Explainer: ट्रंप क्यों हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से नाराज हैं, क्यों रोकी दुनिया के सबसे प्रतिष्ठत विवि की मदद

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हार्वर्ड विश्वविद्यालय 388 साल पुरानी यूनिर्वसिटी है. बहुत से लोग मानते हैं कि ये एलीट क्लास की यूनिवर्सिटी है. बकौल अमेरिकी प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप ये मूर्खों और नफरतियों की जगह बन गई है. आमतौर पर इस यूनिवर्सिटी को वामपंथियों का गढ़ बताया जाता है. ये वही विश्वविद्यालय है जहां इजरायल के खिलाफ गाजा पर किए हमलों और दमन के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन हुए. तो ट्रंप का कहना है कि ये यूनिवर्सिटी यहूदी विरोध फैला रही है. ट्रंप को ये भी लगता है कि ये यूनिवर्सिटी मैरिट पर दाखिले नहीं करती. लिहाजा उन्होंने इसकी मोटी सरकारी मदद रोक दी है. हालांकि ट्रंप की नाराजगी के कारण कई और भी वजहें हैं.

पहले ये जानते हैं कि ये विश्वविद्यालय कैसे बना और कैसे पॉपुलर होता गया. यहां पढ़ना दुनिया की सबसे बड़ी ही प्रतिष्ठित बात मानी जाती है. भारत के कई उद्योगपति, नेता यहां पढ़ चुके हैं. यहां पढ़ना लोगों का सपना होता है. हालांकि इसके विरोधी कहते हैं ये विश्वविद्यालय में पढ़ने का सपना केवल अभिजात्य ही पूरा कर सकते हैं, क्योंकि यहां पढ़ना बहुत महंगा होता है.

हार्वर्ड विश्वविद्यालय की स्थापना 1636 में मैसाचुसेट्स में एक कानून के जरिए की गई. शुरुआत में इसे “न्यू कॉलेज” या “द कॉलेज ऑफ न्यू टाउन” कहा जाता था, जिसका मुख्य उद्देश्य पादरियों को शिक्षित करना था. 1638 में प्यूरिटन पादरी जॉन हार्वर्ड ने इस संस्थान को अपनी पुस्तकालय की 400 किताबें और 779 डॉलर की राशि दान की, जिसके सम्मान में 1639 में इसका नाम हार्वर्ड कॉलेज रखा गया. 1642 में नौ छात्रों के साथ इसमें पढ़ाई शुरू हुई.

हार्वर्ड ने 18वीं शताब्दी में धीरे-धीरे धर्मनिरपेक्ष शिक्षा अपनाई. अमेरिकी गृहयुद्ध के बाद, 1869 से 1909 तक के कार्यकाल में राष्ट्रपति चार्ल्स विलियम इलियट ने इसे आधुनिक शोध विश्वविद्यालय में तब्दील कर दिया. इसके बाद हार्वर्ड ने व्यावसायिक स्कूलों और ग्रेजुएट स्कूलों की स्थापना की. 20वीं सदी में यह अमेरिका का सबसे प्रतिष्ठित और सबसे बड़ा निजी विश्वविद्यालय बन गया.

हार्वर्ड विश्वविद्यालय की विश्व प्रसिद्धि के पीछे इसके उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, रिसर्च और नोबेल पुरस्कार विजेताओं की संख्या है. (News18 AI)

हार्वर्ड विश्वविद्यालय की विश्व प्रसिद्धि के पीछे इसके उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, रिसर्च और नोबेल पुरस्कार विजेताओं की संख्या है. यह आइवी लीग का सदस्य है, जिन्हें दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में गिना जाता है.

सवाल – ट्रंप क्यों हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से नाराज क्यों हैं, क्यों फंडिंग रोक दी?
– डोनाल्ड ट्रंप और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच तनाव हाल के महीनों में लगातार पूरी दुनिया में सुर्खियों में रहा है. ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड की 2.2 अरब डॉलर की संघीय फंडिंग रोक दी. इसे “नफरत और मूर्खता” सिखाने वाला संस्थान करार दिया. इस विवाद में विचारधारा, शैक्षणिक स्वतंत्रता, और विश्वविद्यालय की नीतियों को लेकर जबरदस्त मतभेद शामिल हैं.

