इजरायल भले ही ईरान के साथ जंग खत्म कर चुका है और अपने आस-पास के देशों में छिपे आतंकवादियों से लगातार लड़ रहा है, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब इसी इजरायल और इसी इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भाई की हत्या हो गई थी और ये हत्या भी आतंकवादियों ने ही की थी.
तारीख थी 4 जुलाई 1976. इजरायल से करीब 2500 मील दूर युगांडा के एंतेबे हवाई अड्डे पर इजरायल के चार हरक्युलिस एयरक्राफ्ट रात के घुप्प अंधेरे में लैंड हुए थे. इन एयरक्राफ्ट में सवार थे इजरायल सेना की प्रीमियर स्पेशल यूनिट सयेरेत मतकल के 100 जवान, जिन्हें युगांडा में एक खुफिया ऑपरेशन करना था.
ऑपरेशन था 95 इजरायली बंधकों की रिहाई, जिन्हें फिलिस्तीन और जर्मन आतंकवादियों ने तेल अबीब से पेरिस जा रहे फ्रांस के एयरक्राफ्ट को हाईजैक कर बंधक बनाया गया था. हाईजैक हुए प्लेन को आतंकवादियों ने युगांडा के एन्तेबे हवाई अड्डे पर ही लैंड करवाया था, क्योंकि तब युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने आतंकवादियों को संरक्षण दे रखा था.
इजरायल हर हाल में अपने बंधकों को छुड़ाना चाहता था. लिहाजा उसने ऑपरेशन किया.ऑपरेशन को नाम दिया गया ऑपरेशन एंटेबे, जिसका आधिकारिक नाम था ऑपरेशन थंडरबोल्ट. इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी दी गई सयेरेत मतकल यूनिट को, जिसके कमांडर का नाम था योनी नेतन्याहू. योनी नेतन्याहू के नेतृत्व में सयेरेत मतकल के जवान एंतेबे हवाई अड्डे पर फैल गए. आतंकवादियों के साथ भयंकर गोलीबारी हुई और आखिरकार सारे आतंकी मारे गए. युगांडा के 45 जवान भी मारे गए.
जब ऑपरेशन खत्म हुआ तो पता चला कि इस गोलीबारी में इजरायल के तीन बंधक मारे गए हैं. साथ ही मारा गया है सयेरेत मतकल का कमांडर योनी नेतन्याहू, जिसे आतंकवादियों ने गोली मार दी थी. डिप्टी कमांडर मुकी बेत्जर के नेतृत्व में सारे बंधक और सयेरेत मतकल के जवान वापस उसी हरक्युलिस विमान से इजरायल वापस लौट जाते हैं.
ऑपरेशन खत्म होता है, लेकिन जिस लेफ्टिनेंट कर्नल योनातन योनी नेतन्याहू की इस ऑपरेशन में मौत होती है, वो कोई और नहीं बल्कि बेंजामिन नेतन्याहू का बड़ा भाई था. तब बेंजामिन नेतन्याहू भी इसी सयेरेत मतकल यूनिट से रिटायर होकर कैंब्रिज में पढ़ाई कर रहे थे. भाई की मौत से टूटे नेतन्याहू ने बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी और एक गैर सरकारी संगठन चलाने लगे, जिसका मकसद आतंकवाद के खिलाफ लोगों को तैयार करना था.
1982 के लेबनान वॉर के दौरान उन्हें फिर से सयेरेत मकतल में वापस बुलाया गया. जंग खत्म हुई तो वो पहले यूनाइटेड नेशंस में इजरायल के एंबेसडर और फिर वहीं पर डोनाल्ड ट्रंप के पिता फ्रेड ट्रंप के दोस्त बन गए. इसके बाद तो इतिहास है कि कैसे नेता प्रतिपक्ष से होते हुए बेंजामिन नेतन्याहू प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे और जो बैठे तो फिर उन्हें कोई हिला भी नहीं पाया.
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