Explained: जीरो कार्बन-नो पलूशन! मोदी-ट्रंप कर करेंगे बड़ा खेल! कैसे भारत बनेगा न्यूक्लियर एनर्जी का पावर हाउस

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Agency:News18India

Last Updated:February 04, 2025, 08:52 IST

India-US Relation: पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की 2008 की लकीर को पीएम मोदी और लंबी करने जा रहे हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने परमाणु दायित्व कानून में संशोधन का ऐलान किया. इससे परमाणु एनर्जी क्षेत्र में निवेश…और पढ़ें

पीएम मोदी 12 फरवरी को अमेरिका जाने वाले हैं.

हाइलाइट्स

  • वित्त मंत्री ने परमाणु दायित्व कानून में संशोधन का ऐलान किया.
  • संशोधन से विदेशी निवेश बढ़ेगा और न्यूक्लियर डील को बढ़ावा मिलेगा.
  • पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात में परमाणु ऊर्जा पर चर्चा होगी.

नई दिल्ली: पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने 2008 में जो लकीर खींची थी, पीएम मोदी अब उससे और लंबी लकीर खींचने जा रहे हैं. इसके संकेत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में ही मिल गए. जब निर्मला सीतारमण ने न्यूक्लियर डील के लायबिलिटी क्लॉज यानी परमाणु दायित्व कानून में संशोधन करने का ऐलान कर दिया. अब आप सोचेंगे कि आखिर न्यूक्लियर डील का यह लायबिलिटी क्लॉज क्या है. अब समझां दूं कि जब कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो परमाणु दायित्व कानून के तहत भारत में विदेशी कंपनियों पर भारी जुर्माने का प्रावधान है. यह इतना ज्यादा है कि 14 सालों में कोई कंपनी भारत में निवेश कर ही नहीं पाई है. इसकी वजह से ही भारत में न्यूक्लियर पावर का रास्ता सुनसान पड़ा है. अब इसे मार्केट के हिसाब से तर्कसंकत बनाया जाएगा. इसकी राह पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर प्रशस्त हो जाएगी.

दरअसल, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को देश का बजट पेश किया. इस दौरान उन्होंने परमाणु एनर्जी क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी नीतिगत बाधा को दूर करने का ऐलान किया. उन्होंने बजट भाषण में ही साफ कर दिया कि न्यूक्लियर एनर्जी एक्ट और नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम 2010 (सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010) में संशोधन होगा. परमाणु दायित्व कानून में संशोधन का मकसद देश में परमाणु एनर्जी को बढ़ावा देना. भारत के परमाणु एनर्जी सेक्टर को तर्कसंगत और विदेशी निवेश के अनुकूल बनाना.

क्यों अहम है मोदी का अमेरिका दौरा
परमाणु दायित्व कानून में संशोधन की बात ऐसे वक्त में आई है, जब पीएम मोदी अमेरिका जाने वाले हैं. साथ ही अमेरिका ने हाल ही में तीन परमाणु संस्थाओं पर से बैन हटाए हैं. पीएम मोदी 12 फरवरी को पेरिस से सीधे अमेरिका जाएंगे. यहां उनकी मुलाकात डोनाल्ड ट्रंप से होगी. डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी के बीच परमाणु एनर्जी, व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने पर चर्चा होगी. साथ ही भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों को और मजबूत करने पर फोकस होगा. इस दौरान भारत की परमाणु एनर्जी जरूरतों के हिसाब से पीएम मोदी डोनाल्ड ट्रंप के साथ बैठकर एजेंडा सेट करेंगे. परमाणु दायित्व कानून में संशोधन की बात से भारत-अमेरिका के बीच सिविल-न्यूक्लियर फील्ड में सहयोग के नए रास्ते खुलेंगे.

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परमाणु दायित्व कानून में संशोधन से फायदा
दरअसल, भारत का लक्ष्य साल 2047 तक कम से कम 100 गीगावाट की परमाणु एनर्जी क्षमता हासिल करना है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है. साथ ही परमाणु ऊर्जा से जुड़े बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का ऐलान इसी दिशा में है. जैसे ही भारत अपने परमाणु दायित्व कानून में संशोधन करेगा, इससे विदेशी कंपनियां आने लगेंगी. अब तक भारी भरकम जुर्माने के डर से विदेशी कंपनियां निवेश को डरती हैं.

क्या है परमाणु दायित्व कानून
अब जानते हैं कि क्या है सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010 यानी परमाणु दायित्व कानून. यह एक अहम कानून है, जो परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के संचालन से संबंधित दायित्वों और मुआवजे के मुद्दों को निर्धारित करता है. इस अधिनियम का असल मकसद परमाणु दुर्घटना की स्थिति में प्रभावित समुदाय को आवश्यक मुआवजे की पेशकश करना है. इसका मतलब है कि अगर कोई दुर्घटना होती है तो उस कंपनी पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाएगा. इसमें ऑपरेटर के साथ-साथ परमाणु सप्लायर पर भी जिम्मेवारी तय होती है. कुछ लोगों का मानना है कि यह जुर्माना इतना अधिक है कि इसके डर से ही विदेशी कंपनियों की भारत के परमाणु सेक्टर में बहुत कम है. कंपनियां डरती हैं.

