ऑपरेशन सिंदूर, यानी 7 मई 2025 को भारत का पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों पर धमाकेदार हमला. इस अटैक ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा. भारत ने 100 से ज्यादा आतंकियों को ढेर किया, मसूद अजहर के भाई जैसे बड़े नामों को निशाना बनाया. लेकिन जब सीजफायर की बात आई, तो अमेरिका का रुख देखकर सवाल उठता है. ये पाकिस्तान के साथ क्यों खड़ा है? क्या डोनाल्ड ट्रंप भारत से रिश्ते बिगाड़ने की राह पर हैं?
अमेरिका और पाकिस्तान की दोस्ती पुरानी है, शीत युद्ध के जमाने से. उस वक्त पाकिस्तान अमेरिका के खेमे में था, और भारत की गुटनिरपेक्ष नीति को अमेरिका ने सोवियत संघ की तरफ झुकाव माना. भारत को सोवियत से हथियार और सपोर्ट मिलता था, जिससे अमेरिका हमें शक की नजर से देखता था. 1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका ने सातवां बेड़ा भेजकर पाकिस्तान का साथ दिया. और 2011 में जब ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में पकड़ा गया, तब भी अमेरिका ने पाकिस्तान पर सख्ती नहीं की. अगर ओसामा किसी और देश में मिलता, तो शायद उस देश पर आर्थिक प्रतिबंध लग चुके होते. लेकिन पाकिस्तान को बख्श दिया गया, क्योंकि वो अफगानिस्तान और तालिबान के साथ चीन के मामले में अमेरिका के लिए जरूरी है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका ने कहा कि वो आतंकवाद के खिलाफ है और पाकिस्तान को आतंकी ठिकाने खत्म करने चाहिए. लेकिन भारत की इस सर्जिकल स्ट्राइक को खुलकर सपोर्ट नहीं किया. ऐसा क्यों? क्योंकि अमेरिका दक्षिण एशिया में बैलेंस बनाना चाहता है. अमेरिका को डर है अगर वो भारत का पूरा साथ देगा, तो पाकिस्तान सीधे चीन की गोद में चला जाएगा. और पाकिस्तान की लोकेशन, उसकी परमाणु ताकत और चीन से दोस्ती अमेरिका को उसे छोड़ने नहीं देती.
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को कुछ मामलों में पहले राहत दी है. जैसे, S-400 मिसाइल सौदे पर भारत को CAATSA प्रतिबंधों से छूट दी, जबकि अपने दोस्त तुर्की को नहीं बख्शा. ये दिखाता है कि ट्रंप भारत को अहम मानते हैं. लेकिन जैसे ही पाकिस्तान का मुद्दा आता है, वो थोड़ा पीछे हट जाते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान अमेरिका का पुराना पार्टनर है. ऑपरेशन सिंदूर में भी अमेरिका ने भारत का पूरा साथ नहीं दिया. तो क्या ट्रंप भारत से रिश्ते बिगाड़ रहे हैं? मुझे लगता है, वो जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे. उनकी नीति अमेरिकी हितों को देखते हुए बैलेंस बनाने की है.
भारत के साथ रहने से अमेरिका को क्या फायदा?
भारत आज अमेरिका के लिए बड़ा साझेदार है, खासकर चीन के खिलाफ. भारत का लोकतंत्र, बढ़ती ताकत और सेना इसे इंडो-पैसिफिक में अहम बनाती है. 2020 के गलवान झड़प में अमेरिका भारत के साथ खुलकर आया. क्वाड और iCET जैसे समझौते भारत-अमेरिका दोस्ती को और मजबूत करते हैं. भारत के साथ रहने से अमेरिका को न सिर्फ चीन से मुकाबले में मदद मिलती है, बल्कि व्यापार और टेक्नोलॉजी में भी फायदा होता है.
चीन पर साथ, पाकिस्तान पर अलग क्यों?
चीन के खिलाफ अमेरिका भारत के साथ है, क्योंकि चीन उसका बड़ा दुश्मन है. भारत की ताकत और चीन से तनाव उसे अमेरिका का दोस्त बनाते हैं. लेकिन पाकिस्तान के मामले में अमेरिका संभलकर चलता है. अगर वो पाकिस्तान को छोड़ दे, तो वो पूरी तरह चीन के साथ चला जाएगा. दक्षिण एशिया में अमेरिका के पास पाकिस्तान जैसा कोई और ‘वफादार’ दोस्त नहीं, जो पैसे के बदले उसके इशारे पर नाचे. भारत चाह कर भी पाकिस्तान की जगह नहीं ले सकता, क्योंकि उसके लिए आत्मसम्मान से समझौता करना होगा. हालांकि मुझे अमेरिकी अर्थशास्त्री जेफरी डी. सैक्स की कही वह बात याद आती है, जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका आज चीन के पीछे इसलिए पड़ा है, क्योंकि वो उससे आगे निकल रहा है. अगर कल भारत बड़ी ताकत बन गया, तो शायद अमेरिका भारत के पीछे भी पड़े. भारत भले ही अमेरिका जितना बड़ा न हो, लेकिन वो आंख में आंख डालकर बात करता है. हमारी स्वतंत्र नीति हमें पाकिस्तान जैसे देशों से अलग करती है, जो पैसे के लिए कुछ भी करता है.
ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अकेले भी लड़ सकता है. लेकिन अमेरिका का रुख बताता है कि वो अपने हितों को पहले रखता है. ट्रंप शायद भारत से रिश्ते बिगाड़ना नहीं चाहते, लेकिन उनकी पाकिस्तान के प्रति नरमी भारत को सतर्क रहने को मजबूर करती है. भारत को अपनी ताकत बढ़ानी होगी और वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को और घेरना होगा. दुनिया में भारत को और दोस्त बनाने की जरूरत है.
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