गांव छोटा दिल बड़ा, नहीं देखे गए भूखे, प्यासे गौवंश, अपनी जमीन पर कर पालन

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चूरू : हमारे देश में गाय को लेकर राजनीति तो बहुत होती और इसके संरक्षण और संवर्धन की बड़े-बड़े मंचों से बातें भी खूब होती हैं लेकिन जमीनी हकीकत की बात करें तो आज भी भारत के अमूमन हर शहर और गांव में गौवंश भूख और प्यास से तड़पता, बिलखता कूड़े, कचरे में मुंह मारने को मजबूर है. ऐसे ही निराश्रित और बेसहारा गौवंशों के लिए राजस्थान के एक ग्रामीण ने ऐसी अनोखी पहल की है.

इसकी आज गांव ढाणियों में ग्रामीण मिशाल दे रहे हैं जी हां एक ओर जहां कुछ पालक गोवंश रखते तो जरूर है लेकिन सिर्फ उसके दुधारू रहने तक, गौवंश जैसे ही दूध देना कम कर देता है तो उसे अपने हाल पर गली, मोहल्ले और गांव में बेसहारा छोड़ दिया जाता है लेकिन राजस्थान के चूरू जिले के एक छोटे से गांव के ग्रामीण ने इन बेसहारा और निराश्रित गौवंश के लिए दरियादिली दिखाते हुए अपनी पुश्तैनी जमीन से ढाई बीघा जमीन इन गौवंश के ना सिर्फ नाम कर दी बल्कि इनके चारे, पानी से लेकर बीमार पड़ने तक इन्हें चिकित्सकीय सुविधाएं मुहैया करवा रहे है.

नस्ल सुधार पर कर रहे काम
ढाणी रणवा के 56 वर्षीय मालूराम बुड़िया बताते है है आज से करीब 17 बरस पहले उन्होंने गांव में बेसहारा घूम रही चार से पांच गौवंश को लाकर उनके चारे पानी की व्यवस्था की थी जिसके बाद आज उनके पास 350 से अधिक गौवंश है बुड़िया बताते है आज उनके गौवंश के लिए ढाई बीघा जमीन है जिसे उनके बड़े भाई ने डोनेट की बुड़िया बताते हैं, उन्हें उनकी पंचायत का पूरा सहयोग मिला और आज राजियासर पंचायत के अमूमन गांव में आवारा गौवंश की समस्या खत्म हो गयी.

मालूराम बुड़िया बताते है आज एक फ़ोन कॉल पर वह एम्बुलेंस भेजकर बीमार गौवंश को अपने यहां लाकर उसकी देखरेख करते है और भामाशाह और अनुदान से ढाणी रणवा में श्री बालाजी गौशाला समिति संचालित हो रही है बुड़िया बताते है उन्होंने नस्ल सुधार पर भी काम किया और राठा नस्ल के सांड गौशाला में लेकर आए.

Tags: Churu news, Local18, Rajasthan news





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