चोरी से परेशान देश की 2 सबसे बड़ी सरकारी कंपनियां! कई प्रोजेक्‍ट में हो रही देरी

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Last Updated:January 10, 2025, 09:23 ISTElectricity Crisis : देश में एक तरफ तो बिजली खपत की डिमांड बढ़ती जा रही है और दूसरी ओर इस मांग को पूरा करने की जिम्‍मेदारी रखने वाली कंपनियों के प्रोजेक्‍ट में लगातार देरी हो रही है.एनटीपीसी और भेल के कई प्रोजेक्‍ट लगातार देरी से चल रहे हैं. नई दिल्‍ली. देश को रोशन करने की जिम्‍मेदारी 2 बड़ी सरकारी कंपनियों पर है, लेकिन दोनों कंपनियां अजीब सी स्थिति से गुजर रही हैं. भारत की बेसलोड पावर क्षमता बढ़ती मांग के साथ तालमेल बिठाने में संघर्ष कर रही है. इस स्थिति को देखते हुए शीर्ष सरकारी अधिकारियों ने BHEL लिमिटेड को निर्देश दिया है कि वे तीसरे पक्ष की परामर्श सेवाओं का सहारा लें और वित्तीय रूप से मजबूत ठेकेदारों को नियुक्त करें, ताकि परियोजनाओं को पूरा करने में तेजी लाई जा सके. इन कंपनियों के कई प्रोजेक्‍ट देरी से चल रहे हैं, जिसका चोरी और आजगनी सहित कई कारण हैं.

देश की सबसे बड़ी थर्मल पावर जनरेटिंग कंपनी NTPC ने भी BHEL से बेहतर परियोजना प्रबंधन करने की बात कही है. एनटीपीसी अपने कई प्रोजेक्‍ट की कमीशनिंग का काम भेल को सौंपती है. BHEL और NTPC दोनों ही केंद्र सरकार के स्वामित्व में हैं और भारत की थर्मल क्षमता में वृद्धि के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. इस मुद्दे पर हुई बैठक में BHEL ने इस वित्तीय वर्ष में 9 गीगावाट (GW) की थर्मल क्षमता चालू करने का वादा किया. हालांकि, अप्रैल से नवंबर के बीच, 7.4 GW के लक्ष्य के मुकाबले केवल 60 मेगावाट (MW) थर्मल क्षमता ही जोड़ी गई है. 1 गीगावॉट में 1000 मेगावाट होते हैं, जिससे पता चलता है कि यह तय लक्ष्‍य के मुकाबले काफी कम है.

चोरी और आगजनी है इसकी वजहथर्मल कंपनियों की पिछले दिनों हुई बैठक में प्रोजेक्‍ट की लेटलतीफी के कारण बताए गए थे. इसमें कहा गया कि चोरी और आग लगने के अलावा मजदूरों के धीमे काम करने और कच्चे माल की कमी की वजह से ही कई प्रोजेक्‍ट में देरी होती है. एनटीपीसी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर गुरदीप सिंह ने निर्माणाधीन थर्मल प्रोजेक्ट्स के धीमे संचालन के पीछे गुणवत्ता से जुड़ी समस्याओं का हवाला दिया है. उन्होंने बताया कि बॉयलर ट्यूब में लीकेज और उपकरणों की खराबी जैसी समस्याएं इन प्रोजेक्ट्स में देरी का लगातार कारण बन रही हैं.

क्‍या है देरी की असल वजहभेल के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर कोप्पू सदाशिव मूर्ति का कहना है कि औसतन, सुपरक्रिटिकल थर्मल प्रोजेक्ट्स को शुरू करने में छह साल लग जाते हैं. उन्होंने देरी का कारण मुख्य रूप से बाहरी कारकों, जैसे कानून और व्यवस्था, कानूनी बदलाव, सीमित विक्रेता आधार, कुशल श्रमिकों की कमी और कच्चे माल की कमी को बताया. यही कारण है कि पिछले 5 साल में लक्ष्‍य की महज आधी क्षमता के थर्मल प्रोजेक्‍ट ही जोड़े जा सके हैं.

5 साल में कितना पूरा हुआ लक्ष्‍यपिछले पांच वर्षों में देखा जाए तो थर्मल क्षमता में केवल 13 गीगावाट की शुद्ध वृद्धि हुई है. इसके विपरीत, भारत की नवीकरणीय क्षमता 160 गीगावाट से अधिक हो गई है. जहां भारत की थर्मल क्षमता 2019-20 से 2023-24 के बीच केवल 6 प्रतिशत बढ़कर 218 गीगावाट हुई है, वहीं कोयला-आधारित थर्मल संयंत्रों द्वारा उत्पादन 960 बिलियन यूनिट (बीयू) से 1,290 बीयू तक 34 प्रतिशत बढ़ गया है. इसके अलावा कैपिसिटी यूटिलाइजेशन भी 53 फीसदी से बढ़कर 68 फीसदी हो गया है. देश में अगले साल 270 गीगावॉट की बिजली डिमांड पहुंचने का अनुमान है.

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