Last Updated:April 07, 2025, 18:48 IST
US IRAN RELATION: ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को कभी बंद नहीं होने दिया. रिपोर्ट की माने ते ईरान के पास परमाणु हथियार है या फिर उसे बनाने की पूरी क्षमता. ईरान पर लगे प्रतिबंधों के चलते कोई भी देश उसके साथ व्य…और पढ़ें
अमेरिका ईरान जंग के मुहाने पर
हाइलाइट्स
- ईरान ने अमेरिका को दी गंभीर परिणामों की धमकी.
- मिडिल ईस्ट में जंग का खतरा मंडराया.
- ईरान पर लगे प्रतिबंधों से उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर.
US IRAN RELATION : एक बार फिर से ईरान और अमेरिका के बीच जंग जैसे हालात पैदा हो रहे हैं. अमेरिकी नए प्रतिबंध थोप रहा है तो ईरान भी धमाकी दे रहा है. ताजा घटनाक्रम में ईरान ने इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, तुर्की और बहरीन को धमकी दी है. रिपोर्ट के मुताबिक अगर वह अमेरिका के साथ जंग की सूरत में किसी भी तरह की मदद करते पाए गए तो परिणाम गंभीर होंगे. इसमें उनकी जमीन और उनके एयरस्पेस के इस्तामल भी शामिल है. यह वह देश हैं जहां अमेरिकी बेस और उसके सैनिक तैनात है. इस वक्त मिडिल ईस्ट 45,000 से ज्यादा सैनिक मौजूद है. साथ ही ईरान को घेरने लिए रेड सी के इलाके में दो एयरक्राफ्ट कैरियर की तैनाती है.
क्या 60 दिन बाद मचेगा गदर?
अमेरिका की तरफ से ईरान को 60 दिन का अल्टिमेटम दिया गया है. परमाणु कार्यक्रम पर सीधी बातचीत के लिए दबाव बना रहा था. ईरान की स्थिती पहले के मुकाबले कमजोर दिख रही है. पहले पूरे मिडिल ईस्ट के अलग अलग देशों में ईरान समर्थित आतंकी संगठन मजबूत थे. ईरान हमास, हिजबुल्लाह और हूती को सीधा मदद करता है. इजरायल ने हमास और हिजबुल्लाह को पूरी तरह से कमजोर हो गया है. 12 मार्च को यूएई के जरिए अमेरिका ने ईरान के सामने परमाणु कार्यक्रम पर नए सिरे से समझौते के लिए न्याता दिया था. संदेश में साफ कहा गया था कि अगर ईरान बातचीत की मेज पर आने से इत्तफाक नही रखता तो परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए वह कुछ भी करेंगे. इसमें उन इंस्टालेशन पर स्ट्राइक होगी. ईरान ने भी साफ कर दिया था कि वह अमेंरिका के दबाव में नहीं आने वाले. हांल्कि रूस और चीन ईरान के समर्थन में खड़े दिख रहे हैं. मौजूदा हालातों में रूस में चीन ईरान और रूस के विदेशमंत्रियों की बैठक भी हुई. इस बैठक में ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर चर्चा की गई. सुरक्षा मामलो के जानकार लें जन. संजय कुलकर्णी का कहना है कि भले ही चीन और रूस समर्थन दे रहे हो लेकिन जंग की सूरत में वह खुलकर साथ खड़े होंगे यह कहना मुश्किल है. यह सिर्फ एक तरह का दबाव ईरान पर बनाया जा रहा है. खास तौर पर उसके मौजूदा हालातों को देखते हुए. आर्थिक तौर पर ईरान अच्छी स्थिती में नहीं है.
ट्रंप ईरान न्यूक्लियर डील से बाहर आए थे
ऐसा नही है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर इससे पहले बात नहीं हुई. ज्वाइंट प्लान ऑफ एक्शन साल 2013 में अमेरिका और ईरान के बीच शुरू हुआ. साल 2015 में ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान फॉर एक्शन (JCPOA)का गठन हुआ था. इसे ईरान न्यूक्लियर डील के नाम से भी जाना जाता है. इसका मकसद था ईरान पर लगे प्रतिबंधों की ढील एवज में उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना.मिलिट्री ग्रेड एनरिंचमेंट से नीचे रखने को लेकर सहमती बना रही थी. इसमें समझौते के लिए P5+1 यानी की चीन, फ्रांस, रूस,अमेरिका, यूनाईटेड किंगडम और जर्मनी शामिल थे. लेकिन ट्रंप के 2017 में सत्ता संभालने के बाद इरान पर दबाव बनाना तेज किया गया. साल 2018 में अमेरिका ने खुद को इस एग्रिमेंट से अलग कर दिया. इसके पीछे की वजह बताई गई कि वह ईरान के साथ नया समझौता करना चहते है जिसमें न्यूक्लियर प्रोग्राम के साथ साथ बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम पर हमेशा के लिए रोक लगाया जाएगा.
ईरान पर प्रतिबंध का लंबा इतिहास
ट्रंप का सत्ता संभालते ही ईरान पर चाबुक चलना शुरु कर दिया था. पहले से ही अमेरिका के प्रततिबंधों को मार झेल रहे ईरना के लिए ट्रंप ने भी मुसीबत खड़ी कर दी थी. जो अब भी लगाताग जारी है. हूती के फंडिंग के सबसे बड़े सोर्से में से एक अधिकारी पर 2 अप्रैल को ही प्रतिबंध लगा दिया है. इसके अलावा ट्रंप प्रशासन के स्टेट डिपार्टमेंट ने ईरान के तेल को चोरी छिपे व्यापर करने वाली 16 संस्थाऔं और जहाजों पर प्रतिबंध लगा दिया था. ईरान पर पहले से अमेरीकि प्रतिबंधों के चलते उसकी अर्थव्यवस्था पटरी पर नही आ पाती. प्रतिबंधों का दौर दशकों पुराना है. 1979 को ईरान की क्रांती के बाद से प्रतिबंध लगना शुरू हो गया था. पहली बार ईरान के शाह तो अमेरिका में उपचार के लिए अनुमति दिए जाने के बाद तेहरान में उग्र छात्रों ने अमेरिकी दूतावास पर कब्जे कार लोगो को बंधक बना लिया था.उसके तहत अमेरिका ने ईरान के 8.1 बिलियन डॉलर की संपत्ति को सीज कर दिया था. साथ ही किसी भी तरह के व्यापार पर भी प्रतिबंध लगाया गया था. हांल्कि होस्टेज क्राइसेज को सुलझाने के एवज में प्रतिबंधों को 1981 में हटाया गया. लेकिन दो साल बाद 1983 में ईरान इराक जंग के दौरान हथियारों पर प्रतिबंध लगाया गया.उसके बाद प्रतिबंधों का सिलसिला जारी है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम, हिजबुल्लाह, हमास, फीलिस्तीनी इस्लामिक जेहाद और हूती को समर्थन को लेकर प्रतिबंध जारी है.
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