सवाल – हार्वर्ड में जब इजरायल विरोधी प्रदर्शन हुए तो ये ट्रंप को क्यों रास नहीं आए?
– ट्रंप प्रशासन का सबसे बड़ा आरोप है कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी यहूदी छात्रों और प्रोफेसरों के खिलाफ भेदभाव कर रही है. इसे रोक नहीं रही. ये बात इसलिए कही गई, क्योंकि यहां वर्ष 2023 में हमास और इजरायल के संघर्ष के दौरान फिलिस्तीन समर्थक और इजरायल विरोधी प्रदर्शन तेज हो गए. हालांकि ऐसा केवल हार्वर्ड ही नहीं बल्कि कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों में हुआ. इन प्रदर्शनों में कुछ स्थानों पर “गैस द ज्यूज” जैसे नफरत भरे नारे सुनाई दिए, जिसके कारण यहूदी छात्रों ने असुरक्षा की शिकायत की.

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वर्ष 2023 में इजरायल द्वारा गाजा में लगातार हमलों और बड़े पैमाने पर बेगुनाहों की जान जाने के बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में बड़े पैमाने पर इजरायल विरोधी प्रदर्शन हुए. जिससे ये भावना भी फैली कि ये विवि यहूदी विरोधी भावनाओं को बढ़ा रहा है. (News18 AI)

ट्रंप प्रशासन ने इसे संघीय कानून का उल्लंघन माना. हार्वर्ड पर यहूदी-विरोधी (एंटी-सेमिटिज्म) गतिविधियों को रोकने में नाकामी का आरोप लगाया. ट्रंप का तर्क है कि इतने प्रतिष्ठित संस्थान को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी छात्र सुरक्षित महसूस करें. उन्होंने हार्वर्ड से विवादास्पद प्रदर्शनों पर रोक लगाने की मांग की. हालांकि हार्वर्ड ने ऐसी मांगें खारिज कर दीं. जिसके बाद ट्रंप प्रशासन ने 2.2 अरब डॉलर की फंडिंग रोकने का कठोर कदम उठाया.

सवाल – वोक संस्कृति क्या है, जिसके यहां फलने -फूलने और होने का आरोप ट्रंप समर्थक लगाते रहे हैं?
– ट्रंप और उनके समर्थक हार्वर्ड को “वोक” (उग्र वामपंथी विचारधारा) का गढ़ मानते हैं. यानि वो मानते हैं कि ये यूनिवर्सिटी वामपंथी विचारधारा को आगे बढ़ाता है. ट्रंप का मानना है कि हार्वर्ड जैसे संस्थान डायवर्सिटी, इक्विटी, और इनक्लूजन (DEI) कार्यक्रमों के जरिए विभाजनकारी विचारधाराओं को बढ़ावा देते हैं, जो अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ हैं. इसी वजह से उन्होंने हार्वर्ड की आलोचना करते हुए लिखा कि ये अब सीखने का स्थान नहीं रहा, बल्कि “नफरत और मूर्खता” सिखाता है.

Donald Trump

डोनाल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सामने कई तरह की शर्तें रखी थीं, जो स्टाफ की नियुक्ति से लेकर दाखिले की प्रक्रिया में बदलाव से संबंधित थी, जिसे यूनिवर्सिटी ने खारिज कर दिया. (Image:AP)

ट्रंप ने विशेष रूप से हार्वर्ड द्वारा न्यूयॉर्क और शिकागो के पूर्व मेयर बिल डी ब्लासियो और लॉरी लाइटफुट को प्रोफेसर के रूप में नियुक्त करने पर आपत्ति जताई. तंज कसा कि ये लोग अपने शहरों को तबाह करने के बाद अब हार्वर्ड में “शहर प्रबंधन” सिखा रहे हैं. ट्रंप का आरोप है कि हार्वर्ड केवल उन प्रोफेसरों को बढ़ावा देता है जो उनकी विचारधारा से मेल खाते हैं.

सवाल – ट्रंप क्या चाहते हैं कि हार्वर्ड आखिर क्या करे जो वो नहीं कर रहा?
– ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड से अपनी शासन व्यवस्था, भर्ती प्रथाओं, और प्रवेश प्रक्रियाओं में व्यापक सुधार करने की मांग की थी. इन मांगों में DEI कार्यक्रमों को बंद करना, मेरिट-आधारित प्रवेश प्रणाली लागू करना और सरकारी निगरानी को स्वीकार करना शामिल था. हार्वर्ड के अध्यक्ष एलन गार्बर ने इन शर्तों को असंवैधानिक और विश्वविद्यालय की स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए खारिज कर दिया. गार्बर ने कहा कि कोई भी सरकार यह तय नहीं कर सकती कि निजी विश्वविद्यालय क्या पढ़ाए, किसे नियुक्त करे या किस विषय पर शोध करे.

