतरी (बंगाली-गैर बंगाली) की बात करती रही हैं. राज्यपाल से टकराव तो उनके लिए रूटीन की बात है. विश्वविद्यालयों में वीसी की नियुक्ति पर राज्यपाल के अधिकार छीनने की उन्होंने कोशिश की. चुनाव बाद हिंसा में विरोधियों को निशाना बनाने का मामला भी सीबीआई के पास पहुंचा था. बांग्लादेश में सत्ता पलट के दौरान हुई हिंसा पर भी ममता ने भारत सरकार की पालिसी के खिलाफ बयान दिया था. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को बंगाल में वे शरण देंगी. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और नागरिकता पंजी (NRC) के खिलाफ ममता बोलती रही हैं. इस बार तो इससे भी आगे निकल गई हैं. उन्होंने कोलकाता की एक रैली में कहा- ‘कुछ लोगों को लगता है कि यह बांग्लादेश है. मुझे बांग्लादेश से प्यार है. वे हमारी तरह बात करते हैं और हमारी संस्कृति भी एक जैसी है. लेकिन बांग्लादेश अलग देश है और भारत अलग देश है.‘ इसके साथ ही उन्होंने कहा- ‘मोदी बाबू कोलकाता के रेप-मर्डर केस में अपनी पार्टी का इस्तेमाल करके बंगाल में आग लगवा रहे हैं. अगर आपने बंगाल को जलाया तो असम, नॉर्थ-ईस्ट, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओड़िशा और दिल्ली भी जलेंगे. हम आपकी कुर्सी गिरा देंगे.’ राजनीतिक लड़ाई अपनी जगह है और इसके तरीके भी अलग हैं. पर, जब कोई संवैधानिक पद पर बैठा हो, तो उसके मुंह से ऐसी बात को किस रूप में लेना चाहिए, यह बताने की जरूरत नहीं. नरेंद्र मोदी पीएम हैं और ममता बनर्जी सीएम. सबके कामकाज की सीमा निर्धारित है. ममता अपनी सीमा लांघ रही हैं. बंगाल भाजपा के अध्यक्ष सुकांत मजुमदार ने इस मुद्दे को उठाया भी है. उन्होंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री को पत्र भेज कर इसे राष्ट्रद्रोह बताया है. असम के सीएम हिमंता विश्वसरमा को भी ममता के बयान पर घोर आपत्ति है.

सुविधानुसार ममता का बदलता रहा है स्टैंड



राजनीति में अवसर का लाभ लाभ उठाने के लिए लोग एक ही मुद्दे को समय-समय पर अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हैं. बंगाल के संदर्भ में देखें तो ममता बनर्जी इस मामले में सब पर भारी पड़ेंगी. वर्ष 2005 में लोकसभा में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाया था. तब बंगाल में लेफ्ट फ्रंट की सरकार थी. ममता मानती थीं कि बांग्लादेशी घुसपैठिए वाम दलों के वोटर हैं. उन्होंने लोकसभा में इसे लेकर अपना गुस्सा उतारा था. अब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने नागरिकता का कानून लागू कर दिया तो ममता को पसंद नहीं. वे कहती हैं कि जीते जी बंगाल में इसे लागू नहीं होने देंगी. वे यह भी कहती हैं कि बंगाल में कोई घुपैठिया नहीं है. अब उन्हें घुसपैठिए नजर नहीं आते. इसलिए कि वे उनके वोटर बन गए हैं. अब तो वे बांग्लादेश के और घुसपैठियों को शरण देने की बत करती हैं.

ममता को सता रहा राष्ट्रपति शसन का भय



ममता की बदहवासी दर्शाती है कि वे किसी अज्ञात भय से परेशान हैं. उन्हें लगता है कि सरकार की नाकामियां गिना कर कहीं राष्ट्रपति शासन लागू न हो जाए. इस तरह की मांग विपक्षी पार्टियों के नेता तो पहले से ही कर रहे हैं. खासकर 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से. भाजपा की बंगाल बढ़ती पैठ पहले से ही उन्हें परेशान किए हुए है. टीएमसी नेताओं के अलग-अलग मामलों में उलझते जाने, सीबीआई-ईडी द्वारा उधेड़ी जा रहीं भ्रष्टाचार की परतें और ऊपर से रेप जैसी घटना ने ममता को मानसिक तौर पर परेशान कर रखा है. वे भी समझती होंगी कि उनकी नाकामियों की फेहरिस्त लगातार लंबी होती जा रही है, जो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए पर्याप्त है. ज्यादा संभावना है कि ममता इससे घबरा कर उल-जुलूल बयान पर उतर आई हैं.

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