‘तालिबान शासन में लौटना मौत के बराबर’, पाकिस्तान में अफगानी महिलाओं को सता रहा वापस भेजे जाने क

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Pakistan Afghanistan News: पाकिस्तान हाल ही में अफगान शरणार्थियों के निर्वासन की समय सीमा बढ़ाने के तालिबान के अनुरोध को खारिज कर दिया. कई महीनों तक तालिबान शासन से लड़ने और विरोध करने के बाद मार्च 2022 में महिला अधिकार कार्यकर्ता जहरा मौसवी पड़ोसी देश पाकिस्तान चली गई थी. अब वहां उन्हें डर सता रहा है कि कहीं पाकिस्तानी सुरक्षाबल पकड़कर उन्हें फिर से अफगानिस्तान न भेज दें.

अफगानिस्तान छोड़ने के लिए होना पड़ा मजबूर

जहरा मौसवी ने अगस्त 2021 में तालिबान के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से भाग लिया था. उन्होंने सार्वजनिक रूप से समारोहों और प्रदर्शनों में भाग लेकर महिलाओं के अधिकारों की वकालत की और दुनिया के बाकी हिस्सों में अफगान महिलाओं की आवाज को बुलंद करने की कोशिश की. हालांकि तालिबान की ओर से  महिलाओं और लड़कियों पर प्रतिबंध लगाए जाने और धीरे-धीरे उन्हें सार्वजनिक जीवन से बाहर किए जाने के कारण जहरा मौसवी को अफगानिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

महिला कार्यकर्ताओं का सता रहा निर्वासन का डर

डी डब्ल्यू न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में रहने के लिए जहरा को जो आवश्यक दस्तावेज चाहिए थे, उसे हासिल करने के लिए भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. जहरा मौसवी ने बताया, “मैं पाकिस्तान की सख्त वीजा नीतियों के कारण अपने और अपने परिवार के लिए वैध पाकिस्तानी वीजा प्राप्त नहीं सकी. इस वजह से पाकिस्तानी पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया. वे सादे कपड़े में घुसे, घर की तलाशी ली. इसके बाद मुझे और मेरी बेटी को गिरफ्तार कर लिया. वे हमें निर्वासन हिरासत शिविर में ले गए.”

जहरा ने कहा कि वहां उन्हें दो दिन और एक रात के लिए बेहद कठोर परिस्थितियों में रखा गया था और केवल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दबाव के कारण रिहा किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक कई अन्य अफगान महिला कार्यकर्ताओं ने भी बात करते हुए अपनी समस्याओं के बारे में बताया. एक महिला कार्यकर्ता जमीला अहमदी ने कहा कि उनकी कई महिला साथी को पहले ही अफगानिस्तान वापस भेज दिया गया है और चेतावनी दी है कि उनकी भी जान का खतरा है.

‘तालिबान शासन में लौटना मौत के बराबर’

उन्होंने कहा, “तालिबान अपराधों पर मेरी रिपोर्टिंग और राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (NDS) के साथ मेरी भागीदारी ने मुझे काफी खतरे में डाल दिया है. अगर मुझे तालिबान शासन में लौटने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह निश्चित रूप से एक निश्चित मौत होगी.” कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान में तभी शरण मांगी जब तालिबान शासित अफगानिस्तान में स्थिति असहनीय हो गई.

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