कैसे तब इंदिरा अमेरिकी धमकी का बैंड बजाया, US प्रेसीडेंट की ही कर दी छुट्टी

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Last Updated:March 02, 2025, 13:56 IST

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को व्हाइट हाउस में बुलाकर जिस तरह ट्रंप ने अपमान किया, वैसा ही कुछ 54 साल पहले अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन ने भारत के साथ करने की कोशिश की थी तब भारतीय पीएम ने कैस…और पढ़ें

1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में शरणार्थी वहां की सेना के दमनचक्र के कारण भारत पहुंचने लगे थे तो इंदिरा गांधी ने संकेत दे दिया था वो इसे चुपचाप नहीं देख सकतीं. जब इस मामले की बातचीत के लिए वह अमेरिका पहुंचीं तो तत्कालानी अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन ने एक तरह से उन्हें दबाव में लेने की कोशिश की. अपमानजनक व्यवहार किया. धमकी दी कि अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की ओर अपने सैनिक भेजने की हिम्मत की तो ये भारत के लिए बहुत बुरा होगा. इस धमकी से अच्छे खासे देश के राष्ट्रप्रमुखों को पसीना आ जाता लेकिन इंदिरा गांधी तो अलग ही मिट्टी की बनीं थीं. उन्होंने अमेरिकी धमकी का मुंहतोड़ तोड़ जवाब दिया. अमेरिका मुंह लेकर रह गया. कुछ नहीं कर पाया. बल्कि उल्टे अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन की ही गद्दी चली गई.

आखिर तब कैसे इंदिरा गांधी ने अमेरिका को चुनौती देकर बांग्लादेश में ना केवल सेना भेजी बल्कि उसे पाकिस्तान से तोड़कर आजाद देश भी बनवा दिया. 1971 में बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम चल रहा था. पाकिस्तान की सेना बुरी तरह पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले इस इलाके में दमनचक्र चलाकर कत्लेआम कर रहे थे.

भारत पर असर इसलिए पड़ रहा था, क्योंकि बडी संख्या में शरणार्थी सीमा पारकर करके असम पहुंचने लगे. इससे भारत के सामने उन्हें ठहराने और भोजने देने का संकट खड़ा हो गया. जाहिर सी बात है कि पूर्वी पाकिस्तान में जो कुछ भी हो रहा था उसका असर भारत पर पड़ रहा था.

पाकिस्तान के तानाशाह जनरल याह्या खान ने 25 मार्च 1971 को ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ के जरिए ढाका में नरसंहार शुरू किया. 30 लाख से अधिक बांग्लादेशी मारे गए. 1 करोड़ से ज्यादा लोग भारत में शरण लेने आए. इंदिरा गांधी ने इसे मानवीय संकट और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया.

अमेरिका ने इंदिरा गांधी को दी चुपचाप रहने की धमकी
भारत इससे चिंतित था लेकिन अमेरिका ने भारत को धमकी दी कि वो केवल चुपचाप रहे. कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तब पाकिस्तान अमेरिका के लाड़ले देशों में था. इसी वजह से जब इंदिरा गांधी वाशिंगटन पहुंची तो उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ. इंदिरा एक झटके से वहां से उठीं और निकल गईं.

इंदिरा का अपमान करने की कोशिश की
अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर खुले तौर पर पाकिस्तान के समर्थन में थे. वे नहीं चाहते थे कि भारत पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में सैन्य हस्तक्षेप करे. निक्सन और किसिंजर ने इंदिरा गांधी को निजी बातचीत में अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया था. हालांकि तब इंदिरा वहां नहीं थीं. 2005 में सार्वजनिक हुई अमेरिकी सरकार की सीक्रेट रिकॉर्डिंग्स से पता चला कि निक्सन ने इंदिरा गांधी के लिए नस्लीय और अपमानजनक शब्द कहे थे. किसिंजर ने भी भारत को “गंदा और अहंकारी देश” बताया था.

तब इंदिरा ने बजा दिया निक्सन का ही बैंड
इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सेना भेजने का फैसला अमेरिका की खुली नाराजगी और धमकियों के बावजूद उनका बैंड बजाने में कोई कोरकसर बाकी नहीं रखी. ये निर्णय उनके राजनीतिक दृढ़ संकल्प, कूटनीतिक चतुराई और रणनीतिक सैन्य तैयारियों का नतीजा था. अमेरिका को इस तरह का जवाब आजतक शायद कोई देश नहीं दे पाया है.

