महाभियोग, मार्शल लॉ, विद्रोह और गिरफ्तारी…, सत्ता लोलुपता के लिए राष्ट्रपति येओल ने साउथ कोरिया को खतरे में डाला

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साउथ कोरिया में पिछले वर्ष 3 दिसंबर तीन जो घटनाक्रम हुआ, जिसमें की साउथ कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल ने एक मार्शल लॉ लागू करते हुए एक आपातकालीन स्थिति पैदा कर दी. मार्शल साउथ कोरिया में लगाने का आधार ये दिया गया कि नॉर्थ कोरिया की तरफ से खतरे बढ़ गए थे और एंटी स्टेट फोर्सज ने राष्ट्र के विरुद्ध  रचा था. इस दलील के साथ मार्शल लॉ लगाया गया. लेकिन, अगर वास्तविकता की पड़ताल करें तो राष्ट्रपति येओल का मार्शल लॉ लगाने का ये कदम घरेलू विफलताओं की वजह से था. वे अपने राजनीतिक पद को बचाने कि उनकी  सत्ता लोलुपता के चलते ऐसा किया था.

इसके साथ ही, उनके और उनकी पत्नी के संदर्भ में भ्रष्टाचार के भी कई आरोप थे. घरेलू मोर्चे पर राष्ट्रपति येओल और लगातार घिरते जा रहे थे. ऐसे में जरूर पद बदचाने के लिए  मार्शल लॉ लागू किया गया, लेकिन  मार्शल लॉ लगाने के बाद से ही साउथ कोरिया में उसी रात यानी 3 दिसंबर को ही भारी विरोध शुरू हो गया. 

साउथ कोरिया की नेशनल असेंबली में वहां के सांसदों ने पूरे संकल्प के साथ अपनी मौजूदगी दिखाई और तमाम रुकावटों के बावजूद इकट्ठा हुए और इस मार्शल लॉ को नकार दिया. कुछ घंटे के अंदर ही राष्ट्रपति येओल को संसद के द्वारा इस मार्शल लॉ को नकारे जाने की वजह से अपने इस कदम से हटना पड़ा और मार्शल लॉ लगाने का फैसला वापल लिया.

मार्शल लॉ और विरोध

राष्ट्रपति येओलका के खिलाफ साउथ कोरिया में भारी विरोध चल रहा था और उनकी गिरफ्तारी की मांग तभी से की जाने लगी थी. इन सबके बीच उनके ऊपर महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया. हालांकि, पहले महाभियोग का प्रस्ताव था, वो पास नहीं हो सका. लेकिन साउथ कोरिया के कानून निर्माताओं ने फिर से उनके खिलाफ माहाभियोग प्रस्ताव लेकर आए और  पास हो गया.

राष्ट्रपति येओल हैं की गिरफ्तारी को लेकर भी लगातार प्रयास किया जा रहे थे और एक पहले भी प्रयास किया गया था, जिसे प्रेसिडेंशियल सिक्योरिटी सर्विसेज के गॉड्स ने विफल कर दिया था. येओल की गिरफ्तारी से पहले बड़ी संख्या में सुरक्षा एजेंसी के अधिकारी पहुंचे थे. करीब हजार की संख्या में पहंचे सुरक्षाकर्मियों के बाद ये गिरफ्तारी मुमकिन हो पायी.

भ्रष्टाचार से संबंधित उच्च अधिकारियों की तरफ से इस पूरे मामले पर जांच की जा रही है. ऐसी संभावना है कि येओल की गिरफ़्तारी का पीरियड लंबे समय तक बढ़ेगा. उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा है, इसके तहत ये गिरफ्तारी की गई है. 

मुश्किल में राष्ट्रपति येओल

साउथ कोरिया का कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट वर्तमान समय में इस बात को लेकर की जांच कर रहा है कि क्या प्रेसिडेंट येओल को उनके पद से परमानेंटली हटा दिया जाए या उनकी प्रशिक्षण पावर है, उसको रीस्टोर किया जाए. लेकिन ऐसी प्रबल संभावना दिखाई है कि कांस्टीट्यूशनल कोर्ट का फैसला इसी पक्ष में आएगा, जिसमें कि उन्हें परमानेंटली उनके पद से हटा दिया जाएगा. 

जाहिर है साउथ कोरिया के राष्ट्रपति येओल का मार्शल लॉ का फैसला पूरी तरह लसे साउथ कोरिया क डेमोक्रेसी को खतरे में डालने वाला कदम था. उन्होंने सिर्फ व्यक्तिगत कारणों और सत्ता लोलुपता के चलते अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से खुद को बचाने के लिए पूरे राष्ट्र को संकट में डाला. 

इसी वजह से येओल के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है. इस संदर्भ में उनको बड़ी सजाओं का भी सामना करना पड़ सकता है. राष्ट्रपति येओल साउथ कोरिया के पूरे इतिहास के पहले ऐसे सिटिंग राष्ट्रपति बन गए हैं, जिन्हें उनके पद पर रहते ही गिरफ्तार किया गया. ये उनके लिए बहुत ही ज्यादा शर्मनाक पल है और एक तरह से उनके राजनीतिक कैरियर की समाप्ति हो चुकी है. उनको बड़ी सजा भी दी जा सकती हैं, इस बात की भी प्रबल संभावना दिखाई देती है.

साउथ कोरिया के लॉ मेकर्स ने अपने देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए जिस तरह की संकल्पबद्धता दिखाई, जिस तरह वे रातों-रात नेशनल असेंबली में इकट्ठा होकर पूरे मार्शल लॉ के खिलाफ खड़ा होकर उसे निरस्त किया, इससे साफ है कि साउथ कोरिया की डेमोक्रेसी रिजिलियंट और रोबस्ट है. साउथ कोरिया की डेमोक्रेसी पर आने वाला कोई भी खतरा साउथ कोरिया के लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे. 

दूसरी बात ये कि एक ओर जहां नेशनल असेंबली में लॉ मेकर्स, मार्शल लॉ के प्रस्ताव को निरस्त करने के लिए अपना मतदान कर रहे थे, वही कोरिया की सड़कों आम नागरिक भारी संख्या में इकट्ठा था. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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