GPS से टोल टैक्स की वसूली शुरू: हाईवे पर हर दिन 20km का सफर मुफ्त, इसके बाद जितना ट्रेवल उतना टोल लगेगा

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नई दिल्ली2 दिन पहले

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देश में GPS से टोल टैक्स की वसूली शुरू हो गई है। भारतीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) बेस्ड टोल कलेक्शन सिस्टम शुरू करने का ऐलान किया है। ये सिस्टम देश के नेशनल हाईवे और एक्सप्रेस-वे पर ‘पे एज यू यूज’ बेसिस पर टोल चार्ज करता है।

मंत्रालय ने नए नियम के मुताबिक, GNSS से लैस प्राइवेट गाड़ियों से नेशनल हाईवे पर हर दिन 20 किमी तक की दूरी तक आने-जाने के लिए कोई चार्ज नहीं लिया जाएगा। इसके बाद जितनी ज्यादा दूरी तय करेंगे, उतनी ही दूरी का टोल वसूला जाएगा।

फिलहाल फास्टैग भी जारी रहेगा इस नए सिस्टम का टेस्टिंग फेज पूरा हो चुका है और हरियाणा के पानीपत-हिसार नेशनल हाईवे 709 पर इसका ट्रायल भी शुरू किया जा चुका है। इसका फायदा उन्हीं गाड़ियों को होगा, जो GNSS से लैस हैं।

इनकी संख्या अभी कम हैं, इसलिए यह व्यवस्था फिलहाल हाइब्रिड मोड पर काम करेगी। यानी टोल टैक्स की वसूली कैश, फास्टैग और ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन से भी जारी रहेगी।

जितने किलोमीटर चलेंगे सिर्फ उतना ही चार्ज देना होगा GNSS बेस्ड टोल सिस्टम टोल नेम, लोकेशन और डिस्टेंस ट्रैवल्ड का डेटा कलेक्ट करता है। इससे डायनैमिक टोल चार्जिंग सिस्टम इनेबल होता है। इसका मतलब ये हुआ कि आपको हाईवे पर ड्राइव करने के लिए सिर्फ उतने ही पैसे देने होंगे जितने किलोमीटर आप चले हैं।

मौजूदा समय में टोल मैनुअली चार्ज किया जाता है, जिसका मतलब ये है कि आप कुछ एक्सट्रा किलोमीटर के लिए भी चार्ज दे देते हैं, जहां आपने गाड़ी लेकर गए ही नहीं हैं। GNSS सिस्टम ये देखेगा कि आप कितना दूर गए हैं और फिर उसी हिसाब से चार्ज करेगा।

टोल टैक्स कैसे चार्ज किया जाएगा? टोल प्लाजा पर GNSS से लैस व्हीकल्स के लिए अलग से लेन बनेगी। फास्टैग की तरह जैसे ही व्हीकल ऑनबोर्ड यूनिट से पास होगा, ये यूनिट प्रोसेस चार्जेस को सिग्नल भेजेगी जो कि फिनटेक कंपनी हैंडल करेगी। यदि इन लेन में कोई नॉन GNSS व्हीकल दाखिल होता है तो उससे दोगुना टोल टैक्स वसूला जाएगा।

अभी देश में फास्टैग से टोल टैक्स की वसूली देश में अभी टोल बूथ पर फास्टैग और नकद राशि के रूप में टोल टैक्स की वसूला जाता है। फास्टैग एक प्रकार का टैग या स्टिकर होता है। यह वाहन की विंडस्क्रीन पर लगता है। फास्टैग रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन या RFID तकनीक पर काम करता है।

इस तकनीक के जरिए टोल प्लाजा पर लगे कैमरे स्टिकर के बार-कोड को स्कैन कर लेते हैं और टोल फीस अपनेआप फास्टैग के वॉलेट से कट जाती है। फास्टैग के इस्तेमाल से वाहन चालक को टोल टैक्स के भुगतान के लिए रूकना नहीं पड़ता है। टोल प्लाजा पर लगने वाले समय में कमी और यात्रा को सुगम बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

फास्टैग स्टिकर 5 साल के लिए वैलिड होता है एक बार खरीदा गया फास्टैग स्टिकर 5 साल के लिए वैलिड होता है। यानी 5 साल बाद आपको स्टीकर बदलवाना या इसकी वैलिडिटी बढ़वानी पड़ती है।

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