US-Iran: यमन में ईरान के प्रॉक्सी हूती विद्रोहियों पर अमेरिकी हमले के बाद कई सवाल उठ रहे हैं. कुछ का मानना है कि अमेरिका मिडिल ईस्ट में लगी शांत करने की कोशिश में लगा हुआ है, तो कुछ का मानना है कि अमेरिका ईरान को सबक सिखाना चाहता है. हूती विद्रोही लंबे समय से लाल सागर में शिपिंग और इजरायल पर हमले कर रहे हैं, जिसके जवाब में अमेरिका ने यमन में भारी बमबारी की है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की रणनीति केवल यमन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका दायरा कहीं अधिक बड़ा है. कई रणनीतिकारों ने अमेरिका के इस कदम को डोनाल्ड ट्रंप की तात्कालिक और अव्यवस्थित विदेश नीति करार दिया है. वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन का असली मकसद ईरान को परमाणु समझौते के लिए मजबूर करना है. इसके लिए अमेरिका इजरायल को हमलों की खुली छूट देने के साथ-साथ यमन, सीरिया और लेबनान में भी आक्रामक कदम उठा रहा है.
इजरायल को मिला ग्रीन सिग्नल
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इजरायल को ईरानी ठिकानों पर हमले की खुली छूट दे दी है, जो अब तक किसी भी अमेरिकी प्रशासन ने नहीं किया था. इसके अलावा, जब इजरायल ने सीजफायर तोड़ते हुए गाजा पर दोबारा बमबारी शुरू की, तो ट्रंप प्रशासन ने एक बार फिर से बेंजामिन नेतन्याहू का समर्थन किया. इसका स्पष्ट उद्देश्य ईरान पर दबाव बनाना और उसके प्रॉक्सी संगठनों को कमजोर करके उसे घुटनों पर लाने की रणनीति अपनाना है.
ईरान को काउंटर करने की यमन रणनीति
अमेरिका ने 15 मार्च से यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ हमले तेज कर दिए हैं. इन हमलों का मुख्य उद्देश्य लाल सागर में शिपिंग कंटेनरों और इजरायल पर होने वाले हमलों को रोकना है. अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘जब हूती हमले बंद कर देंगे, तो हमारी कार्रवाई भी रुक जाएगी.’ हालांकि अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि हूती विद्रोहियों के पीछे ईरान का हाथ है, जो उन्हें धन और प्रशिक्षण प्रदान करता है. खुद डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि यदि हूतियों के हमले नहीं रुके, तो ईरान को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. ट्रंप की यह रणनीति ईरान को परमाणु समझौते के लिए मजबूर करने का हिस्सा मानी जा रही है. हालांकि, अमेरिकी हमलों के बावजूद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने झुकने से इनकार कर दिया और ट्रंप के परमाणु समझौते पर बातचीत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
ईरान के सामने दो विकल्प
यमन में हूती विद्रोहियों पर अमेरिकी हमलों ने ट्रंप की उस चेतावनी को सही साबित किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को नहीं रोकता और परमाणु हथियार बनाने की कगार पर पहुंचता है, तो अमेरिका और इजरायल उसके परमाणु स्थलों पर विनाशकारी हमले कर सकते हैं. ट्रंप प्रशासन ने इजरायल के साथ संयुक्त हवाई अभ्यास करके एक और कड़ा संदेश दिया है. इस सैन्य अभ्यास में अमेरिकी B-52 बमवर्षक विमानों ने हिस्सा लिया, जो ईरान की गहराई में स्थित भूमिगत परमाणु ठिकानों को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं. साथ ही इजरायली F-15I और F-35I लड़ाकू विमानों ने भी इसमें भाग लिया, जो साफ तौर पर ईरान पर संभावित हमले का पूर्वाभ्यास माना जा रहा है.
कमजोर हुआ एयर डिफेंस सिस्टम
दूसरी ओर, ईरान ने यह स्वीकार किया है कि अक्टूबर 2024 में इजरायली हमले में उसका सबसे मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम नष्ट हो गया था, जिससे उसकी सैन्य शक्ति कमजोर हुई है. इसी कारण ईरान जल्द से जल्द रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने की कोशिश कर रहा है. लेकिन रूस पहले से ही सप्लाई चेन की समस्या से जूझ रहा है और अभी तक भारत को भी पूरी S-400 डिलीवरी नहीं दे पाया है. ऐसे में ईरान को रूस से झटका लग सकता है.
इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने ईरान पर प्रतिबंधों को और सख्त करने की योजना बनाई है. अमेरिका अब चीन को ईरानी तेल की सप्लाई रोकने की कोशिश कर रहा है, जिससे ईरान को अरबों डॉलर की आमदनी होती है. यह तेल बिक्री ईरान की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है, और अगर इसे काट दिया जाता है, तो ईरान लंबे समय तक इस दबाव को सहन नहीं कर पाएगा. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि ईरान कब तक ट्रंप के इस दबाव को झेल पाएगा और परमाणु समझौते पर बातचीत से दूर रहेगा?
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