हार्वर्ड के इन इनकार को ट्रंप ने व्यक्तिगत चुनौती के रूप में लिया. उन्होंने कहा कि अगर हार्वर्ड उनकी नीतियों का पालन नहीं करता, तो उसे सरकारी फंडिंग का अधिकार नहीं. दरअसल हार्वर्ड पहले से ही उनके निशाने पर रहा है. उसे वो लिबरल मानते हैं.

सवाल – हार्वर्ड में कितने देशों से कितने छात्र पढ़ने आते हैं, जिस पर रोक लगाने की धमकी ट्रंप ने दी है?
– हार्वर्ड विश्वविद्यालय में दुनिया भर के 200 से अधिक देशों से छात्र आते हैं. फिलहाल यहां करीब 21,000 छात्र पढ़ रहे हैं, जिनमें करीब 7,000 विदेशी छात्र हैं. हर साल हार्वर्ड में लगभग 21,000 नए छात्र दाखिला लेते हैं. इनमें से लगभग 18% छात्र अंतरराष्ट्रीय (विदेशी) होते हैं, जो लगभग 3,700 छात्रों के बराबर है. ये इसे एक अत्यंत विविध और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाता है.

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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हर साल 200 से ज्यादा देशों से हजारों छात्र पढ़ने आते हैं. इसलिए ये यूनिवर्सिटी वाइब्रेंट और सही मायनों में इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी बन चुकी है. (News18 AI)

ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड को धमकी दी कि अगर वह उनकी शर्तें नहीं मानता, तो विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों के दाखिले पर रोक लगाई जा सकती है. अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी विभाग की प्रमुख क्रिस्टी नोएम ने कहा कि हार्वर्ड “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा” है और विदेशी छात्रों की गतिविधियों पर निगरानी बढ़ाने की जरूरत है. यह धमकी भारतीय छात्रों सहित उन हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए चिंता की बात है, जो वहां पढ़ने का सपना देखते हैं.

सवाल – क्या ट्रंप प्रशासन के फंड रोकने पर विश्वविद्यालय ने कोई कानूनी कदम उठाए हैं?
– हार्वर्ड के प्रोफेसरों ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मैसाचुसेट्स की फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में मुकदमा दायर किया है, उनका तर्क है कि फंडिंग रोकना और नीतिगत बदलाव की मांग करना असंवैधानिक है. प्रोफेसरों का कहना है कि यह कदम संविधान के पहले संशोधन का उल्लंघन करता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शैक्षणिक स्वायत्तता की रक्षा करता है.
हालांकि ट्रंप प्रशासन का कहना है कि अगर सरकार मोटी फंडिंग करेगी तो जवाबदेही भी सुनिश्चित करेगी.

सवाल – अगर ट्रंप प्रशासन फंडिंग रोक देगा तो युूनिवर्सिटी पर इसका क्या असर पड़ेगा?
हालांकि हार्वर्ड के पास 53 अरब डॉलर का अपना फंड है, सरकारी सहायता खोना उसके लिए बड़ा झटका हो सकता है. अगर ट्रंप सरकार ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की 2.2 अरब डॉलर (लगभग 18,000 करोड़ रुपये) की फंडिंग रोक दी है, तो उसके शोध प्रोजेक्ट्स, लैब्स, और इनोवेटिक एक्टिविटीज पर खराब असर पड़ेगा.
फंडिंग में कटौती से छात्रवृत्ति, वित्तीय सहायता, और फैकल्टी नियुक्ति में कमी आ जाएगी. इससे टैलेंटेड छात्रों और प्रोफेसरों को नुकसान होगा.
हार्वर्ड की अंतरराष्ट्रीय विविधता और वैश्विक प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा. ट्रंप ने ये भी धमकी दी है कि अगर हार्वर्ड ने उनकी शर्तें नहीं मानीं तो उसे टैक्स-छूट का दर्जा भी खोना पड़ सकता है, जिससे वित्तीय बोझ और बढ़ जाएगा.

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