पनामा नहर 1999 से पहले अमेरिका के पास थीअब पनामा देश का इस पर नियंत्रण हैट्रम्प पनामा में जहाजों पर बढ़ी फीस से खफा हैं
दुनिया में बड़ा बड़ा सामान हवाई मार्ग से नहीं बल्कि समुद्री मार्ग से आता जाता है. पनामा नहर भी बहुत अहम रास्ता है जो सैकड़ों जहाजों का एशिया से अमेरिकी महाद्वीपों के पूर्वी हिस्सों तक जाने के लिए रास्ते को आसान बनाता है. लेकिन यह नहर दुनिया में एक आर्थिक सुविधा के अलावा इंजीनियरिंग के बेतरीन नमूने के तौर पर जानी जाती है. हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि अमेरिका पनामा नहर पर कब्जा करने की कोशिश कर सकता है. फिलहाल पनामा नहर पनामा देश की सरकार के नियंत्रण में है. लेकिन पहले ऐसा नहीं था.
क्या है पनामा नहर और उसका महत्व
पनामा नहर जमीन के उस छोटे से हिस्से को काटकर बनाई गई जो उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप को जोड़ता था. इस वजह से अगर किसी को पानी के रास्ते एशिया से अमेरिका महाद्वीपों के पूर्वी इलाकों में जाना होता तो उसके लिए एकमात्र विकिल्प यही थी की वह पहले दक्षिणी अमेरिका के निचले सिरे तक जाता और फिर उत्तर की ओर जाता. इसमें उसे हजारों किलोमीटर का सफर करना होता था. लेकिन नहर बनने के बाद 12874 किलोमीटर का सफर बचने लगा.
बहुत हुए प्रयास
भूगोल को समझने पर साफ समझ में आने लगा कि अगर पनामा में एक नहर बन जाए तो दुनिया के कई देशों का समय और पैसा दोनों बहुत ज्यादा बच सकता है. कई सदियों तक यह विचार ही रहा और इस पर कोशिशों के बावजूद शुरुआत नहीं हो सकी, लेकिन 1880 के दशक में फ्रांस ने पनामा कैनाल बनाने की शुरुआत की. पर कठिन भौगोलिक और स्वास्थ्य चुनौतियों (मलेरिया और पीले बुखार जैसी बीमारियों) की वजह से यह कोशिश सफल ना हो सकी.
पनामा नहर इंजीनियरिंग की एक नायाब मिसाल है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
आसान नहीं था इसे बनाना
क्या थी चुनौती दरअसल पनामा देश सबसे कम चौड़ाई में प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर को अलग करता है. यहां एक नहर बनाना कई लिहाज से मुश्किल था. इसमें सबसे बड़ी दिक्कत दोनों महासागरों के जलस्तरों का अलग अलग होना है. इसे ऐसा समझा जा सकता है कि अंटलांटिक से प्रशांत महासार की ओर जाने में जहाजों को ऊपर तक चढ़ाने की जरूरत होती है. क्योंकि वैसे तो स्तर का अंतर बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन ज्वार भाटा यह अंतर बड़ा कर देता है.
अमेरिका ने पूरा किया यह कठिन काम
1904 में अमेरिका ने पनामा नहर के निर्माण की परियोजना को अपने हाथों में लिया था. अमेरिकी इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने बेहतर तकनीक और स्वास्थ्य उपायों का उपयोग करते हुए इसे 1914 में पूरा किया इसके निर्माण में बड़ी मात्रा में संसाधन, मजदूर, और इंजीनियरिंग कौशल लगाए गए थे. और दोनों किनारों के स्तर के अंतर की समस्या गेट एंड लॉक तकनीक से सुलझाया गया, जो आज भी इंजीनियरिंग की बेहतरीन मिसाल है.

डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि अमेरिका का पनामा नहर पनामा देश को देना गलती थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
कैसे पार होते हैं जहाज
82 किलोमीटर की यह नहर बीच में गैटुन झील से गुजरती है जिसके दोनों तरफ गेट लगे हैं. यह साफ पानी की झील समुद्र तल से 26 मीटर ऊंची है. इसके लिए खास गेट और लॉक सिस्टम का उपयोग होता है. जिसमें पहले जहाज को झील के पास लाकर उसके पीछे गेट बंद किया जाता है. फिर छोटे से हिस्से में पानी भर जहाज का जल स्तर झील तक लाने के बाद जहाज झील में लाया जाता है फिर पूर्व में अटलांटिक वाले निचले हिस्से में जाने से पहले ऐसी प्रकिया का इस्तेमाल कर जहाज को निचले जल स्तर पर लाया जाता है. इस सब में लाखों लीटर पानी की इस्तेमाल होता है.
अमेरिका से पनामा तक
इसके बाद लंबे समय तक यह नहर अमेरिका के नियंत्रण में रही. लेकिन 1977 में अमेरिका और पनामा के बीच एक संधि (Torrijos-Carter Treaties) पर हस्ताक्षर हुए. इसमें यह तय किया गया कि 1999 तक पनामा नहर का संचालन अमेरिका करेगा, और इसके बाद इसे पनामा को सौंप दिया जाएगा. ऐसा हुआ भी. वर्तमान में नहर का नियंत्रण पनामा सरकार के पास है. इसे संचालित और प्रबंधित करने की जिम्मेदारी पनामा कैनाल अथॉरिटी (Panama Canal Authority) की है. यह 31 दिसंबर 1999 को अमेरिका से पनामा को हस्तांतरित किया गया था, जिसके बाद से यह पूरी तरह से पनामा के नियंत्रण में है.
लेकिन 2023 में पनामा और उसके आसपास के मध्य अमेरिकी देशों में सूखे के हालात आ गए इससे वहां जहाजों की रोजाना की आवाजाही कम हो गई थी. अब ट्रम्प का कहना है कि नहर से गुजरने वाले जहाजों से अनावश्यक फीस ली जा रही है इसलिए उनका नया प्रशासन पनामा पर नियंत्रण वापस हासिल करने की कोशिश कर सकती है. ट्रम्प का मानना है कि अमेरिका ने पनामा को नहर देकर गलती की थी.
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FIRST PUBLISHED : December 23, 2024, 13:03 IST
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