संजीदा लोगों की कद्र पूरी दुनिया में की जाती है. कम से कम ओहदों पर बैठे बड़े लोगों के बारे में तो यही कहा जाता है कि जो संजीदा होगा वही सलीके से काम भी कर सकेगा. खास तौर से सार्वजनिक तौर पर तो छोटी जगहों पर भी लोग हल्की बात करने से बचते रहे हैं. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसके ठीक उल्टा व्यवहार करते हैं. समझ में नहीं आता कि दुनिया में बेहद ताकतवर मुल्क के प्रेसीडेंट होने के बाद भी वे इस तरह के हल्केपन से क्या जाहिर करना चाहते हैं. हाल में उन्होंने नॉटो मुल्कों की बैठक में पत्रकारों से बातचीत के दौरान इजराइल और ईरान को लड़ने वाला बच्चा करार दे दिया. दो मुल्कों की जंग कभी भी स्कूली बच्चों की लड़ाई नहीं होती. जंग में जान-माल का बहुत नुकसान होता है.
अमेरिका को अब तक एक संजीदा मुल्क माना जाता है. उनके राष्ट्रपति की बातों का अपना मतलब और वजन होता है और होना भी चाहिए. अगर कोई कहे कि ट्रंप मजाकिया लहजे में अपनी बात कहना चाहते हैं तो ये ठीक नहीं है. नाटो मुल्कों की बैठक के लिए रवाना होने से पहले उन्होंने दोनों मुल्कों के लिए गाली जैसी एक अश्लील शब्दावली का भी इस्तेमाल किया था. यही नहीं बाद में उसे जायज ठहराने की भी कोशिश की.
इजराइल और ईरान का मसला कोई बच्चों का खेल नहीं है. दोनों देशों के बीच तनाव का असर पूरे मध्य-पूर्व पर पड़ता है. तेल की कीमतें, व्यापार, और वैश्विक सुरक्षा, सब कुछ दांव पर होता है. ऐसे में ट्रंप का इसे “दो-तीन मिनट की लड़ाई” कहना कई सवाल खड़े करता है. यही नहीं ट्रंप की बॉडी लैंग्वेज,उनके हाव-भाव, सब कुछ मिलकर उनकी छवि को और मजाकिया बनाता है. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जहां दूसरे नेता सधे हुए अंदाज में बोलते हैं, ट्रंप का लहजा बिल्कुल जुदा है. वो कभी हंसते हुए, कभी तंज कसते हुए, तो कभी मजाक उड़ाते हुए बात करते हैं. ये स्टाइल उनके समर्थकों को तो पसंद आता है, लेकिन वैश्विक कूटनीति में इसे कारगर नहीं माना जा सकता.
इजराइल-ईरान वाले बयान पर अगर गौर करें, तो ये भी साफ है कि ट्रंप का फोकस शायद मुद्दे से ज्यादा सुर्खियों पर था. उनके इस बयान ने दुनिया का ध्यान खींचा, लेकिन क्या इससे कोई सकारात्मक बदलाव आया? शायद नहीं. उल्टा, कई देशों ने इसे गैर-जिम्मेदाराना करार दिया. खासकर ईरान ने इसे अपमानजनक बताया. इजराइल ने भी इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनकी चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है. ट्रंप के इस हल्केपन का असर उनकी घरेलू राजनीति पर भी पड़ता है. अमेरिका में उनके समर्थक इस अंदाज को पसंद करते हैं. वो कहते हैं कि ट्रंप “सीधी बात, कोई बकवास नहीं” की नीति पर चलते हैं. लेकिन हकीकत ये है कि ये हल्कापन अमेरिका की साख को कम करता है. वैश्विक मंच पर जब अमेरिका का राष्ट्रपति इस तरह की बातें करता है तो दुनिया उसका मजाक उड़ाती है.
हालांकि ट्रंप का ये रवैया उनकी शख्सियत का हिस्सा बन चुका है.हो सकता है कि ट्रंप अपने इस हल्केपन को अपनी ताकत मानते हों. लेकिन ये दरअसल कमजोरी है. ये सुर्खियां तो बटोर सकता है लेकिन साख नहीं बना सकता.
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