झल्लाने के अलावा कुछ नहीं कर सका अमेरिका
इंदिरा ने जब अमेरिका की धमकी की अनदेखी करते हुए बांग्लादेश में अपनी सेना उतार दी तो अमेरिका बुरी तरह झल्ला गया. अमेरिकी प्रेसीडेंट दूसरे देशों को दबाव में लेने के आदी हैं, वह इंदिरा गांधी की कार्रवाई से स्तब्ध रह गए. फिर भारत को सबक सिखाने के लिए सातवां बेड़ा (USS Enterprise समेत युद्धपोतों का एक समूह) बंगाल की खाड़ी में भेज दिया. इंदिरा उससे भी नहीं डरीं और सैन्य अभियान जारी रखा.

सोवियत संघ के साथ रणनीतिक समझौता
इंदिरा गांधी ने पहले ही इस खतरे को भांप लिया था. अगस्त 1971 में सोवियत संघ (USSR) के साथ 20 वर्षीय भारत-सोवियत संघ मैत्री, शांति और सहयोग संधि (Indo-Soviet Treaty of Peace, Friendship and Cooperation) पर हस्ताक्षर कर लिए थे. इस समझौते ने भारत को राजनीतिक और सैन्य सुरक्षा दी. अगर अमेरिका या चीन ने भारत पर हमला किया, तो सोवियत संघ भारत की मदद के लिए आगे आएगा.

इस संधि के कारण सोवियत नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी सातवें बेड़े को जवाब देने के लिए अपनी पनडुब्बियां तैनात कर दीं. इस कूटनीतिक चाल ने अमेरिका और चीन के किसी भी संभावित हस्तक्षेप को रोक दिया.

इंदिरा गांधी की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति
इंदिरा गांधी ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव को संतुलित करने के लिए व्यापक कूटनीति अपनाई. उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की यात्राएं कीं. उन्हें समझाने की कोशिश की कि यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है. जब अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया, तो इंदिरा गांधी ने सोवियत संघ, फ्रांस और कुछ अन्य देशों को भारत के पक्ष में लाने में सफलता पाई.

भारतीय सेना की रणनीतिक तैयारी और निर्णायक युद्ध
भारत ने 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के हवाई हमलों के जवाब में औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा की. भारतीय सेना ने 13 दिन में ही पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. 16 दिसंबर 1971 को ढाका में जनरल ए. ए. के. नियाज़ी ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था.

अमेरिका देखता रह गया और पाकिस्तान टूट गया
यानि अमेरिका भारत को रोकने में पूरी तरह असफल रहा. निक्सन की धमकियों का इंदिरा गांधी ने बैंड बजा दिया. वो केवल देखते रह गए. झल्लाते रहे. बांग्लादेश आज़ाद ही नहीं हुआ. उसे तुरंत अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिलनी शुरू हो गई. इंदिरा गांधी ने अमेरिका के खुले विरोध के बावजूद बांग्लादेश युद्ध में सैन्य कार्रवाई की और एक नए देश को जन्म दिया.

निक्सन नाराज तो थे लेकिन क्या कर पाते
इंदिरा गांधी की हिम्मत और साहस ने तब भारतीय राजनीति में खुद को “लौह महिला” के रूप में स्थापित कर दिया. 1971 के युद्ध के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर की भारत और इंदिरा गांधी के प्रति नाराजगी जारी रही, लेकिन वे सीधे तौर पर कोई और धमकी देने की स्थिति में नहीं थे.

निक्सन प्रशासन ने भारत को दबाव में लाने और उसे सजा देने के लिए कई कदम उठाए. भारत को दी जाने वाली आर्थिक और सैन्य सहायता में कटौती कर दी. अमेरिका ने वर्ल्ड बैंक और अन्य संस्थाओं के जरिए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन भारत ने सोवियत संघ और अन्य मित्र देशों से समर्थन लेकर इस असर को कम कर लिया.

रिचर्ड निक्सन को ही देना पड़ा इस्तीफा
जिस घमंडी रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को धमकी दी, खुद उनका ही पतन हो गया. उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. 1974 में वाटरगेट स्कैंडल के कारण निक्सन को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा. दूसरी तरफ, इंदिरा गांधी ने भारत को एक मजबूत वैश्विक शक्ति बनाने की दिशा में अपना काम जारी रखा.

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