कंबोडिया और थाईलैंड के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद ने एक बार फिर से जोर पकड़ा है. 28 मई को कंबोडिया के एक सैनिक की विवादित सीमा क्षेत्र में गोलीबारी में मौत हो गई. यह घटना दोनों देशों के बीच दशकों पुराने तनाव को नए स्तर पर ले गई. इसके बाद कंबोडिया ने अपनी सीमा को थाईलैंड के लिए बंद कर दिया और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में याचिका दायर कर दी.
दोनों देशों ने कई व्यापारिक आयातों पर भी प्रतिबंध लगा दिए हैं, जिससे स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर असर पड़ रहा है. थाईलैंड के प्रधानमंत्री पेटोंगटार्न शिनवात्रा की कंबोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री हुन सेन से बातचीत लीक हो जाने के कारण थाईलैंड में भी आंतरिक राजनीतिक संकट गहरा गया है. इसके चलते शिनवात्रा को सस्पेंड कर दिया गया. इस प्रकार यह विवाद केवल सीमित क्षेत्रीय मसला नहीं रह गया है, बल्कि दोनों देशों की राजनीति, अर्थव्यवस्था और वैश्विक कूटनीति को भी प्रभावित कर रहा है.
कंबोडिया की अनिवार्य सैन्य भर्ती
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट ने हाल ही में घोषणा की है कि देश में नागरिकों की अनिवार्य सैन्य भर्ती वर्ष 2026 से शुरू होगी. यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब सीमा विवाद ने गंभीर रूप ले लिया है. उल्लेखनीय है कि कंबोडिया में वर्ष 2006 में ही ऐसा कानून पारित किया गया था, जिसमें 18 से 30 वर्ष के युवकों के लिए 18 महीने का सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य बनाया गया था. हालांकि, इसे अब तक लागू नहीं किया गया था.
कंबोडिया की सेना में जवानों की संख्या
कंबोडिया की सेना में वर्तमान में लगभग 2 लाख जवान हैं. इस फैसले से यह संख्या और अधिक बढ़ने की संभावना है. कंबोडिया के प्रधानमंत्री ने आत्मसमर्पण न करने वाली और लक्ष्य से पीछे न हटने वाली सेना बनाने पर जोर दिया है. उन्होंने देशवासियों से सैन्य बजट बढ़ाने की भी अपील की है. यह कदम न केवल सुरक्षा दृष्टि से, बल्कि राष्ट्र की एकजुटता और शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा जा रहा है.
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सैन्य शक्ति तुलना
अगर सैन्य आंकड़ों की बात करें तो थाईलैंड के पास लगभग साढ़े तीन लाख सक्रिय सैनिक हैं, जबकि कंबोडिया के पास दो लाख. इसके अलावा थाईलैंड के पास अत्याधुनिक तकनीक और अमेरिका सहित अन्य देशों का सहयोग भी है. वहीं, कंबोडिया ने हाल के वर्षों में चीन के साथ गहरे संबंध स्थापित किए हैं. चीन ने कंबोडिया में एक बड़ा नेवल बेस भी बनाया है और उसे हथियारों की आपूर्ति कर रहा है. इसने क्षेत्रीय भू-राजनीति को और जटिल बना दिया है. चीन और अमेरिका दोनों की इस मामले में भूमिका संभावित रूप से निर्णायक हो सकती है. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर तनाव और बढ़ा तो ASEAN देशों पर भी इसका असर पड़ेगा.
वैश्विक प्रतिक्रिया और संभावित समाधान
कंबोडिया और थाईलैंड के बीच चल रहे इस विवाद पर संयुक्त राष्ट्र, ASEAN और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं नजर बनाए हुए हैं. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में याचिका दायर करना एक शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है. हालांकि, फिलहाल कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा.विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि दोनों देशों को आपसी बातचीत और मध्यस्थता के जरिए समाधान खोजने की जरूरत है. सीमा को फिर से खोलना और व्यापारिक रिश्ते बहाल करना भी महत्वपूर्ण होगा.
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