यही है असल रोड़ा?
इस प्रावधान की वजह से ही भारत के परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में प्राइवेक्ट सेक्टर की भागीदारी नहीं हो रही है. 2010 के इस कानून को इंटरनेशनल लेवल पर तर्कसंगत नहीं माना जाता है. साथ ही भारत का जो परमाणु ऊर्जा वाला लक्ष्य है, उसे पाने में भी यह रोड़ा है. यही वजह है कि अब सालों बाद मोदी सरकार ने संशोधन की बात कही है. परमाणु ऊर्जा का लक्ष्य अगर भारत को हासिल करना है तो इसके दरवाजे खोलने ही होंगे. तभी प्राइवेट सेक्टर की भी भागीदारी बढ़ेगी. अमेरिका की कई कंपनियां हैं, जो भारत में निवेश कर सकती हैं. वेस्टिंगहाउस न्यूक्लियर, डीटीई एनर्जी इलेक्ट्रिक, जनरल इलेक्ट्रिक जैसी अमेरिका की कई कंपनियां भारत में परमाणु ऊर्जा निवेश करने में रुचि रख सकती हैं.

भारत को क्या होगा फायदा
अब सवाल है कि भारत आखिर परमाणु ऊर्जा पर ज्यादा ध्यान क्यों दे रहा? तो इसकी सबसे बड़ी वजह है जीरो कार्बन. यानी परमाणु संयंत्र का सबसे बड़ा फायदा होता है कि यह कार्बन मुक्त होता है. इसमें किसी तरह का ऐसा ईंधन इस्तेमाल नहीं होता है जिससे कार्बन या उसके पदार्थ निकलते हों. इस लिहाज से यह एक स्वच्छ और पर्यावरण के लिए अच्छा ऊर्जा स्रोत है. इसके अलावा जरा से यूरेनियम से इससे बहुत ही अधिक ऊर्जा पैदा की जा सकती है. दूसरी वजह है कि भारत अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करना चाहता है. साल 2070 तक जीरो का लक्ष्य है. इस राह में परमाणु ऊर्जा के बगैर सफलता पाना संभव नहीं है. इस तरह डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी जब वाशिंगटन में मिलेंगे तो इस पर बड़ी डील होने की संभावना है. इसके संकेत दोनों तरफ से मिल चुके हैं.

अमेरिका और भारत ने कैसे बढ़ाए कदम
सबसे पहले अमेरिका ने बड़ा दिल दिखाया. उसके बाद भारत ने भी अपने दिल के दरवाजे खोले. अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बार्क), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेयर अर्थ्स (आईआरई) पर से बैन हटा दिए थे. इसके बाद निर्मला सीतारमण ने 20,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ ‘परमाणु ऊर्जा मिशन’ स्थापित करने और परमाणु दायित्व कानून में संशोधन की योजना के बारे में घोषणा की. पीएम मोदी ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के फैसले को ऐतिहासिक बताया. पीएम मोदी ने कहा कि इससे आने वाले समय में भारत के विकास में असैन्य परमाणु ऊर्जा का बड़ा योगदान सुनिश्चित होगा. असैन्य परमाणु ऊर्जा भविष्य में देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान सुनिश्चित करेगी.

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2008 में क्या हुआ था
2008 का भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर समझौता यानी असैन्य परमाणु समझौता भारतीय इतिहास में ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक संबंधों के लिए एक अहम मील का पत्थर साबित हुआ. जुलाई 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ बैठक के बाद दोनों देशों ने असैन्य परमाणु ऊर्जा में सहयोग करने की महत्वाकांक्षी योजना का अनावरण किया था. ऐतिहासिक सिविल न्यूक्लियर समझौते पर आखिरकार कई दौर की बातचीत के बाद लगभग तीन साल बाद यानी 2008 मुहर लगी थी. उम्मीद थी कि इससे फायदा होगा, मगर नहीं हुआ. यही वजह है कि अब पीएम मोदी नए सिरे से लकीर खींचने जा रहे हैं.

नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम बना रोड़ा?
इस समझौते से अमेरिका के सहयोग से भारत की अपनी परमाणु ऊर्जा जरूरतें पूरी करने का रास्ता खुला जो दशकों से बैन था. हालांकि, कुछ कारणों की वजह से इसमें उतनी सफलता नहीं मिल पाई. उम्मीद थी कि इससे अमेरिका के लिए भारत के साथ असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा. मगर भारत में सख्त दायित्व कानूनों (नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम) सहित विभिन्न कारणों से संबंधित सहयोग आगे नहीं बढ़ सका. उस वक्त भी ‘जनरल इलेक्ट्रिक’ और ‘वेस्टिंगहाउस’ जैसी अमेरिकी परमाणु रिएक्टर निर्माता कंपनियों ने भारत में परमाणु रिएक्टर स्थापित करने में गहरी रुचि दिखाई थी.

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जीरो कार्बन-नो पलूशन! जानिए कैसे भारत बनेगा न्यूक्लियर एनर्जी का ‘पावर हाउस’

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