ताबड़तोड़ इजरायली हमलों से गाजा को मिलेगी राहत! US ने तैयार किया 60 दिनों का प्लान, जानें खास ब

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Israel-Hamas Ceasefire: पश्चिम एशिया में जारी इजरायल-गाजा संघर्ष को शांत करने के लिए अमेरिका ने एक 60 दिनों का सीजफायर प्रस्ताव तैयार किया है. इस प्रस्ताव पर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने विचार करने की बात कही है, लेकिन अमेरिकी प्रशासन के अनुसार इजरायल ने इस पर सैद्धांतिक सहमति जताई है.

60 दिन के संघर्ष विराम को लेकर कुछ शर्ते भी लागू किए गए हैं. इसके मुताबिक गाजा में मानवीय सहायता की आपूर्ति किसी भी रोक-टोक के की जाएगी. हमास को 28 इजरायली बंधकों की रिहाई करनी होगी. इसके बदले में इजरायल 125 फिलिस्तीनी बंदियों की रिहाई करेगा. इसके अलावा 180 मृत बंधकों के शव भी सौंपे जाएंगे.

हमास की प्रतिक्रिया: सहमति या असहमति?
हमास ने 60 दिन के संघर्ष विराम प्रस्ताव पर अब तक अंतिम निर्णय नहीं दिया है, लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि गंभीर मानवीय संकट और अंतरराष्ट्रीय दबाव को देखते हुए संगठन इसे स्वीकार कर सकता है. हमास के अनुसार, अंतिम फैसला शुक्रवार या शनिवार तक सामने आ जाएगा. गाजा में वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यह सीजफायर गंभीर राहत का अवसर बन सकता है.

यूरोप और इस्लामिक देशों की भूमिका
संघर्ष को समाप्त करने के लिए केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि यूरोपीय संघ, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, और तुर्की जैसे देश भी लगातार इजरायल पर दबाव बना रहे हैं. हाल ही में कई यूरोपीय देशों ने इजरायल के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित किए. इसी संदर्भ में, 31 देशों के राजनयिकों ने गाजा का दौरा किया. इस दौरान इजरायल की ओर से हुई फायरिंग की घटना ने तनाव को और बढ़ा दिया.

ग्रेटा थनबर्ग की गाजा यात्रा
जलवायु और मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने घोषणा की है कि वह रविवार (31 मई) को गाजा जाएंगी. यह यात्रा “फ्रीडम फ्लोटिला” नामक मानवीय मिशन का हिस्सा है, जो युद्ध प्रभावित गाजा के नागरिकों को सहायता पहुंचाने के लिए चलाया जा रहा है. ग्रेटा के साथ फ्रांसीसी-फिलिस्तीनी सांसद रीमा हसन भी इस यात्रा में शामिल होंगी. इस यात्रा का उद्देश्य इजरायल और अमेरिका पर वैश्विक नैतिक दबाव बनाना और मानवीय पक्ष को दुनिया के सामने लाना है.

क्या यह संघर्ष विराम स्थायी शांति की ओर कदम है?
विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह संघर्ष विराम सफल होता है तो यह दोनों पक्षों के लिए भरोसे और कूटनीति की एक नई शुरुआत हो सकती है. हालांकि, राजनीतिक असहमति, आंतरिक उग्रपंथ, और पारस्परिक अविश्वास जैसे कारक इसे स्थायी समाधान में बदलने की राह में चुनौती बन सकते हैं.

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