PM Modi Cyprus Visit: भारत-पाकिस्तान के टकराव और अब ईरान-इजरायल युद्ध से भूमध्य सागर क्षेत्र में क्या नए जियो-पॉलिटिकल समीकरण बन रहे हैं. ये सवाल इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी G-7 शिखर सम्मेलन में जाने के दौरान 15-16 जून को दो दिवयीय यात्रा पर साइप्रस भी जा रहे हैं. साइप्रस का तुर्की (तुर्किए) से छत्तीस का आंकड़ा है. ऐसे में साफ है कि साइप्रस के जरिए भारत अब तुर्की की अक्ल ठिकाने लगाने जा रहा है. वहीं, तुर्की जो पाकिस्तान का परम-मित्र है और भारत के खिलाफ साजिश रचने के लिए कुख्यात है.
खास बात ये है कि शुक्रवार (13 जून) को ईरान पर हमला करने के तुरंत बाद इजरायल ने अपने सभी यात्री विमानों को साइप्रस भेज दिया था ताकि ईरान की जवाबी कार्रवाई में सिविल एविएशन को नुकसान न हो. इसी तरह, इजरायल ने अपने अतिरिक्त फाइटर जेट्स को ईरान के हमलों से सुरक्षित रखने के लिए ग्रीस भेज दिया है. हाल के सालों में भारत के ग्रीस से करीबी संबंध बन गए हैं. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ग्रीस उन देशों में शामिल था, जिसने भारत की कार्रवाई का समर्थन किया था.
ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने किया इजरायली ड्रोन्स का जोरदार इस्तेमाल
भारत और इजरायल के करीबी संबंध दुनिया से छिपे नहीं हैं. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ इजरायली ड्रोन का जबरदस्त इस्तेमाल किया था. ईरान पर हमला करने के बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सबसे पहले जिन वैश्विक नेताओं को फोन किया, उनमें प्रधानमंत्री मोदी का नाम सबसे ऊपर था.
कश्मीर और आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का समर्थन करता है साइप्रस
आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दे पर साइप्रस हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है. 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था तब भी साइप्रस, भारत के साथ खड़ा था. भारत भी संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत साइप्रस समस्या के समाधान के पक्ष में रहा है. तुर्की, जहां पाकिस्तान के साथ खड़ा रहता है, वहीं भारत ने साइप्रस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया है.
दशकों पुराना है तुर्किए और साइप्रस का विवाद
साइप्रस एक भूमध्यसागरीय द्वीप है जो तुर्किए के दक्षिण में, सीरिया के पश्चिम और इजरायल के उत्तर पश्चिम में है. साइप्रस में ग्रीक और तुर्क अल्पसंख्यक लोग रहते हैं. दोनों समुदायों के बीच लंबे समय से नस्लीय विवाद चला आ रहा है. साल 1974 में ग्रीक समुदाय से जुड़े लड़ाकों ने द्वीप पर तख्तापलट किया था, जिसके बाद तुर्की ने तुर्क समुदाय के लोगों की रक्षा का बहाना कर द्वीप पर हमला कर दिया था. इस आक्रमण के बाद घटना के बाद साइप्रस दो हिस्सों में बंट गया, जिनमें से एक में ग्रीक-साइप्रस सरकार है और दूसरे पर तुर्क-साइप्रस वासियों का कंट्रोल है.
ग्रीक-साइप्रस को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त, पर तुर्क-साइप्रास स्वघोषित राष्ट्र
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्रीक-साइप्रस सरकार के शासन वाले साइप्रस गणराज्य को मान्यता प्राप्त है. वहीं, तुर्क साइप्रस वासियों ने अपने इलाके को एक स्वघोषित राष्ट्र का दर्जा दिया है, जिसे सिर्फ तुर्किए स्वीकार करता है. साइप्रस और तुर्की के कब्जे वाले साइप्रस के हिस्से को, संयुक्त राष्ट्र की पेट्रोलिंग वाला एक बफर जोन अलग करता है.
पहलगाम हमले के बाद एर्दोगन ने शहबाज संग मनाया था जश्न
22 अप्रैल को जिस दिन आतंकियों ने भारतीय पर्यटकों की हत्या की, उस दिन पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ तुर्किए में मौजूद थे. हमले के बाद जहां अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे दुनिया के अधिकतर देश आतंकी हमले की निंदा कर रहे थे, शहबाज और एर्दोगन मुस्कुराते नजर आए थे. तुर्की की राजधानी अंकारा में हंस-हंसकर गले मिल रहे थे. ऐसा लग रहा था कि 26 पर्यटकों की हत्या की खुशी मनाई जा रही है. एर्दोगन और शहबाज की उस तस्वीर की जमकर आलोचना की गई थी.
पहलगाम नरसंहार के बाद तुर्किए ने पहुंचाई थी ड्रोन की खेप
पहलगाम हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान ने एक कार्गो जहाज भरकर ड्रोन की एक बड़ी खेप तुर्किए से मंगाई थी. पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के खिलाफ जो बुनयान अल मसरूर लॉन्च किया था, उसमें तुर्किए और चीन के ड्रोन को शामिल किया था.
27 अप्रैल को तुर्किए का सैन्य विमान सी-130 हरक्यूलिस भी पाकिस्तान गया था. 7-10 मई के बीच पाकिस्तान ने करीब एक हजार ड्रोन भारत पर लॉन्च किए थे. लेकिन सभी को भारत की एयर डिफेंस ने मार गिराया था. इसके अलावा भारत और पाकिस्तान में तनाव बढ़ने के बाद तुर्किए का जंगी जहाज 2 मई को कराची बंदरगाह पहुंचा था.
भारत में तुर्किए का बायकॉट
ड्रोन हमले के दौरान पाकिस्तान को समर्थन देने के चलते ही भारत ने तुर्किए की एविएशन-सर्विस कंपनी सेलिब के साथ करार तोड़ दिया है. भारत में तुर्किए का टूरिस्ट-डेस्टिनेशन के तौर पर बॉयकॉट शुरू हो गया है. कई ट्रैवल एजेंसियों ने तुर्किए के लिए बुकिंग बंद कर दी है. ऐसे में पीएम मोदी के साइप्रस जाने का प्लान भारत का बड़ा कूटनीतिक कदम माना जा रहा है.
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