क्या है WHO क्यों अमेरिका ने नाम वापस लिया, सभी देश देते हैं कितना पैसा 

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क्या है WHO  क्यों अमेरिका ने नाम वापस लिया, सभी देश देते हैं कितना पैसा 

Last Updated:January 21, 2025, 15:38 IST

World Health Organization: अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ से अपना नाम वापस ले लिया है. ट्रंप ने WHO पर कोविड-19 को ठीक से नहीं संभालने और चीन के प्रति पक्षपाती होने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि अमेरिका डब्ल्यूएचओ क…और पढ़ें

ट्रंप 2020 से ही डब्ल्यूएचओ के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.

हाइलाइट्स

  • डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को WHO से अलग किया
  • अमेरिका ने WHO को फंडिंग रोकने का फैसला किया
  • यूएन एजेंसी WHO के कामकाज से असंंतुष्ट था अमेरिका

Trump Withdraws US from World Health Organization: अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा फैसला लिया है. उन्होंने अपने देश को दुनिया के एक बहुत बड़े स्वास्थ्य संगठन,  विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अलग कर दिया है. राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के लगभग आठ घंटे बाद जारी किए गए एक कार्यकारी आदेश में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के हटने के कई कारण बताए हैं. उनका कहना कि डब्ल्यूएचओ कोविड-19 महामारी से ठीक तरीके से नहीं निपट सका था. ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया है कि वो तत्काल आवश्यक सुधारों को अपनाने में सफल नहीं रहा. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका डब्ल्यूएचओ को चलाने के लिए बहुत ज्यादा पैसे देता है, जबकि चीन जैसे देश कम पैसे देते हैं.

पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम वैश्विक नेता के रूप में देश की प्रतिष्ठा को कमजोर करेगा. इसके अलावा अमेरिका का अगली महामारी से लड़ना कठिन हो जाएगा. हालांकि डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम अप्रत्याशित नहीं था. ट्रंप 2020 से ही डब्ल्यूएचओ के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. उन्होंने पहले भी कोरोना वायरस महामारी को लेकर एजेंसी के नजरिये पर हमला किया था और उसे अमेरिका से मिलने वाली फंडिंग रोकने की धमकी दी थी. जुलाई 2020 में ट्रंप ने एजेंसी से हटने के लिए औपचारिक कदम उठाए थे. लेकिन 2020 का चुनाव हारने के कारण यह धमकी पूरी नहीं हुई. 20 जनवरी, 2021 को अपने पहले दिन, पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन ने इसे लागू होने से रोक दिया.

अमेरिका को क्या होगा नुकसान?
इस फैसले से अमेरिका को नुकसान हो सकता है क्योंकि डब्ल्यूएचओ दुनिया भर में बीमारियों के बारे में बहुत सारी जानकारी रखता है. अमेरिका अब इस जानकारी से वंचित रह जाएगा. वहीं, डब्ल्यूएचओ दुनिया भर में बीमारियों से लड़ने में मदद करता है. अमेरिका के जाने से डब्ल्यूएचओ को कम पैसा मिलेगा और वह कम काम कर पाएगा. इससे दुनिया भर में बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ सकता है. जैसे चीन ने 2020 में कोरोना वायरस के आनुवंशिक सिक्वेसिंग की डब्ल्यूएचओ को जानकारी दी थी. तब डब्ल्यूएचओ ने इसे अन्य देशों के साथ साझा किया था.

नये नियम को लेकर बना निशाना
डब्ल्यूएचओ द्वारा दुनिया के सभी देशों को बीमारियों से बचाने के लिए एक नया नियम बनाने की बात चल रही है. इस नियम के मुताबिक, सभी देशों को मिलकर काम करना होगा और बीमारियों से लड़ने के लिए कुछ खास काम करने होंगे. लेकिन कुछ लोगों को यह नियम पसंद नहीं आ रहा. उन्हें लगता है कि यह नियम देशों की आजादी छीन लेगा. डब्ल्यूएचओ ने इसे पैनडेमिक ट्रीटी नाम दिया था. पिछले साल इस ट्रीटी पर बातचीत टूट गई थी. अमेरिका में, कुछ रिपब्लिकन सांसदों ने इस समझौते को अमेरिकी संप्रभुता के लिए खतरा माना. द न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में पब्लिक हेल्थ लॉ एक्सपर्ट लॉरेंस ओ. गोस्टिन ने कहा कि डब्ल्यूएचओ से अमेरिका का हटना सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक झटका होगा, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रीय हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए और भी गंभीर झटका होगा. 

1948 में स्थापित किया गया डब्ल्यूएचओ
विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है.  इसकी स्थापना अमेरिका की मदद से सात अप्रैल 1948 को की गई थी. इसकी वेबसाइट के अनुसार इसका मिशन “सभी के लिए, हर जगह बेहतर स्वास्थ्य” है. डब्ल्यूएचओ के कामों में गाजा जैसे युद्धग्रस्त क्षेत्रों में सहायता पहुंचाना है. साथ ही जीका, इबोला और कोविड-19 जैसी महामारियों पर नजर रखना है. इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है. वर्तमान में इसके 194 सदस्य देश हैं जबकि इसकी स्थापना के समय केवल 61 देशों ने इसके संविधान पर हस्ताक्षर किये थे. वर्तमान में डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों में 150 ऑफिस हैं और पूरे संगठन में करीब सात हजार कर्मचारी काम करते हैं. 

कौन देता है कितना पैसा
डब्ल्यूएचओ को दो तरह से फंड मिलते हैं. पहला है असेस्ड कंट्रीब्यूशन और दूसरा है वॉलेंटरी कंट्रीब्यूशन. असेस्ड कंट्रीब्यूशन उसके सदस्य देश देते हैं. कौन सा सदस्य देश कितना फंड देगा, ये पहले से तय होता है. यह देश की अर्थव्यवस्था और जनसंख्या पर निर्भर करता है. अर्थात ज्यादा बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश से ज्यादा फंड लिया जाता है. असेस्ड कंट्रीब्यूशन को ‘कोर’ फंडिंग माना जाता है.

इस फंड का इस्तेमाल संगठन अपने रोजमर्रा के खर्चे और जरूरी प्रोग्राम चलाने के लिए करता है. इस मद में सबसे ज्यादा पैसा अमेरिका देता है. अमेरिका ने वर्ष 2018-19 में 400 मिलियन डॉलर का योगदान दिया था. यह डब्ल्यूएचओ के कुल बजट का 15 फीसदी था. इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा योगदान ब्रिटेन का था. 2018-19 में चीन का योगदान केवल 86 मिलियन डॉलर था. वॉलेंटरी कंट्रीब्यूशन वो फंड है जिसमें सदस्य देश, बड़ी संस्थाएं और कंपनियां और लोग पैसा देते हैं.

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