चीन के मंसूबों पर पानी फेरने को तैयार है भारत! मिला 3 और देशों का साथ

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नई दिल्‍ली. धुर विरोधी भारत और चीन एक बार फिर आमने-सामने हैं. इस बार लड़ाई सेनाओं की नहीं, व्‍यापारिक है और चीन मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहा है. भारत ने भी कमर कस रखी है और उसे 3 और देशों का साथ भी मिल गया है. अब 16 और 17 दिसंबर को अग्नि परीक्षा होनी है. विशेषज्ञ पहले ही आशंका जता चुके हैं कि अगर चीन में अपने मंसूबे में सफल हो गया तो यह भारत के व्‍यापार के लिए अच्‍छा नहीं होगा और इससे आने वाले समय में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर भी असर पड़ सकता है.

दरअसल, चीन के नेतृत्‍व में निवेश सुविधा विकास (IFD) समझौते को अब तक विश्व व्यापार संगठन (WTO) में 166 में से 128 देशों का समर्थन मिल चुका है. फिलहाल भारत मजबूती से इसके विरोध में खड़ा है और उसे दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और तुर्की का भी साथ मिला है. केंद्र सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि जिनेवा में 16-17 दिसंबर को होने वाली WTO जनरल काउंसिल की बैठक में इस पर फैसला हो सकता है.

क्‍यों जरूरी है चीन का विरोधचीन के आईएफडी का विरोध करना भारत के लिए व्‍यापारिक लिहाज से काफी जरूरी है. यह ऐसे समय में हो रहा है जब निवेश प्रवाह चीन से हटकर अन्य देशों की ओर बढ़ रहा है. खासकर संभावित अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और चीन में कमजोर उपभोक्ता मांग के कारण. ये निवेश अब तेजी से ASEAN देशों की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि चीनी कंपनियों ने अपने विदेशी संपत्तियों को रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा लिया है.

पाकिस्‍तान गया चीन के साथभारत के लिए रास्‍ता थोड़ा मुश्किल नजर आ रहा है, क्‍योंकि पड़ोसी पाकिस्‍तान जो पहले IFD का हिस्‍सा नहीं था, अब चीन का दामन थामता नजर आ रहा है. चीन के पास 166 WTO सदस्यों में से 128 का समर्थन है. अमेरिका इसका विरोध नहीं कर रहा है, लेकिन उसने इस समझौते से बाहर रहने का विकल्प चुना है. जाहिर है कि अमेरिका किसी भी पक्ष की तरफ नहीं जाएगा.

भारत का दावा- गलतफहमी में हैं समर्थककेंद्रीय अधिकारी ने बताया कि भारत का मानना है कि कई देश जो IFD का समर्थन कर रहे हैं, वे इस गलतफहमी में हैं कि इससे उन्हें फायदा होगा. विकासशील देशों के लिए यह समझौता उनकी नीतिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करेगा. भले ही और सदस्य इसमें शामिल हो जाएं, फिर भी भारत इसका विरोध जारी रखेगा. दूसरी ओर, चीन आईएफडी के जरिये दावा कर रहा है कि यह वैश्विक निवेश माहौल को सुधारने और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा, जिससे डब्ल्यूटीओ सदस्यों के बीच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रवाह को सुगम बनाया जा सकेगा. खासकर विकासशील और सबसे कम विकसित देशों को इसका लाभ मिलेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता भारत के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है और एफडीआई पर उसकी नीतिगत स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है. इसका परिणाम ये होगा कि भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में आगे गिरावट आ सकती है.

भारत ने उठाया मछुआरों की सब्सिडी का मुद्दाभारत ने WTO के ढांचे के तहत मछली पकड़ने और क्षमता से अधिक मछली पकड़ने की समस्याओं को हल करने के लिए ‘प्रति व्यक्ति सब्सिडी वितरण’ मानदंड की वकालत की है. भारत ने WTO को सूचित किया कि उसकी वार्षिक मछली पालन सब्सिडी प्रति मछुआरे $35 है, जो कुछ यूरोपीय देशों द्वारा दी जाने वाली $76,000 की सब्सिडी से काफी कम है. भारत ने इस पर एक दस्तावेज तैयार किया है, जिस पर जिनेवा की बैठक में बातचीत की जाएगी.

डब्‍ल्‍यूटीओ सुलझाएगा मुद्दाWTO (विश्व व्यापार संगठन) एक समझौते पर बातचीत कर रहा है जो मछली पकड़ने और क्षमता से अधिक मछली पकड़ने में योगदान देने वाली सब्सिडी को नियंत्रित करेगा. 2022 में सदस्य देशों ने अवैध, अनियंत्रित और अनियमित मछली पकड़ने के लिए सब्सिडी को कम करने के लिए एक समझौता किया था. भारत ने कहा, ‘सब्सिडी के वितरण के लिए प्रति व्यक्ति मानदंड अपनाने से मछली पकड़ने और क्षमता के मुद्दों को प्रबंधित करने के लिए ज्‍यादा सटीक और न्यायसंगत आधार मिल सकता है.
Tags: China india, China news, Trade MarginFIRST PUBLISHED : December 11, 2024, 15:03 IST

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