Last Updated:April 11, 2025, 10:59 IST
Mumbai Attack: मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा और डेविड हेडली बचपन के दोस्त थे. राणा ने हेडली की जमानत के लिए घर गिरवी रखा, लेकिन हेडली ने उसके खिलाफ गवाही दी. राणा को 14 साल की सजा हुई.
तहव्वुर राणा को उसके दोस्त ने दिया था धोखा.
हाइलाइट्स
- तहव्वुर राणा और डेविड हेडली बचपन के दोस्त थे
- हेडली ने राणा के खिलाफ गवाही दी, जिससे राणा को 14 साल की सजा हुई
- राणा ने हेडली की जमानत के लिए घर गिरवी रखा था
वाशिंगटन: मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा और उनके बचपन के दोस्त डेविड हेडली की कहानी किसी हिंदी फिल्म की तरह है, जहां एक दोस्त फौजी डॉक्टर बना और दूसरा ड्रग्स का स्मगलर. राणा को सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि जिस दोस्त की जमानत के लिए उसने अपना घर गिरवी रखा, उसी ने उसके खिलाफ गवाही दे दी. तहव्वुर हुसैन राणा और मुंबई हमले का दूसरा आरोपी डेविड हेडली बचपन के दोस्त थे. दोनों की दोस्ती पाकिस्तान के एक मिलिट्री बोर्डिंग स्कूल में शुरू हुई. दोनों ने साथ पढ़ाई की, लेकिन बाद में हेडली का परिवार अमेरिका चला गया. फिर भी उनकी दोस्ती बरकरार रही. राणा पाकिस्तानी फौज में डॉक्टर बना और हेडली ड्रग्स की तस्करी में शामिल हो गया. इसके बावजूद उनकी दोस्ती बरकरार रही.
पाकिस्तानी सेना छोड़ने के बाद राणा कनाडा चला गया और वहां एक कंपनी शुरू की. उसी दौरान उसे पता चला कि उसका दोस्त हेडली अमेरिका की जेल में बंद है. राणा अमेरिका गया और उसने हेडली से मुलाकात की. हेडली ने उसे बताया कि उसका जमानत बॉन्ड भरनेवाला कोई मौजूद नहीं है, ऐसे में वह जेल से बाहर कैसे आएगा. हेडली मादक पदार्थ की स्मगलिंग के आरोप में बंद था, लिहाजा उसका बेलबॉन्ड भी काफी महंगा था. अपने दोस्त को छुड़ाने के लिए राणा ने अपना घर गिरवी रख दिया. साथ ही उसकी कई बार पैसों से भी मदद की.
पाकिस्तान में भारत पर हमले की साजिश
साल 2001 में हेडली पाकिस्तान गया, जहां उसने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से प्रशिक्षण लिया और बड़े आतंकी सरगनाओं से मुलाकात की. उस समय लश्कर भारत में बड़े हमले की साजिश रच रहा था. 2005 में हेडली अमेरिका लौटा और अपना नाम बदलकर डेविड कोलमैन हेडली रख लिया. इसी नाम से उसने अपना पासपोर्ट भी बनवा लिया. उसने लश्कर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI को राणा की कंपनी के बारे में बताया, जिसे भारत में उनके ऑपरेशन के लिए मुखौटे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता था.
भारत में आकर बनाया प्लान
वापस लौटने के बाद हेडली ने राणा को लश्कर के लिए काम करने की बात बताई और भारत में ऑपरेशन के लिए उनकी कंपनी की मदद मांगी. उसने राणा को बताया कि वह हथियारों की ट्रेनिंग ले चुका है. राणा ने हेडली को अपनी कंपनी, इमिग्रेशन लॉ सेंटर का रीजनल मैनेजर बनाया. हेडली ने कंपनी के नाम पर गलत जानकारी के साथ भारतीय वीजा के लिए आवेदन किया. बाद में राणा ने यह फॉर्म भारतीय दूतावास को भेज दिया. इस तरह हेडली को दो बार वीजा मिला. हेडली के कहने पर राणा लश्कर के आतंकी सरगनाओं के संपर्क में आ गया. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी में पहले से ही उसका संपर्क था, जिस कारण उसे नया कनेक्शन बनाने में दिक्कत नहीं आई. उसने अपनी पत्नी के साथ भारत का दौरा भी किया और साजिशकर्ताओं को जरूरी जानकारी दी. इस साजिश का नतीजा था मुंबई में 2008 का आतंकी हमला.
दोस्त ने ही फंसा दिया
राणा और हेडली जब अमेरिका पहुंचे तो दोनों में खूब बातें हुईं. लश्कर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने राणा के लिए एक सीक्रेट मेल भी शुरू कर दिया. इस साजिश के आधार पर अन्य जानकारियों का आदान प्रदान होता था. मामला तब फंसा जब हेडली को अमेरिका सुरक्षा एजेंसीज ने गिरफ्तार कर लिया. उसके बयान के आधार पर राणा भी गिरफ्तार हो गया. राणा ने दोस्ती में आकर अपना कोई जुर्म कबूल नहीं किया. उधर हेडली ने अमेरिकी एजेंसियों के सामने पूरी पोल खोल दी. साथ ही साथ उसने राणा के कारनामों के बारे में भी जानकारी तो दी ही राणा के खिलाफ कोर्ट में वादा माफ गवाह भी बन गया. जिसके आधार पर पहले राणा को 14 साल की सजा हुई अब उसे भारत प्रत्यर्पण कर दिया गया, जबकि हेडली अमेरिका में ही आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.
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