BRICS बनाम डॉलर: ट्रंप के तेवर से भारत पर क्या होगा असर?

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जब से अमेरिका ने 2012 में ईरान और 2022 में रूस को SWIFT से बाहर निकाला है, तब से दुनिया भर के देश अमेरिकी डॉलर और अमेरिका के कंट्रोल वाले फाइनेंशियल सिस्टम पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं.

SWIFT एक ऐसा सिस्टम है जिसके जरिए दुनियाभर के बैंक एक दूसरे से लेनदेन करते हैं. अमेरिका ने ईरान और रूस को SWIFT से बाहर निकाल दिया. इसका मतलब है कि इन देशों के बैंक अब आसानी से दुनिया के बाकी बैंकों से पैसे का लेन-देन नहीं कर सकते.

दूसरे देशों को डर है कि अगर अमेरिका  किसी भी देश को स्विफ्ट से निकाल सकता है, तो वह उनके साथ भी ऐसा कर सकता है. इसलिए, वे अमेरिकी डॉलर और अमेरिका के कंट्रोल वाले सिस्टम पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं.

ऐसे में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS और उनके सहयोगी देशों को चेतावनी दी है कि अगर ये देश अमेरिकी डॉलर के खिलाफ कोई नई मुद्रा बनाने की कोशिश करते हैं, तो अमेरिका उन पर 100% टैरिफ लगाएगा.

ट्रंप की क्या है चेतावनी
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, “यह सोच कि BRICS देश डॉलर से दूर जाने की कोशिश कर रहे हैं, हम बस देखते रहेंगे, ऐसा नहीं होगा. हमें इन देशों से यह आश्वासन चाहिए कि वे कोई नया ब्रिक्स मुद्रा नहीं बनाएंगे और न ही कोई अन्य मुद्रा को अमेरिकी डॉलर के बदले अपनाएंगे, वरना उन्हें 100% टैरिफ का सामना करना पड़ेगा और वे अमेरिकी बाजार से अपने व्यापार को अलविदा कह सकते हैं.”

यह बयान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अक्टूबर में हुए ब्रिक्स समिट के दौरान आया, जहां उन्होंने कहा था, “डॉलर को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. हमें सच में ऐसा लग रहा है. मुझे लगता है कि यह एक बड़ी गलती है, जो लोग ऐसा कर रहे हैं.”

अगर ट्रंप की धमकी अमल में लाई गई, तो इन देशों के साथ अमेरिका का व्यापार महंगा हो जाएगा. 100% टैरिफ का मतलब है कि इन देशों से आने वाले प्रोडक्ट्स पर दोगुना टैक्स लगेगा. इससे अमेरिका में इन प्रोडक्ट्स की कीमत बढ़ जाएगी, जिससे दोनों पक्षों को नुकसान होगा.

ब्रिक्स में चीन, रूस, ब्राजील, भारत, दक्षिण अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल हैं. ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान टैरिफ लगाने का वादा किया था. अब, उन्होंने इस तरह की चेतावनियां और भी तेज कर दी हैं. 

टैरिफ कैसे काम करता है?
टैरिफ एक तरह का टैक्स होता है जो किसी देश में सामान आने पर उस पर लगाया जाता है. यह टैक्स सामान की कीमत के हिसाब से लगाया जाता है. उदाहरण के लिए मान लीजिए अमेरिका में 50,000 डॉलर की एक कार आयात की जाती है और उस पर 25% टैरिफ लगाया जाता है, तो उस कार पर 12,500 डॉलर का अतिरिक्त चार्ज लगेगा.

टैरिफ का भुगतान उस देश की घरेलू कंपनी द्वारा किया जाता है जो सामान को आयात करती है, न कि उस विदेशी कंपनी द्वारा जो उसे निर्यात करती है. इसका मतलब है कि यह एक सीधा टैक्स है जो अमेरिकी कंपनियां अमेरिकी सरकार को देती हैं, न कि विदेशों की कंपनियों को. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान भी कई टैरिफ लगाए थे. इनमें से कई टैरिफ अभी भी राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में लागू हैं. 

क्या रुपया बनेगा इंटरनेशनल करेंसी?
ट्रंप की धमकी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका ने रूस पर कई पाबंदियां लगाई हैं, जिसकी वजह से रूस का तेल यूरोप की बजाय एशिया के देशों में बिक रहा है. भारत भी अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है और दुनिया भर में रुपये का इस्तेमाल बढ़ाना चाहता है.

रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस पर पाबंदियां लगने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने 2022 में इंटरनेशनल व्यापार में रुपये में भुगतान करने की अनुमति दी. इससे भारतीय व्यापारी अब डॉलर की बजाय रुपये में ही सामान खरीद और बेच सकते हैं. 

BIS त्रैतीयक सेंट्र्ल बैंक सर्वे 2022 के मुताबिक, दुनिया भर में होने वाले इंटरनेशनल पैसे के लेन-देन में 88% अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल होता है, जबकि रुपये का इस्तेमाल सिर्फ 1.6% है. अगर रुपये का इस्तेमाल बढ़कर 4% हो जाता है, तो इसे एक इंटरनेशनल करेंसी माना जाएगा.

लेकिन, रुपये को इंटरनेशनल करेंसी बनाने के लिए अभी कई चुनौतियों का सामना करना होगा. अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी है और इसे हटाना आसान नहीं होगा. दुनिया भर के लोगों को रुपये पर भरोसा करना होगा, तभी वे इसका इस्तेमाल करेंगे. रुपये की कीमत स्थिर होनी चाहिए, तभी लोग इसमें निवेश करेंगे.

क्या भारत डॉलर से दूरी बनाने की कोशिश कर रहा है?
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अक्टूबर में कहा था कि भारत अपने व्यापारिक हितों को आगे बढ़ा रहा है, लेकिन अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल बंद करना भारत की आर्थिक नीति का हिस्सा नहीं है. अमेरिकी नीतियां अक्सर कुछ देशों के साथ व्यापार को मुश्किल बना देती हैं और भारत डॉलर से दूर जाने का इरादा रखे बिना ‘वैकल्पिक रास्ते’ तलाश रहा है.

वॉशिंगटन में एक अमेरिकी थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा था, “हमारे चिंता स्वाभाविक है. हमारे पास अक्सर ऐसे व्यापारिक साझेदार होते हैं जिनके पास लेनदेन के लिए डॉलर की कमी होती है. इसलिए, हमें यह तय करना होगा कि क्या हम उनके साथ लेनदेन करना छोड़ दें या ऐसे वैकल्पिक तरीके खोजें जो काम करें. हमारे मन में डॉलर के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है.”

मतलब, भारत अपने व्यापार के लिए अच्छे ऑप्शन ढूंढ रहा है, लेकिन डॉलर को पूरी तरह से छोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा है. कई देशों के पास डॉलर की कमी होती है, इसलिए भारत उनके साथ व्यापार करने के लिए दूसरे तरीके ढूंढ रहा है. भारत का मानना है कि भविष्य में दुनिया में कई मुद्राओं का इस्तेमाल होगा.

ट्रंप की नीति से कौन-कौन प्रभावित होगा?
ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियां पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिलाने की तैयारी में हैं. संरक्षणवादी नीतियों का मतलब है कि अमेरिका दूसरे देशों से कम सामान खरीदेगा और अपने देश में बने सामानों को बढ़ावा देगा. इससे अमेरिका के व्यापारिक साझेदारों को नुकसान हो सकता है.

उनकी नीतियों का असर कई देशों पर पड़ने वाला है. अमेरिका के साथ बड़े देश जैसे चीन, मैक्सिको और यूरोपीय संघ सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. अमेरिका को निर्यात करने वाले देशों की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा. इन देशों को अपने माल की मांग में भारी गिरावट का सामना करना पड़ सकता है.

दुनिया भर में मंदी की आहट के बीच भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरे बढ़ रहे हैं. अगर दुनिया भर में मंदी आती है, तो लोगों के पास पैसा कम होगा और वे कम सामान खरीदेंगे. अगर अमेरिका और दूसरे देशों के बीच टैक्स को लेकर विवाद बढ़ता है, तो इससे दुनिया भर में सामान की सप्लाई में रुकावट आ सकती है. इससे भारत के लिए दुनिया के बाकी देशों से मुकाबला करना मुश्किल हो जाएगा.

ट्रंप का टैरिफ: भारत के निर्यात पर संकट?
ट्रंप ने जो टैक्स बढ़ाने की धमकी दी है, वह भारत के लिए चिंता की बात है क्योंकि अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. अगर ट्रंप टैरिफ लगाते हैं, तो भारतीय सामान अमेरिका में महंगे हो जाएंगे और उनकी बिक्री कम हो सकती है. दोनों देशों के बीच सालाना करीब 120 बिलियन डॉलर से ज्यादा का व्यापार होता है.

