US-Pakistan Crypto Deal: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और भारत की सैन्य प्रतिक्रिया ऑपरेशन सिंदूर से कुछ दिन पहले पाकिस्तान में एक हाई-प्रोफाइल क्रिप्टो डील पर साइन किए गए थे. यह डील अब भारत और अमेरिका दोनों में जांच के दायरे में है, क्योंकि इसमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के परिवार और पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर की भागीदारी की बात सामने आई है. यह डील अमेरिकी क्रिप्टो फर्म वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल और पाकिस्तान की नई बनी संस्था पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल के बीच हुई थी. डील की जानकारी सामने आने के बाद राजनीतिक और सुरक्षा विशेषज्ञों में गहरी चिंता देखी जा रही है.
वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल एक अमेरिकी क्रिप्टो और फिनटेक कंपनी है, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप के बेटे एरिक ट्रंप, डोनाल्ड ट्रंप जूनियर और उनके दामाद जेरेड कुशनर की संयुक्त रूप से 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है. यह फर्म अप्रैल 2025 में पाकिस्तान के साथ एक ब्लॉकचेन आधारित साझेदारी पर सहमत हुई थी. यह समझौता पाकिस्तान की क्रिप्टो काउंसिल के साथ हुआ, जो एक नई संस्था है. इस काउंसिल ने विश्वसनीयता के लिए बिनेंस एक्सचेंज के संस्थापक चांगपेंग झाओ को सलाहकार के रूप में नियुक्त किया. इस काउंसिल का मकसद पाकिस्तान को दक्षिण एशिया की क्रिप्टो राजधानी बनाना बताया गया है.
अमेरिका से एक प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान पहुंचा
इस समझौते पर दस्तखत करने अमेरिका से एक प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान पहुंचा था, जिसमें फर्म के संस्थापक ज़ाचरी विटकॉफ भी शामिल थे. जाचरी, स्टीव विटकॉफ के बेटे हैं, जो ट्रंप के पुराने कारोबारी सहयोगी रह चुके हैं और अब मध्य पूर्व के लिए अमेरिका के विशेष दूत हैं. सबसे अहम बात यह रही कि पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने खुद इस टीम का स्वागत किया और एक बंद कमरे में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ बैठक की. इस बंद कमरे की मीटिंग और सेना प्रमुख की भागीदारी ने इस समझौते को सामान्य व्यापारिक समझौते से आगे की शक्ल दे दी है.
डील की टाइमिंग को लेकर शक
पाकिस्तान की क्रिप्टो काउंसिल और वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल ने बयान जारी करते हुए इसे एक तकनीकी सहयोग बताया है. इसमें कहा गया है कि इस डील का मकसद पाकिस्तान में वित्तीय समावेशन और डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देना है. इसके तहत ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी को सरकारी संस्थानों में एकीकृत करने, स्टेबलकॉइन विकसित करने और क्रिप्टो आधारित पायलट प्रोजेक्ट्स को लागू करने की बात कही गई है, लेकिन इस डील की टाइमिंग और उसमें शामिल लोगों की बैकग्राउंड ने इसे सामान्य निवेश के बजाय एक रणनीतिक सौदे की तरह देखा जाने लगा है.
डील को लेकर जाहिर की चिंता
भारत में कई रणनीतिक विशेषज्ञों और सुरक्षा विश्लेषकों ने इस डील को लेकर चिंता जाहिर की है. उनका कहना है कि यह समझौता पाकिस्तान के आतंकी वित्त पोषण ढांचे को ढकने और फाइनेंशियल मैनिपुलेशन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. खास तौर पर तब जब भारत की सैन्य प्रतिक्रिया ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में आतंकी ढांचे को जबरदस्त नुकसान हुआ है. इस डील का समय और उसपर शामिल लोगों की भूमिका पर संदेह किया जा रहा है.
व्हाइट हाउस की ओर से बयान का इंतजार
अमेरिका में अभी तक ट्रंप परिवार और व्हाइट हाउस की ओर से कोई बयान नहीं आया है. वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल ने यह जरूर कहा है कि इस डील के पीछे कोई राजनीतिक मंशा नहीं है, लेकिन रणनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की पारदर्शिता से परे डील्स भविष्य में बड़े भू-राजनीतिक संकट का कारण बन सकती हैं.
भारत-अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में तनाव
पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर जैसी सैन्य कार्रवाई के तुरंत बाद सामने आई यह डील भारत-अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में एक नया और जटिल अध्याय जोड़ती है. यह साफ होता जा रहा है कि भविष्य की रणनीतिक लड़ाइयां सिर्फ हथियारों से नहीं बल्कि फाइनेंशियल और टेक्नोलॉजिकल एलायंस के जरिए भी लड़ी जाएंगी. जब तक इस डील की पूरी सच्चाई सामने नहीं आती, तब तक यह सवाल उठता रहेगा कि क्या यह डील तकनीकी विकास के लिए थी या इसके पीछे कोई छिपा हुआ राजनीतिक और सुरक्षा एजेंडा था?
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