Explainer: क्यों गूगल के क्रोम को बिकवाने की हो रही है कोशिश, अगर ये हुआ तो जानें क्या- क्या होगा?

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अमेरिका के न्याय विभाग (DoJ) ने फेडरल कोर्ट से कहा है कि वह गूगल पर क्रोम ब्राउज़र बेचने का दबाव डाले. गूगल की मालिक कंपनी अल्फाबेट इंक. का ब्राउज़र क्रोम दुनिया के सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाला ब्राउज़र है. लेकिन इस पर बार बार अपनी मोनोपोली बनाने और उसका दुरुपयोग करने के आरोप लगते रहते हैं. अब अमेरिका ने न्याय विभाग ने इस समस्या को सुलझाने के लिए प्रस्ताव दिया है कि कोर्ट अल्फाबेट इंक. को ब्राउज़र बेचने का आदेश दे ताकि इंटरनेट सर्च मार्केट और उससे जुड़े विज्ञापन पर गूगल की मोनोपोली खत्म की जा सके. पर सवाल ये है कि अगर ऐसा हो गया है, अगर अल्फोबेट को क्रोम बेचने पर मजबूर होना पड़ा तो क्या होगा? क्या इससे इंटरनेट की दुनिया पर कोई असर होगा और इसका भारत पर कैसा असर होगा?

क्या गूगल इसे रोक पाएगा, यह अलग सवाल?
लेकिन इन अगर मगर की संभावनाओं से पहले तो अहम सवाल यही है कि क्या ऐसा हो भी पाएगा. कंपनी के इरादे को इस कदम को रोकने के लगते हैं. गूगल ने कहा कि अगर उसे क्रोम बेचने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह कदम उसके उपभोक्ताओं और व्यवसायों को नुकसान पहुंचाएगा. अब देखना यह है कि क्या गूगल यह साबित कर सकेगा और क्या वह इसके आधार पर यह कार्रवाई रोक सकेगा. या क्या अमेरिकी कोर्ट कंपनी को क्रोम बेचने के लिए वाकई मजबूर कर सकेगा?

प्रतिस्पर्धियों का टिकना हो गया था मुश्किल
दावा किया जा रहा है कि गूगल ने एपल मोजिला, सैमसंग और अन्य के साथ डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन होने के लिए सौदे करके प्रतिद्वंद्वियों को बाहर कर दिया था, जो यूजर्स के स्मार्टफ़ोन या वेब ब्राउज़र में नया टैब खोलने पर दिखाई देता है. ऐसे में ब्राउजर और मोबाइल आपरेटिंग सिस्टम के बाजार में किसी भी नई कंपनी का टिकना असंभव सा लगता है, जो कि चिंता का कारण है.

गूगल की मोनोपोली का असर इंटरनेट और कम्प्यूटर उत्पादों की दुनिया पर पड़ा था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)

मोनोपोली और गूगल जैसी बड़ी कंपनियां
हाल के सालों में  रेग्युलेटर्स ने सबसे बड़ी तकनीकी कंपनियों को बेकाबू होने से रोकने की कोशिश की हैं. न्याय विभाग ने विज्ञापन तकनीक में अपने दबदबे को लेकर गूगल पर मुकदमा दायर किया है. वहीं एपल ने उपभोक्ताओं के लिए उपकरणों और सॉफ़्टवेयर को एक साथ खरीदने की मजबूरी बढ़ा दी है. फेडरल ट्रेड कमीशन ने अमेजन ओर मेटा पर भी मुकदमे दायर किए है. उन पर भी कॉम्पीटशन विरोधी बर्ताव और प्रतिद्वंदियों को दबाने का आरोप है.

क्या होगा क्रोम बिकने का असर?
अगर यह फैसला हो गया कि गूगल को क्रोम बेचना ही होगा तो इसके कई नतीजे होंगे जो अमेरिका ही नहीं बल्कि भारत सहित पूरी दुनिया पर खासा असर डालेंगे.  माना जा रहा है कि इससे कंपनी के 2 ट्रिलियन डॉलर 1अमेन690.113 खरब रुपये यानी के व्यवसाय पर खासा असर होगा और लेकिन इसके बाद यह बड़ी कंपनियों पर नकेल और कसी जा सकती है.

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फिलहाल गूगल क्रोम का ब्राउज़र के बाजार के आधे से अधिक हिस्से पर कब्जा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)

व्यवसायिक मानकों पर होगा असर
इस बिक्री का सबसे बड़ा असर व्यवसायिक मानकों पर होगा. क्योंकि इससे अमेरिका सहित दूसरे देशों में मोनोपोली का फायदा उठाने वाली कंपनियों पर कार्रवाई करने के लिए प्रेरणा मिलेगी. दुनिया में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के माहौल बेहतर बनने की कोशिश ज्यादा देखने को मिल सकती हैं. ऐसे में लोगों को कुछ नई तरह के और ज्यादा फीचर्स वाले उत्पाद देखने को मिलेंगे.

इंटरनेट की दुनिया पर होगा ये असर
इसका सबसे बड़ा असर इंटरनेट की दुनिया में देखने को मिलेगा. क्रोम बिकने से लोग एपल और कई बड़ी कंपनियों के के उत्पादों में किसी भी दूसरी कंपनी के ब्राउजर का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र होंगे. और एपल में क्रोम का इस्तेमाल मजबूरी नहीं रह जाएगी. बाजार में प्रतिस्पर्धी चीजें ज्यादा देखने को मिलेंगी और भारत भी इससे अछूता नहीं रह पाएगा.

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