अमेरिका से बढ़ते तनाव के बीच चीन का बड़ा फैसला! ‘ड्रैगन’ के नए प्लान के बारे में जानिए

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China Military Power: चीन ने अपने रक्षा बजट में 7.2 फीसदी की वृद्धि की घोषणा की है, जिससे उसका वार्षिक सैन्य खर्च 245 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. यह कदम चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को और मजबूत करने की दिशा में उठाया गया है. इस बढ़ोतरी के साथ चीन का रक्षा बजट भारत के 79 अरब डॉलर के बजट से लगभग तीन गुना अधिक हो गया है. यह वृद्धि ऐसे समय में आई है, जब चीन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति को विस्तार दे रहा है और अमेरिका के साथ टैरिफ युद्ध में उलझा हुआ है.

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सैन्य क्षेत्र में चीन की ताकत को तेजी से बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. चीन की यह रणनीति जमीन, हवा, पानी, परमाणु, अंतरिक्ष, और साइबर सुरक्षा के क्षेत्रों में अपने सैन्य प्रभुत्व को बढ़ाने पर केंद्रित है. चीन की नौसेना, जिसके पास 370 से अधिक युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं. इस वजह से ये दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना मानी जाती है. हालांकि यह तकनीकी रूप से अमेरिका के मुकाबले कमजोर हो सकती है.

ताइवान को घेरने की तैयारी
चीन ताइवान के चारों ओर अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ा रहा है और अमेरिका को चेतावनी दे चुका है कि वह किसी भी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा. इसके अलावा, चीन हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में भी अपनी पकड़ को मजबूत कर रहा है, जो सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा के लिए एक चुनौती है.

भारत के लिए चुनौतियां
चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और पाकिस्तान के साथ उसका गठजोड़ भारत के लिए गंभीर सुरक्षा खतरे पैदा कर सकता है. पाकिस्तान को चीन से मिल रही सैन्य मदद, विशेषकर नौसेना सहयोग, हिंद महासागर में भारत की सुरक्षा को चुनौती दे सकती है. भारत के पास एक विशाल सेना है, लेकिन सैन्य आधुनिकीकरण के मामले में यह पीछे रह जाता है. भारतीय सेना के भारी वेतन और पेंशन खर्च के कारण रक्षा बजट का केवल 25 फीसदी ही सैन्य आधुनिकीकरण के लिए बचता है, जो कि चीन जैसी सैन्य ताकतों के मुकाबले अपर्याप्त है.

भारतीय वायुसेना की स्थिति
भारत की वायुसेना की हालत विशेष रूप से चिंताजनक है. भारतीय वायुसेना के पास केवल 30 लड़ाकू स्क्वाड्रन हैं, जबकि इसकी अनुमोदित क्षमता 42.5 स्क्वाड्रन होनी चाहिए. इसके विपरीत, चीन पहले ही अपने J-20 स्टील्थ फाइटर जेट्स को भारतीय सीमा के पास तैनात कर चुका है और अब वह 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का प्रदर्शन कर रहा है. इसके अलावा, चीन पाकिस्तान को 40 से अधिक J-35A फाइटर जेट्स देने की योजना बना रहा है, जिससे भारत को दो मोर्चों पर चुनौती का सामना करना पड़ेगा.

परमाणु और समुद्री शक्ति का संतुलन
परमाणु क्षेत्र में, चीन दुनिया में सबसे तेजी से परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाने वाला देश बन गया है. वर्तमान में चीन के पास 600 से अधिक परमाणु हथियार हैं, और यह संख्या 2035 तक 1,000 से अधिक हो सकती है. भारत और पाकिस्तान के पास लगभग 160-170 परमाणु हथियार हैं, लेकिन चीन पाकिस्तान को सैन्य मदद देकर भारत पर दबाव बनाने की रणनीति अपना रहा है. चीन-पाकिस्तान गठजोड़ से भारत के लिए सैन्य संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो सकता है, खासकर जब दोनों देश हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं.

चीन-पाकिस्तान सैन्य गठजोड़
चीन और पाकिस्तान के बीच का सैन्य सहयोग भारत के लिए एक और चुनौती है. दोनों देशों के बीच नियमित रूप से Sea Guardian सैन्य अभ्यास होते हैं, जो हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं. चीन पाकिस्तान को नौसेना में मदद देकर अपनी पकड़ को और मजबूत कर रहा है, जिससे भारत को अपनी रक्षा रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.

भारत को क्या कदम उठाने चाहिए?
चीन की आक्रामक सैन्य नीतियों और पाकिस्तान के साथ उसके बढ़ते सहयोग को देखते हुए, भारत को अपने रक्षा बजट को बढ़ाने की जरूरत है. वर्तमान में, भारत अपने GDP का केवल 1.9 फीसदी रक्षा पर खर्च करता है, जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि इसे बढ़ाकर 2.5 फीसदी करना चाहिए. इसके अलावा, भारत को अपने सैन्य आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को तेज करना होगा, ताकि लड़ाकू विमानों, पनडुब्बियों, एडवांस मिसाइल सिस्टम और नाइट-फाइटिंग क्षमताओं में सुधार हो सके. भारत को QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे गठबंधनों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना चाहिए ताकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना किया जा सके.

चीन की बढ़ती सैन्य ताकत
चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और उसके रक्षा बजट में हुई वृद्धि से भारत के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. चीन-पाकिस्तान सैन्य गठजोड़, हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति, और परमाणु शक्ति में उसका विस्तार, भारत के लिए गंभीर सुरक्षा चिंताओं का कारण हैं. भारत को अपनी रक्षा रणनीति में सुधार और बजट में वृद्धि करके इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा. इसके अलावा, क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग को मजबूत करना भी महत्वपूर्ण होगा, ताकि चीन के आक्रामक रुख को संतुलित किया जा सके.

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