भारत, अमेरिका को कपड़ा, दवाइयां, मशीनरी और IT सेवाएं जैसी कई चीजें बेचता है. टैरिफ से भारतीय निर्यातकों को काफी नुकसान होगा. उनके सामानों की कीमत बढ़ जाएगी, जिससे वे अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी होंगे. भारतीय व्यापारियों को निर्यात लागत में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा. इससे व्यापार में कमी आ सकती है और भारत की आर्थिक विकास दर में गिरावट आ सकती है.

ऐसे में भारत सिर्फ उन मामलों में दूसरे रास्ते तलाश रहा है जब उसके ट्रेड पार्टनर डॉलर में भुगतान नहीं करना चाहते या जब अमेरिका की नीतियों से व्यापार में दिक्कतें आती हैं. लेकिन, ट्रंप की धमकी ने भारत को मुश्किल में डाल दिया है. अब भारत को यह तय करना होगा कि वह अमेरिका की बात माने या फिर ज्यादा टैक्स देने के लिए तैयार रहे.

ट्रंप का ‘चीन+1’ : भारत के लिए नए मौके
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां भले ही दुनिया भर में व्यापार को लेकर अनिश्चितता पैदा कर रही हों, लेकिन ये भारत के लिए नए अवसर भी ला सकती हैं. ट्रंप ने पहले ‘चीन+1’ स्ट्रेटजी अपनाई थी, जिसमें कंपनियों को टैरिफ से बचने के लिए चीन से बाहर प्रोडक्शन ट्रांसफर करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. इससे भारत को पहले ही फायदा हुआ है. इलेक्ट्रॉनिक्स और कपड़ा जैसे क्षेत्रों की कंपनियों ने भारत में अपना कामकाज शुरू कर दिया है.

भारत में कुशल कर्मचारी और कम मजदूरी लागत है, जिससे यह कंपनियों के लिए एक आकर्षक जगह बन गया है. अगर ट्रंप BRICS देशों पर टैरिफ लगाते हैं, तो और भी कंपनियां भारत का रुख कर सकती हैं. इससे भारत में निवेश बढ़ेगा, नौकरियां पैदा होंगी और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.

भारत को इन दोनों स्थितियों के बीच संतुलन बनाना होगा. उसे एक तरफ तो ‘चीन+1’ रणनीति का फायदा उठाना होगा और दूसरी तरफ वैश्विक मंदी और टैरिफ के खतरों से भी निपटना होगा.

ट्रंप की नीतियां: विकास के साथ महंगई का भी खतरा?
ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका में ब्याज दरें कम रह सकती हैं, जिससे विकास को बढ़ावा मिल सकता है लेकिन मुद्रास्फीति का खतरा भी बढ़ सकता है. कम ब्याज दरों से लोगों को कर्ज लेना आसान हो जाता है, जिससे खर्च बढ़ता है और अर्थव्यवस्था में तेजी आती है. लेकिन, इससे महंगाई भी बढ़ सकती है क्योंकि लोगों के पास ज्यादा पैसा होगा और वे ज्यादा सामान खरीदेंगे.

अगर अमेरिका अपनी संरक्षणवादी नीतियों को जारी रखता है, तो इससे व्यापार असंतुलन का खतरा भी बढ़ सकता है. संरक्षणवादी नीतियों का मतलब है कि अमेरिका दूसरे देशों से कम सामान खरीदेगा और अपने देश में बने सामानों को बढ़ावा देगा. इससे अमेरिका के व्यापारिक साझेदारों को नुकसान हो सकता है.

अगर अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है. इससे भारत में भी महंगाई बढ़ सकती है और आयात महंगा हो सकता है.

हालांकि, ट्रंप ने कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी सराहना की है और दोनों नेताओं के बीच एक मजबूत व्यक्तिगत संबंध है. इस संबंध से यह उम्मीद जताई जा सकती है कि मोदी और ट्रंप मिलकर बातचीत कर सकते हैं. ताकि भारत के आर्थिक हितों की रक्षा की जा सके और टैरिफ के संभावित नुकसान को कुछ हद तक कम किया जा सके.

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