दूसरे विश्व युद्ध में क्या था वार ऑफ बल्ज? अमेरिका में 80 साल बाद मची खलबली, समझें पूरी कहानी

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Agency:News18Hindi

Last Updated:February 12, 2025, 12:52 IST

Battle Of The Bulge: अमेरिका ने फोर्ट लिबर्टी सैन्य अड्डे का नाम बदलकर फोर्ट ब्रैग रखा, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के नायक रोलैंड एल. ब्रैग के सम्मान में है. बैटल ऑफ द बल्ज में जर्मनी ने मित्र देशों पर हमला किया था,…और पढ़ें

दूसरे विश्वयुद्ध में बल्ज की लड़ाई के एक नायक के नाम पर अमेरिका में बेस का नाम रखा गया है.

हाइलाइट्स

  • फोर्ट लिबर्टी का नाम बदलकर फोर्ट ब्रैग रखा गया
  • फोर्ट ब्रैग का नाम WWII नायक रोलैंड एल. ब्रैग के नाम पर रखा गया
  • बैटल ऑफ द बल्ज में जर्मनी का हमला विफल रहा

वॉशिंगटन: अमेरिका में ट्रंप प्रशासन को अब दूसरा विश्वयुद्ध याद आ रहा है. यही कारण है कि अब दूसरे विश्वयुद्ध के एक नायक के नाम पर सैन्य अड्डे का नाम रखा गया है. अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने उत्तरी कैरोलिना के सैन्य अड्डे का नाम बदलने का ऐलान किया है. उन्होंने फोर्ट लिबर्टी सैन्य अड्डे का नाम बदलकर फिर से फोर्ट ब्रैग करने का आदेश दिया. हेगसेथ ने कहा कि अब इस अड्डे का नाम द्वितीय विश्वयुद्ध के दिग्गज सैनिक प्राइवेट रोलैंड एल. ब्रैग के नाम पर रखा जाएगा, न कि जनरल ब्रैक्सटन ब्रैग के. हेगसेथ ने अपने एक्स अकाउंट पर एक पोस्ट में लिखा, ‘यह सही है, ब्रैग वापस आ गया है.’  पहले ब्रैग के नाम पर यह अड्डा था, लेकिन 2022 की कांग्रेस की एक रिपोर्ट के कारण इसे बदला गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि जनरल ब्रेक्सटन ब्रैग एक गुलाम मालिक और ‘गृहयुद्ध के सबसे खराब जनरलों में से एक’ थे. ट्रंप ने इसे बदलने का वादा किया था.

रक्षा विभाग के प्रेस सचिव जॉन उल्योट ने एक बयान में कहा, ‘नया नाम प्राइवेट फर्स्ट क्लास रोलैंड एल. ब्रैग को श्रद्धांजलि देता है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के नायक थे और बैटल ऑफ द बल्ज के दौरान अपने असाधारण साहस के लिए सिल्वर स्टार और पर्पल हार्ट से सम्मानित किए गए थे.’ बैटल ऑफ द बल्ज दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर आखिरी बड़ा जर्मन हमला था. जर्मनी का यह हमला मित्र राष्ट्रों को जर्मन भूमि से पीछे धकेलने के लिए था, जिसमें वह बुरी तरह हारा था.

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क्यों हुई थी लड़ाई?
दूसरा विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चला. दूसरे विश्वयुद्ध के अंत में हिटलर की जर्मन सेना तेजी से हार की ओर बढ़ रही थी. पश्चिमी मोर्चे पर अमेरिकी और ब्रिटिश सेनाएं फ्रांस और बेल्जियम तक पहुंच चुकी थीं. खुद को हारते हुए हिटलर ने एक आखिरी बार हमला करने की योजना बनाई, जिससे वह मित्र राष्ट्र की सेनाओं को विभाजित कर सके और पश्चिमी मोर्चे पर युद्ध को अपने पक्ष में मोड़ सके. हिटलर का लक्ष्य था कि बेल्जियम के एंटवर्प बंदरगाह पर कब्जा किया जाए, ताकि मित्र राष्ट्रों की सप्लाई बाधित हो सके.

जर्मनी ने की थी आखिरी कोशिश
16 दिसंबर 1944 को युद्ध की शुरुआत हुई. जर्मनी ने अचानक और जबरदस्त हमला किया. ढाई लाख से ज्यादा जर्मन सैनिकों ने अर्डेन्स के घने जंगलों से होकर मित्र देशों की कमजोर डिफेंस लाइनों पर हमला किया. खराब मौसम और घने कोहरे की वजह से मित्र राष्ट्रों की एयरफोर्स एक्टिव नहीं हो सकी, जिससे जर्मन सेना को फायदा मिला. जर्मन सेना ने अमेरिकी सैनिकों को पीछे हटने को मजबूर कर दिया. मित्र देशों की सेनाओं ने जल्द ही संगठित होकर जवाबी हमला किया और जर्मन आक्रमण को विफल कर दिया. ब्रिटानिका की रिपोर्ट के मुताबिक, जर्मन सेना के 1,20,000 सैनिक मारे गए, घायल हुए या लापता हो गए. वहीं मित्र देशों की सेनाओं को 75,000 सैनिकों का नुकसान हुआ.

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दूसरे विश्व युद्ध में क्या था वार ऑफ बल्ज? अमेरिका में 80 साल बाद मची खलबली

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