नोट पर फोटो बदलने के लिए बवाल मचाकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा बांग्लादेश!

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नोट पर फोटो बदलने के लिए बवाल मचाकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा बांग्लादेश!

नई दिल्ली. अमेरिका ने अभी तक यह नहीं कहा है कि अगले नए $20 के नोट से पूर्व राष्ट्रपति एंड्रयू जैक्सन का “चेहरा” बदलेगा, जबकि लगभग एक दशक पहले उनको नोट से हटाने का दबाव बढ़ने लगा था. इसकी कारण था उन पर नस्लवादी होने का आरोप. डॉलर के बिलों को नियमित रूप से नकली नोटों को रोकने के लिए पुन: डिजाइन किया जाता है, लेकिन सार्वजनिक राय केवल “पुराने गोरे पुरुषों” को दिखाने वाले नोटों के खिलाफ हो रही है, फिर भी यह मानने का कोई वास्तविक कारण नहीं है कि कोई नया चेहरा आएगा. जॉर्ज वाशिंगटन को हटाने का कोई दबाव नहीं है. वह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे लेकिन साथ ही उन्होंने गुलाम भी रखे थे.

दूसरी ओर, बांग्लादेश ने सार्वजनिक राय जानने जैसी लोकतांत्रिक औपचारिकताओं पर समय बर्बाद नहीं किया और अपने संस्थापक राष्ट्रपति और स्वतंत्रता संग्राम के नेता, शेख मुजीबुर रहमान को अपने टका और पॉयशा से हटाने का फैसला किया. यह फैसला तब लिया गया है जब बांग्लादेश की सरकार के “मुख्य सलाहकार” मुहम्मद यूनुस कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है. ऐसे में क्या यह सही समय है कि बांग्लादेश विरोधियों को शांत करने के लिए नोट छापने पर भारी खर्च करे? हर साल पुराने नोटों को बदलने के लिए पहले से ही 500 करोड़ टका खर्च होते हैं. कल्पना कीजिए कि सभी मुद्रा नोटों को बदलने में कितना खर्च आएगा.

पहले भी हो चुका है ऐसायह पहली बार नहीं है, निश्चित रूप से, कि रहमान को टका से हटाया जा रहा है. यह अजीब था कि उनका चेहरा उनके जीवनकाल में मुद्रा पर था: जब वे पहले राष्ट्रपति और पहले प्रधानमंत्री बने. हालांकि, उनकी हत्या के बाद नोटों से उनका चेहरा हटाना अजीब नहीं था. और यह भी अजीब नहीं था कि उनकी बेटी शेख हसीना के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद वे फिर से टका पर वापस आ गए. यह निश्चित रूप से आश्चर्यजनक नहीं था जब शेख हसीना 2001 के चुनावों में बेगम खालिदा जिया से हार गईं और रहमान फिर से गायब हो गए, और जब उनकी बेटी 2008 में सत्ता में वापस आईं तो वे तुरंत टका नोटों पर वापस आ गए. वास्तव में, यह लगभग निश्चित था कि मुहम्मद यूनुस वही करेंगे जो बांग्लादेश के कई सरकार प्रमुखों ने पहले किया है. अगर यूनुस ने इस कदम की घोषणा नहीं की होती, तो शायद उन्हें विद्रोहियों द्वारा रहमान समर्थक होने का आरोप लगाया जाता.

भारत में नोट पर गांधीबांग्लादेश में मचे इस बवाल के बीच एक सवाल यह उठता है कि कितने भारतीय जानते हैं कि महात्मा गांधी 1969 तक हमारे करेंसी नोटों पर नहीं थे? स्वतंत्रता के बाद लगभग 20 वर्षों तक भारत के नोटों पर स्मारक, जानवर, वैज्ञानिक और कृषि उपलब्धियां थीं. महात्मा गांधी की तस्वीर लगाया जाना उनके शताब्दी वर्ष में उनके लिए एक श्रद्धांजलि की तरह था. गांधीजी 1996 में भारतीय रुपये (INR) के सर्वव्यापी ‘चेहरे’ बने क्योंकि तब तक यह सिद्ध हो चुका था कि किसी व्यक्ति की तस्वीर वाले नोटों को जाली छापना तुलनात्मक रूप से कठिन होता है. तब से, अन्य भारतीयों या यहां तक कि देवताओं को रुपये के नोटों पर रखने की बात होती रही है, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है.

