Bahraich Wolf Attack : उत्तर प्रदेश के बहराइच में भेड़ियों के इंसानों पर हमले से कोहराम मचा है. आठ-नौ महीने में करीब 30 बच्चे सहित कई लोगों को भेड़िये अपना शिकार बना चुके हैं. अभी तक वन विभाग को पांच भेड़िये पकड़ने में सफलता मिली है. जबकि छठवें को पकड़ने के प्रयास जारी हैं. हालांकि, भारत में पाए जाने वाली भेड़ियों की प्रजाति इंडियन ग्रे वुल्फ अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. इनकी संख्या सिर्फ 2000 के करीब रह गई है.
पर्यावरण और परिस्थितिकी तंत्र की नजर से देखें, तो भेड़िये बेहद महत्वपूर्ण जीव हैं. ये जंगल के परिस्थितिकी तंत्र की अनिवार्य कड़ी हैं. अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क को भेड़ियों ने किस तरह पुनर्जीवित किया, यह जानना बेहद दिलचस्प. साथ ही इनके महत्व के बारे में भी बताता है.
भेड़ियों के विलुप्त होने से क्या हुए नुकसान?
अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क से भेड़िए शिकार के चलते 1920 के दशक तक गायब हो चुके थे. जिसकी वजह से एल्क और हिरन जैसे जीवों की संख्या बेतहाशा बढ़ गई थी. घास और झाड़ियां चरने वाले जानवरों की संख्या बहुत अधिक होने के चलते जंगल के परिस्थितिकी का पूरा संतुलन बिगड़ गया था. चूहे और खरगोश जैसे जीवों के लिए छिपने की जगह नहीं बची थी. बेरी खाकर पेट भरने वाले ग्रिजली भालुओं की संख्या में भी गिरावट आ गई. इसके अलावा नदियों में कटाव भी अधिक होने लगा. एक बड़े शिकारी का खतरा न होने से एल्क और हिरन जैसे जानवर नदियों के किनारे उगने वाली झाड़यां खा जाते थे. उनकी खुरों से नदियों के किनारे नष्ट हो गए. नदियों की धाराएं मिट्टी से भर गई. नदियों में झाड़ियों से घर बनाने वाले बीवर भी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए. इसके अलावा ऊदबिलाव और मछलियों को भी नुकसान हुआ.
41 भेड़ियों ने कर दिया था कायापलट
100 साल तक शिकार बनने के बाद ग्रे भेड़ियों को साल 1995 में फिर से अपना घर मिला. 41 भेड़ियों को अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क में वापस लाया गया. इसके बाद भेड़ियो के पैक्स ने कुछ ऐसा किया, जिसकी शायद ही किसी को उम्मीद थी. सबसे पहले उन्होंने हिरन का शिकार करना शुरू किया. रिपोर्ट्स के अनुसार, इससे हिरनों के व्यवहार में बदलाव देखा जाने लगा. उन्होंने घाटियों और नदियों के किनारों से दूरी बनानी शुरू कर दी. जिससे इन स्थानों पर फिर से ऊंचे-ऊंचे पेड़ उगने शुरू हुए. छह साल के भीतर ही घाटियां घने जंगल में बदल गई. कई पक्षी पार्क में वापस आ गए. इसके अलावा बीवर, चूहे और खरगोश की संख्या भी तेजी से बढ़ी. जो कि भेड़ियों, सियार और लोमड़ियों के साथ ईगल व कौये जैसे शिकारी पक्षियों का भी भोजन थे. बेरी के दोबारा उगने से ग्रिजली भालुओं की संख्या भी बढ़ी.
भेड़ियों ने बदल दिया नदियों का बिहेवियर
येलोस्टोन नेशनल पार्क में भेड़ियों ने जो सबसे चमत्कारिक काम किया, वह था नदियों का बिहेवियर बदल देना. भेड़यों की वजह से नदियों के किनारों का क्षरण रुक गया. जिससे नदियों में गाद कम हुई तो मियांडर (नदी विसर्प) बनने कम हो गए. नदी विसर्प या मियांडर मतलब नदियों का घुमाव होता है. मियांडर कम होने से इससे किनारों का कटान थम गया.
भेड़ियों से मिलता है दूसरे जीवों को भी भोजन
भेड़िये अपने शिकार को लेकर काफी प्रोटेक्टिव होते हैं. लेकिन उनके छोड़े गए शिकार का लाभ कई मांसाहारी वन्य जीव और पक्षी उठाते हैं. इनमें लोमड़ियों और सियार जैसे जानवरों से लेकर मार्टन, रैकून, चील, कौवे और मैगपाई जैसे पक्षी तक शामिल हैं. भेड़िये झुंड में शिकार करते हैं और उसे सैकड़ों वर्ग मीटर में बिखेर देते हैं.
‘फैमिली मैन’ होते हैं भेड़िये
भेड़िया एक सामाजिक जानवर है. ये अधिक समय तक समूह से अलग नहीं रह सकते. जल्द से जल्द अपना झुंड बनाते हैं या किसी और झुंड में शामिल हो जाते हैं. भेड़िये आमतौर पर पांच से नौ सदस्यों के पारिवारिक समूह में रहते हैं. जिसमें एक जटिल हायरार्की होती है. अल्फा मेल और फीमेल प्रजनन करते हैं. अल्फा भेड़िया ही परिवार का मुखिया होता है. इसके अलावा समूह में डिसिप्लिन मेंटेन करने वाला, टेरिटरी और बीमार व घायल सदस्यों की देखभाल करने वाले और हेल्पर होते हैं.
घास के मैदान का भूत
इंडियन ग्रे वुल्फ यानी भारत में पायी जाने वाली भेड़ियों की प्रजाति को घास के मैदान का भूत कहते हैं. भेड़िये अधिकांशत: झुंड में शिकार करते हैं. इनके समूह में सभी भेड़ियो की भूमिका तय होती है. सबसे पहले किसी झुंड के सबसे कमजाेर जानवर का आंकलन करते हैं. इसके बाद कुछ भेड़िये अन्य जानवरों को शिकार से दूर करते हैं मतलब ध्यान बंटाते हैं। इसके बाद शेष भेड़िये अकेले पड़े चुके जानवर का शिकार करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 9, 2024, 15:43 IST