आखिर पंडित नेहरू की कैबिनेट से अंबेडकर ने इस्तीफा क्यों दिया था?

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Bhimrao Ambedkar Resign from Nehru;s Cabinet: अंबेडकर. अंबेडकर और अंबेडकर… देश की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से सिर्फ एक ही नाम छाया हुआ है. बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का. गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में संविधान पर बहस के दौरान बाबा साहब अंबेडकर को लेकर एक बयान दिया, जिसके बाद पूरा विपक्ष भड़क गया और एक सुर में कहने लगा कि गृहमंत्री अमित शाह ने संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का अपमान किया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी दखल दिया और सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट लिखकर कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि कांग्रेस ने कई साल तक डॉक्टर अंबेडकर का अपमान किया है. अब ये तो हो गई राजनीतिक बात. आरोप-प्रत्यारोप की बात, लेकिन एक तो तथ्य जगजाहिर है और वो है कि जब जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे तो उनकी कैबिनेट में बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कानून मंत्री थे, लेकिन उन्होंने नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. इस इस्तीफे की असली वजह क्या थी, आज आपको विस्तार से बताते हैं. 
हिंदुओं को लेकर कायदे कानून बनाए जाने थे
अगर एक लाइन में अंबेडकर के इस्तीफे की असली वजह बताई जाए तो वो था हिंदू कोड बिल, जिसे संसद से पारित नहीं करवाया जा सका और इसके विरोध में देश के पहले कानून मंत्री बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव अंबेडकर ने 27 सितंबर 1951 को नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया, लेकिन ये कहानी महज एक लाइन की नहीं है. इस कहानी की शुरुआत होती है 11 अप्रैल 1947 से. तब से जब भारत आजाद भी नहीं हुआ था, लेकिन आजाद भारत के लिए संविधान बनाने वाली संविधान सभा अस्तित्व में आ चुकी थी. 11 अप्रैल 1947 को अंबेडकर ने संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल का प्रस्ताव रखा. इसमें हिंदु परिवारों को लेकर कुछ कायदे-कानून बनाए जाने थे, जिनमें मोटा-मोटी बात ये थी कि किसी परिवार के पुरुष की मृत्यु के बाद संपत्ति में उसकी विधवा को, उसके बेटे को और उसकी बेटी को समान अधिकार दिया जाए. साथ ही हिंदू पुरुषों को एक से ज्यादा शादी पर रोक और महिलाओं को भी तलाक के अधिकार की बात थी.
कानून का होता रहा विरोध 
तथ्य बताते हैं कि इस मुद्दे पर पंडित नेहरू अंबेडकर के साथ थे, लेकिन संविधान सभा के कुछ लोगों की आपत्ति के बाद इसे 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया. 26 नवंबर 1949 को जब भारत का संविधान बनकर तैयार हो गया और 26 जनवरी 1950 को ये संविधान लागू भी हो गया तो 1951 में प्रधानमंत्री नेहरू के समर्थन के बाद कानून मंत्री बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने 5 फरवरी 1951 को  इस बिल को संसद में पेश किया. तीन दिनों तक बहस चलती ही रही और निष्कर्ष ये निकला कि कानून सिर्फ हिंदुओं के लिए ही क्यों. अगर कानून बनाना ही है तो सबके लिए बने.
नेहरू-लियाकत दिल्ली पैक्ट की वजह से नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले सबसे बड़े हिंदूवादी नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में इस कानून का संसद के अंदर तो विरोध हो ही रहा था. एक बड़े संत हरिहरानंद सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में संसद के बाहर भी इस बिल को लेकर बड़ा विरोध शुरू हो गया. और इस विरोध में करपात्री महाराज के साथ ही हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग भी शामिल थे. करपात्री महाराज ने तो इस बिल को लेकर नेहरू को आमने-सामने की चुनौती भी दे दी. इसके अलावा इस बिल को लेकर नेहरू को ये भी चुनौती दी गई कि जो सरकार चल रही है, वो जनता के की ओर से चुने गए प्रतिनिधियों की सरकार नहीं है, लिहाजा उन्हें जनता के इतने बड़े फैसले करने का अधिकार नहीं है.
इस बात से नाराज हुए थे अंबेडकर
इस बीच 1951 के आखिर में आम चुनाव भी थे, जिसमें नेहरू सरकार की परीक्षा होनी थी. तो विरोध को देखते हुए बतौर प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस बिल को कुछ दिनों के लिए ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की. इसकी वजह से अंबेडकर नाराज हो गए. उनका कहना था कि मुझे भारतीय संविधान के बनने से ज्यादा खुशी तब होगी, जब ये बिल संसद से पास हो जाएगा. लेकिन बिल पास नहीं हुआ तो अंबेडकर नाराज हो गए और उन्होंने 27 सितंबर 1951 को पंडित नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने इस्तीफा देते हुए एक पत्र भी लिखा जिसमें उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह बताई थी.
11 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने अंबेडकर के इस्तीफे को स्वीकार भी कर लिया, लेकिन जो पत्र अंबेडकर ने लिखा था, वो आज की तारीख में रिकॉर्ड से गायब है. लिहाजा आज इस बात की सही-सही जानकारी नहीं है कि अंबेडकर ने अपने इस्तीफे में असल में लिखा क्या था. हालांकि, अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स और फिर भारतीय विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद डॉक्टर भीम राव अंबेडकर और हिंदू संहिता विधेयक भाग 2 में अंबेडकर के इस्तीफे वाले पत्र के हवाले से लिखा गया है कि अंबेडकर की नेहरू से नाराजगी सरकार में उचित स्थान न दिए जाने और अनुसूचित-जाति-जनजाति समुदाय पर हो रहे अत्याचार को न रोक पाने के अलावा और भी कई विषयों पर थी, लेकिन हिंदू कोड बिल का ठंडे बस्ते में जाना वो ट्रिगर पॉइंट था, जिसके बाद अंबेडकर ने अपना इस्तीफा नेहरू को सौंप दिया था.
हिंदू कोड बिल को अलग-अलग बिल के तौर पर संसद में पेश कर बनाया कानून
हालांकि पंडित नेहरू ने इस हिंदू कोड बिल को 1951 के चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया और जब 1952 में पंडित नेहरू पूर्ण बहुमत से सत्ता में लौटे तो इस हिंदू कोड बिल के अलग-अलग हिस्से को अलग-अलग बिल के तौर पर संसद में पेश करके कानून बनवा ही लिया. तो ये थी अंबेडकर के इस्तीफे की असली कहानी, जिसे न तो गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में बताया और न ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्वीट में. 
यह भी पढ़ें- ‘PM मोदी के मन में अंबेडकर को लेकर श्रद्धा है तो अमित शाह को…’, खरगे ने रख दी बड़ी मांग

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