कैसे 444 दिनों तक पूरे अमेरिकी दूतावास के लोगों को ईरान में बनाकर रखा गया बंधक

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हाइलाइट्स

ईरानी छात्रों के झुंड ने अमेरिकी दूतावास के अंदर घुसकर सबको बंधक बना लियाकरीब डेढ़ साल तक अमेरिकी दूतावास के बंधक कठिन स्थितियों में रहेइस बीच अमेरिका ने हेलिकॉप्टर भेजकर बंधकों को रिहा कराने की कोशिश की

4 नवंबर 1979 का दिन. ये 45 साल पहले की बात है. तब ईरान की राजधानी में सरकार समर्थक छात्रों के एक झुंड ने वो काम किया, जो इससे पहले दुनिया में कभी नहीं हुआ था. इन छात्रों ने तेहरान में 53 अमेरिकियों को बंधक बना लिया. उन्हें 14 महीने से अधिक समय तक बंधक बनाए रखा. ये कांड ईरान में शाह रजा पहलवी के देश से भागने और इस्लामी क्रांति के सफल होने के बाद किया गया.

फरवरी 1979 में ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी को शिया धर्मगुरु अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के साथ गठबंधन करने वाली विपक्षी ताकतों ने सत्ता से बेदखल कर दिया.

शाह और अमेरिका के खिलाफ गुस्सा था
1978-79 की इस्लामी क्रांति ने ईरान की राजशाही को खत्म कर दिया. उसकी जगह इस्लामी गणराज्य की स्थापना की गई. जहां पश्चिम शाह की उनके आधुनिकीकरण सुधारों के लिए तारीफ कर रहा था, वहीं ईरान में उन्हें निरंकुश तरीकों का इस्तेमाल करने तथा आर्थिक असमानता को कम करने के लिए पर्याप्त कदम न उठाने के लिए दोषी ठहराया गया. उन पर ये आरोप भी थे कि शाह राज में पूरे देश में कुछ लोग मौजमस्ती की जिंदगी जी रहे हैं बाकि लोग बदतर और गरीबी की स्थिति में हैं.

अमेरिका के खिलाफ गुस्सा लंबे समय से था
अयातुल्ला खुमैनी अमेरिका के सख्त खिलाफ थे, ईरान में इस्लामिक क्रांति से बहुत पहले से ही अमेरिका के खिलाफ गुस्सा पनप रहा था. सीआईए और यूनाइटेड किंगडम के एमआई6 ने मिलकर तख्तापलट की योजना बनाई, जिसमें लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को 1953 में अपदस्थ कर दिया गया, जिन्हें कई लोग धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए दृढ़ता से खड़े होने और ईरानी मामलों में पश्चिमी हस्तक्षेप का विरोध करने वाला मानते थे.

तब ईरान में कोहराम मच गया
जनवरी 1979 में शाह ईरान से भाग गए. सुरक्षित पनाह की तलाश में एक देश से दूसरे देश में जगह तलाशते रहे. खोमैनी 1 फरवरी को राजनीतिक निर्वासन से वापस लौटे. अक्टूबर में मामला तब चरम पर पहुंच गया जब खबरें आईं कि शाह राष्ट्रपति जिमी कार्टर के प्रशासन के सहयोग से अमेरिका में इलाज करा रहे हैं. ईरान में कोहराम मच गया.

98 अमेरिकियों को बंधक बना लिया गया
4 नवंबर को, जिन छात्रों ने शुरू में दूतावास पर धरना देने की योजना बनाई थी, उन्होंने परिसर पर जबरन कब्ज़ा कर लिया. 98 अमेरिकियों को बंधक बना लिया. कुछ बंधक भागने में सफल रहे. कनाडा के राजदूत की मदद से वो ईरान से बाहर निकलने में सफल रहे.

छात्रों ने अपदस्थ शाह की वापसी की मांग की, जिनका न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था. इन छात्रों को अयातुल्ला खुमैनी का समर्थन प्राप्त था, जो अपने शासन की शक्ति का विस्तार करने के लिए इन सब बातों से लोकप्रियता बढ़ा रहे थे.

कुछ बंधक रिहा कर दिए गए
हिरासत में लिए जाने के पहले हफ़्ते में ईरानी चरमपंथियों ने दावा किया कि अमेरिकी राजनयिक कर्मचारी एक “जासूसी इकाई” के सदस्य थे. नवंबर के मध्य में खोमैनी ने महिलाओं और अश्वेत बंधकों के साथ-साथ कुछ गैर-अमेरिकियों को भी रिहा करने का आदेश दिया.

अमेरिका की बंधकों को रिहा कराने की नाकाम कोशिश 
अप्रैल 1980 में अमेरिका ने घोषणा की कि उसने सैन्य अभियान में हेलिकॉप्टर भेजकर बंदियों को बचाने का असफल प्रयास किया. लेकिन ये नाकाम रहा. इस बीच एक बंधक की मृत्यु हो गई. शेष 52 बंधकों को अंततः 20 जनवरी, 1981 को ईरान और अमेरिका के बीच एक समझौते के बाद रिहा कर दिया गया. यह घोषणा रोनाल्ड रीगन के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के लगभग 20 मिनट बाद की गई.

रीगन के राष्ट्रपति बनते ही बंधक रिहा हुए
ये भी कहा जाता है कि 1980 के चुनाव में रीगन की जीत, बंधकों के लिए हथियारों की कथित बातचीत के कारण संभव हुई थी, जिसमें उनके खेमे ने ईरान के साथ मिलकर बंधकों की रिहाई को चुनाव समाप्त होने तक टालने की कोशिश की. ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अबोलहसन बनिसद्र, जिन्होंने बंधक संकट के अधिकांश समय की अध्यक्षता की थी, उन्होंने अपनी पुस्तक, ‘माई टर्न टू स्पीक: ईरान, द रिवोल्यूशन एंड सीक्रेट डील्स विद द यूएस’ में लिखा कि उनके पास “1980 के वसंत में ही खोमैनी और रोनाल्ड रीगन के समर्थकों के बीच संपर्क के सबूत थे.”

1981 के बाद ईरान किस प्रकार बदला?
इस्लामी क्रांति और उसके बाद के राजनीतिक संकट के बाद, ईरान में महत्वपूर्ण बदलाव हुए, जिसने इसके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को काफी कुछ बदला. अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में नए शासन ने सख्त इस्लामी कानून और नियम लागू किए, जिससे ईरानी नागरिकों के दैनिक जीवन में भारी बदलाव आया. इसमें महिलाओं के लिए हिजाब अनिवार्य करना, पश्चिमी प्रभावों पर प्रतिबंध लगाना और शासन और समाज में इस्लामी सिद्धांतों की अधिक रूढ़िवादी व्याख्या की ओर बदलाव शामिल था.

कार्टर की बहुत आलोचना हुई थी
ईरान बंधक संकट के समय जिमी कार्टर अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उनके समय में कार्टर की विदेश नीति के संचालन को कमज़ोर कर दिया. कहा जाता है कार्टर की विदेश नीति टीम अक्सर कमजोर और ढुलमुल नजर आई. अमेरिका में जिमी कार्टर की बहुत आलोचना हुई.

Tags: Iran news, United States (US)

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