अमीर देशों पर क्‍यों बढ़ा हर साल 84 लाख करोड़ रुपये का बोझ! भारत सहित कई देशों की करनी पड़ेगी मदद

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नई दिल्‍ली. दुनिया में एक नए तरह का समझौता जन्‍म ले रहा है. इस पर अमल शुरू हुआ तो अमीर देशों को हर साल 1 ट्रिलियन डॉलर (करीब 84 लाख करोड़ रुपये) की मदद विकासशील देशों को करनी पड़ेगी. हाल में संपन्‍न हुई संयुक्‍त राष्‍ट्र जलवायु सम्‍मेलन में जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है. रिपोर्ट में बताया गया कि आजरबैजान में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में शामिल वार्ताकारों को दुनिया में बढ़ते तापमान से निपटने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विकासशील देशों की मदद करनी होगी. इसके लिए साल 2030 तक प्रति वर्ष एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर जुटाना होगा.

अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त विशेषज्ञों के समूह के अनुसार, इस धन की आवश्यकता सार्वजनिक और निजी दोनों स्रोतों से है. यह रिपोर्ट जर्मनी, कनाडा, फ्रांस और नीदरलैंड समेत कई अमीर देशों द्वारा यह स्वीकार किए जाने के एक दिन बाद आई है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए खरबों डॉलर की तत्काल आवश्यकता है और अमीर देशों को जलवायु को वित्‍तीय सहायता प्रदान करने में आगे रहना चाहिए.

2025 तक नया पैकेज संभवसम्मेलन में शामिल देश 2025 के बाद विकासशील देशों की मदद के लिए एक नए जलवायु वित्त पैकेज पर बातचीत कर रहे हैं. ऐसे में रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2030 से पहले निवेश में किसी भी तरह की कमी होने से आने वाले वर्षों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा, जिससे जलवायु स्थिरता के लिए राह कठिन हो जाएगी और वित्तीय बोझ भी बढ़ जाएगा.

अगर चूके तो बढ़ेगा बोझरिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अब पर्याप्त निवेश नहीं किए जाने का मतलब है कि महत्वपूर्ण लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कम समय सीमा में और भी बड़ी रकम जुटाने की जरूरी होगी. जलवायु कार्यकर्ता और जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि पहल के वैश्विक कार्यक्रम निदेशक हरजीत सिंह ने कहा, ‘बार-बार यह चेतावनी दी गई है कि निष्क्रियता से खर्च बढ़ेगा और जलवायु स्थिरता का मार्ग कठिन होगा, इसके बावजूद अमीर देश अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने में देरी करते रहते हैं.’

भारत जैसे देशों को भी चाहिए बड़ी मददरिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए 2030 तक सालाना 6.3 – 6.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, जबकि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए 2.4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष की जरूरत है. इस लिहाज से देखा जाए तो दुनिया में बढ़ते तापमान से निपटने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में विकासशील देशों की मदद के लिए 2030 तक प्रति वर्ष एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर जुटाने की जरूरत होगी, जिसमें भारत सहित कई देश शामिल हैं.
Tags: Business news, Climate Change, Development PlanFIRST PUBLISHED : November 17, 2024, 20:58 IST

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