टैरिफ का किस्सा है पुराना: जब खत्म हुआ था सेकेंड वर्ल्ड वॉर और जर्मनी में बढ़ी थी चिकन की खपत

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए ये एलान किया कि आने वाले 2 अप्रैल से रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया जाएगा. ऐसे में सबसे पहले ये सवाल उठता है कि आखिर ये रेसिप्रोकल टैरिफ है क्या और इसके लागू किए जाने से भारत और पूरी दुनिया में उसका क्या कुछ असर होगा. दरअसल, टैरिफ एक तरह का टैक्स है जो किसी देश की तरफ से लगाया जाता है, जब वे किसी दूसरे देश से सामान खरीदते हैं. यानी आयात करने के ऊपर ये टैक्स लगाया जाता है.

इसे प्रोटेक्शनिस्ट पॉलिसी (Protectionist policy) कहा जाता है. इसके लगाने से ये होता है कि जिस देश से हम सामान लेते हैं, वो सामान महंगा हो जाता है. स्थानीय उत्पाद और उद्योगों को संरक्षण के लिए ये कदम उठाया जाता है.

अब सवाल आता है उस रेसिप्रोकल की, जिसके बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बात की है. रेसिप्रोकल टैरिफ वो होता है जो हम उस देश पर लगाते हैं और उसी मैचिंग से लगाते हैं जिस देश ने हमारे ऊपर टैरिफ लगाया होता है. मान लीजिए कि दो देश है- ए और बी. अगर देश ए ने बी पर अगर 10% टैरिफ देश बी पर लगाया है तो देश बी भी इसके जवाब में आयात पर 10% टैरिफ लगाता है. इसे रेसिप्रोकल टैक्स कहा जाता है.

रेसिप्रोकल टैरिफ लगने की कहानी

दरअसल, अब सवाल ये उठता है कि ये टैरिफ आखिरकार आया कहां से है. टैरिफ कर लगाने का एक पुराना तरीका है. अब बताते हैं कि आखिर कब से ये लगाना शुरू किया गया. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद जर्मनी में लोगों ने खूब चिकन खाना शुरू कर दिया, खासकर अमेरिकन चिकन. इससे यूनाइटेड स्टेट्स के किसानों के चिकन की बिक्री बहुत ज्यादा होने लग गई. 50 मिलियन डॉलर के करीब उनके चिकन की बिक्री होने लगी. 

इसका परिणाम ये हुआ कि यूरोपीयन किसानों पर इसका असर होने लग गया. आज जिस संघ को हम जानते हैं यूरोपीयन यूनियन, उस वक्त जो ऑर्गेनाइजेशन थी उसने ये कहा कि हम चिकन पर टैरिफ लगा देते हैं और उन्होंने टैरिफ लगा दिया. इसके बाद जो चिकन 1.60 डॉलर का था वो हो गया 2.25 डॉलर का. इससे आयात कम होना शुरू हो गया.

आयात को हतोत्साहित करने का प्रयास

जब आयात कम हुए तो जैसे आज डोनाल्ड ट्रंप बात कर रहे हैं कि अमेरिकन इकॉनोमी प्रभावित हो रही है,  मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (मागा) का स्लोगन दे रहे हैं. उस वक्त अमेरिकी नेताओं ने ये सोचा कि जर्मनी एक बड़ी मार्कट उनके चिकन की बिक्री के लिए है, तो उन्होंने सोचा कि हम जर्मन को कैसे रोकें, ताकि उनके दिमाग में बदलाव लाया जा सके.

इसके बाद उन्होंने 25% टैरिफ ट्रकों के ऊपर लगा दिया, जैसे जर्मन वॉक्स वैगन है और ये उनका तरीका काम किया भी. इसके बाद उनके ट्रकों की बिक्री अमेरिका में कम हो गई.

इसका असर ये हुआ कि जर्मनी के लोगों को चिकन के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़े. दूसरा अमेरिका के लोगों के लिए ये हुआ कि उनके पास ट्रकों के ऑप्शन कम हो गए. यानी, टैरिफ उपभोक्ताओं को प्रभावित करने के लिए लगाया जाता है. कुछ निश्चित उद्योग के संरक्षण में ये कदम उठाया जाता है. या फिर सामने वाले देश के व्यवहार में बदलाव के लिए ऐसा किया जात है.

यहां जिस तरह से ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैक्स लगाने की बात है, इसका मकसद साफ तौर पर दिख रहा है कि उनकी कोशिस सामने वाले देश के व्यवहार में बदलाव लाने का उनका ये प्रयास है.

अगर आपको याद हो तो 2018 में टैरिफ लगाने के बाद ट्रंप ने कहा था कि मैं इसको इकॉनोमिक नेशनलिज्म मानता हूं. जाहिर है ऐसे में अगर टैरिफ लगता है तो आयात वाली चीजों को दाम बढ़ेंगे. दुनिया में ट्रेड वॉर शुरू हो जाएगा और मंदी की उसके बाद एक बड़ी आहट आ सकती है. क्योंकि जब एक देश टैरिफ लगाएगा तो सामने वाला देश भी लगाएगा. भारत में तो रुपये की कीमत लगातार बढ़ रही है. इसमें आयात वाली वस्तुओं की चीजें तो महंगी हो ही रही है. दाम बढ़ेंगे. प्रोडक्शन गिरेगा. इस तरह से पूरी दुनिया पर इसका व्यापक असर होगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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