भारत जैसी दक्षिण अफ्रीका की कहानीदक्षिण अफ्रीका के रैंड की यात्रा कुछ हद तक भारत की कहानी को दर्शाती है. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, 1961 में जारी किए गए पहले नोटों पर डच अन्वेषक जान वान रीबीक का चेहरा था, जिन्होंने 1652 में व्यापारिक स्टेशन की स्थापना की थी, जो बाद में केप टाउन बना. तीस साल बाद, जब रंगभेद समाप्त हुआ, तो उन्हें देश के ‘बिग फाइव’ जानवरों से बदल दिया गया. और अंततः 2012 में, नेल्सन मंडेला का चेहरा नोटों पर आया. आज दक्षिण अफ्रीका की जेनरेशन जेड, बांग्लादेश की जेनरेशन जेड की तरह, अपने देश के महान नेता को अपने पुराने साथियों से अलग नजरों से देखती है. अब सरकार और अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस में भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और यह भी कहा जा रहा है कि मंडेला राष्ट्रपति के रूप में पीड़ित काले दक्षिण अफ्रीकियों तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुंचे.

कोई भी नेता सर्व गुण संपन्न नहींबंगबंधु के नाम से जाने गए शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियों को भी गिराया जा रहा है. हाल ही में बढ़ते हुए गुस्से में युनुस ने हसीना पर “दुनिया की सबसे खराब तानाशाही सरकार” का नेतृत्व करने का आरोप लगाया. स्पष्ट रूप से, उन्होंने सीरिया, उत्तर कोरिया आदि के शासन को ध्यान में नहीं रखा. जो भी हो, टका नोटों से बंगबंधु का चेहरा हटाना बांग्लादेश में बार-बार होने वाले पहचान संकट को दर्शाता है. रहमान को नकारना बांग्लादेश के अस्तित्व में आने की परिस्थितियों को नकारना है, जिसमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका भी शामिल है. कोई भी नेता अचूक नहीं होता लेकिन यह उनके योगदान को नकारने का कोई कारण नहीं बन जाना चाहिए.

गांधी जी भी सबके चहेते नहीं?गांधीजी के भी कड़े आलोचक रहे हैं; विशेष रूप से भारतीय बंगालियों ने कभी उनके बड़े प्रशंसक नहीं रहे. जब राष्ट्रीय राय तीन बार मांगी गई कि किसकी मूर्ति को राजपथ (अब कर्तव्य पथ) पर किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति के स्थान पर रखा जाए, गांधीजी हर बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हार गए. लेकिन इससे रुपये और राष्ट्र में उनकी स्थिति नहीं बदली. 1983 में ढाका हवाई अड्डे का नाम बदलकर जियाउर रहमान के नाम पर रखा गया, जो बंगबंधु की हत्या के बाद शासन करने वाले दो सैन्य तानाशाहों में से एक थे. जब हसीना प्रधानमंत्री बनीं, तो उन्होंने इसे अपने पिता के नाम पर नहीं बदला, बल्कि बांग्लादेश के 13वीं सदी के यमनी (कुछ कहते हैं तुर्की) इस्लामी सूफी उपदेशक हजरत शाह जलाल के नाम पर रखा, जिससे भविष्य में किसी भी बदलाव की संभावना समाप्त हो गई.
Tags: Business news, Special ProjectFIRST PUBLISHED : December 18, 2024, 17:28 IST

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