Last Updated:April 10, 2025, 07:25 IST
Tariff War: ट्रंप ने इजरायली सामानों पर 17 फीसदी टैरिफ लगाया है. नेतन्याहू को राहत की उम्मीद थी लेकिन वे खाली हाथ लौटे. ट्रंप ने ईरान के साथ नई परमाणु संधि की घोषणा की है. इससे भी नेतन्याहू निराश हैं.
डोनाल्ड ट्रंप में बेन्जामिन नेतन्याहू से मुलाकात में टैरिफ पर कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया है.
हाइलाइट्स
- ट्रंप ने इजरायली सामानों पर 17% टैरिफ लगाया.
- नेतन्याहू को राहत की उम्मीद थी, लेकिन वे खाली हाथ लौटे.
- ट्रंप ने ईरान के साथ नई परमाणु संधि की घोषणा की.
Tariff War: अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप किसी के सगे नहीं हैं. दुनिया में कई ऐसे देश हैं जो अमेरिका के बेहद करीबी हैं. वे जिगरी यार की तरह हैं. हर मुसीबत में अमेरिका उनके साथ खड़ा रहता है. उनको अमेरिका हर साल अरबों डॉलर की सहायता देता है लेकिन, ट्रंप के टैरिफ वार की मार से वे भी वंचित नहीं हैं. दरअसल, यह बात हो रही है इजरायल की. इजरायल अमेरिका का एक सबसे जिगरी यार है. इजरायल के लिए अमेरिकी पूरे मध्य पूर्व में इस्लामिक देशों से वैर मोलता रहा है. लेकिन, ट्रंप ने इजरायली सामानों पर 17 फीसदी का टैरिफ लगा दिया है. इस सिलसिले में बीते दिन इजरायली राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने पहुंचे. नेहतन्याहू को उम्मीद थी कि वह टैरिफ और ईरान के साथ तनाव के मसले पर ट्रंप से कुछ बड़ी राहत हासिल करेंगे. लेकिन वह खाली हाथ इजराइल लौटे.
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक यह मुलाकात पिछले हफ्ते व्हाइट हाउस द्वारा इजराइली सामानों पर लगाए गए 17% नए कर को लेकर थी. इससे बचने के लिए इजराइल ने एक दिन पहले ही अमेरिकी सामानों पर अपने सभी कर हटा दिए थे, हालांकि ये कर बहुत कम चीजों पर थे. व्हाइट हाउस में ट्रंप के बगल में बैठे नेतन्याहू ने कहा कि इजराइल जल्द ही व्यापारिक रुकावटें और घाटा खत्म कर देगा. उन्होंने ट्रंप की तारीफ करते हुए कहा कि हम टैरिफ को जल्दी हटा देंगे. लेकिन ट्रंप पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. ट्रंप ने कहा कि अमेरिका हर साल इजराइल को चार अरब डॉलर देता है. उन्होंने मजाक में कहा, “बधाई हो, यह बहुत अच्छा है.” लेकिन टैरिफ कम करने के सवाल पर उन्होंने कोई वादा नहीं किया और सिर्फ ‘शायद नहीं, शायद नहीं’ कहा.
पहले कार्यकाल में दिए थे कई तोहफे
ट्रंप के पहले कार्यकाल में नेतन्याहू को कई राजनीतिक तोहफे मिले थे. जैसे, अमेरिकी दूतावास को यरुशलम ले जाना, गोलान हाइट्स को इजराइल का हिस्सा मानना, और दो अरब देशों के साथ इजराइल के रिश्ते सामान्य करना. नेतन्याहू इन फैसलों की हमेशा तारीफ करते हैं. इस बार वह ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में उनसे मिलने वाले पहले विदेशी नेता थे. लेकिन इस मुलाकात से उन्हें कोई ठोस नतीजा नहीं मिला.
सबसे बड़ा झटका ईरान के मुद्दे पर लगा. मुलाकात से पहले इजराइली मीडिया में खबरें थीं कि दोनों नेता ईरान पर सैन्य हमले की बात करेंगे. इजराइल के बड़े अखबार येदियोथ अहरोनोथ ने इस बारे में स्टोरी भी छापी. इसमें कहा गया कि ईरान को बड़ा झटका देना जरूरी है. हिंद महासागर में छह अमेरिकी बी-2 स्टील्थ बॉम्बर और मध्य पूर्व में दूसरा विमान वाहक पोत होने से इजराइल में हमले की अटकलें बढ़ गई थीं.
नेतन्याहू हुए निराश
लेकिन मुलाकात में जो हुआ, वह नेतन्याहू की उम्मीदों के उलट था. ट्रंप ने ऐलान किया कि अमेरिका और ईरान शनिवार से नई परमाणु संधि के लिए बातचीत शुरू करने वाले हैं. यह खबर सुनकर नेतन्याहू का चेहरा लटक गया. दो सूत्रों ने सीएनएन को बताया कि यह घोषणा इजराइल को पसंद नहीं आई. यह साफ नहीं है कि नेतन्याहू को पहले से इसकी जानकारी थी या नहीं.
इजराइल लौटने से पहले नेतन्याहू ने कहा कि हम चाहते हैं कि ईरान के पास परमाणु हथियार न हों. यह समझौते से हो सकता है, लेकिन ऐसा समझौता लिबिया की तरह होना चाहिए. 2003 में लिबिया ने अपना परमाणु कार्यक्रम खत्म कर दिया था. उन्होंने कहा कि अगर ईरान बातचीत को लंबा खींचता है, तो ट्रंप के साथ सैन्य विकल्प पर लंबी चर्चा हुई है.
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