वैसे तो हवाई जहाज का सफर दुनिया का सबसे तेज और सुरक्षित सफर माना जाता है, क्योंकि ट्रेन, बस या कार की बजाय हवाई जहाज बहुत कम प्रतिशत में दुर्घटना का शिकार होते हैं. लेकिन यह भी सच है कि अगर क्रैश हुआ तो फिर बचने वालों की संख्या भी न के बराबर होती है. लगभग सभी सवारियां अपनी जान गंवा बैठा हैं. अहमदाबाद में हाल ही में हुए हवाई जहाज क्रैश के बाद यात्रियों के मन में अब एक डर बैठ है. डर के साथ-साथ एक सवाल भी है कि आखिर ऐसा हवाई जहाज क्यों नहीं बनाया जाता, जिसमें क्रैश होने की स्थिति में जान जाने का जोखिम न हो.तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक तकनीक पर काम चल रहा है, जिसमें हवाई जहाज के क्रैश होने की स्थिति में किसी की भी जान नहीं जाएगी. कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट वायरल हुई, जिसमें दावा किया गया कि यूक्रेन की एक इंजीनियरिंग कंपनी ने एक खास डिटैचेबल केबिन सिस्टम (Detachable Cabin System) विकसित किया है. इस सिस्टम में विमान का यात्रियों वाला केबिन किसी भी खतरे के समय हवाई जहाज से अलग हो जाएगा और पैराशूट की मदद से धीरे-धीरे जमीन पर उतर जाएगा.
यह सुनने में थोड़ा फिल्मी लग सकता है, लेकिन इसके पीछे एक सीरियस आइडिया है. इस सिस्टम में विमान का यात्री वाला हिस्सा (जिसे केबिन कहा जाता है) एक तरह से अलग यूनिट के रूप में डिज़ाइन किया गया है. अगर उड़ान के दौरान कोई बड़ा खतरा पैदा होता है, जैसे इंजन बंद हो जाना, मिसाइल से हमला होना, या किसी तरह का तकनीकी फेलियर, तो यह केबिन मुख्य विमान (जहां इंजन और कॉकपिट होता है) से अलग हो जाएगा. अलग होते ही इसमें लगे बड़े-बड़े पैराशूट खुल जाएंगे, जो केबिन को धीरे-धीरे ज़मीन या पानी पर सुरक्षित लैंडिंग में मदद करेंगे.
क्या किसी विमान में लगा है ये सिस्टम?
इस तकनीक को अभी तक सिर्फ एक डिज़ाइन या विचार के रूप में पेश किया गया है. यानी यह फिलहाल सिर्फ कागज पर है और इसे किसी असली विमान में आज़माया नहीं गया है. जिस यूक्रेनी कंपनी द्वारा इसे बनाए जाने का दावा किया जा रहा है, उसका नाम भी अभी तक स्पष्ट नहीं है. इसके अलावा, इसे हकीकत में लाने के लिए कई तरह की बाधाएं भी हैं, जैसे अंतरराष्ट्रीय नियमों की मंजूरी, बहुत सारे परीक्षण, और सबसे बड़ी बात है इसकी लागत. बता दें कि दुनिया का हर विमान अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत बना होता है और कई तरह के परीक्षणों से गुजरा होता है.
कैसे काम करेगा ये सिस्टम
अब सवाल उठता है कि यह सिस्टम कैसे काम करता है? विमान में सेंसर लगे होंगे, जो यह पहचान सकते हैं कि कोई गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है या नहीं. जैसे ही खतरा महसूस होता है, सिस्टम अपने-आप एक्टिव हो जाता है. पायलट को भी समस्या का पता तो लग ही जाता है. ऐसे में वह भी इस सिस्टम को एक्टिवेट कर सकता है. इसके बाद केबिन मुख्य विमान से अलग हो जाएगा और उसके बड़े-बड़े पैराशूट खुल जाएंगे. ज़मीन पर उतरते समय यात्रियों को झटका न लगे, इसके लिए इस केबिन में शॉक एब्जॉर्बर या हवा से भर जाने वाले कुशन भी हो सकते हैं.
क्या हैं चुनौतियां?
यह सुनने में काफी अच्छा लग रहा है, और संभव है कि जल्द ही इस पर तेजी से काम भी शुरू हो सकता है. लेकिन यह तकनीक अपने आप में चुनौतीपूर्ण है. एक तो इतनी ऊंचाई और तेज रफ्तार पर उड़ते हुए विमान से किसी हिस्से को अलग करना काफी मुश्किल काम है. फिर, इसमें लगने वाला पैराशूट सिस्टम और अलग करने की तकनीक विमान का वजन बढ़ा देगी, जिससे उसका ईंधन ज्यादा खर्च होगा. इसके अलावा, इतनी भारी तकनीक जोड़ने से विमान की कीमत और उसकी मेंटेनेंस का खर्च भी बढ़ जाएगा. अंतरराष्ट्रीय उड्डयन संस्थाएं जैसे FAA और EASA किसी भी नई तकनीक को मंजूरी देने से पहले बेहद सख्ती से जांच करती हैं.
क्या इस खबर पर भरोसा करें?
बता दें कि इस तकनीक के आसपास इंटरनेट पर जो भी जानकारी मौजूद है, वह अभी तक सिर्फ एक सोशल मीडिया पोस्ट पर आधारित है और इसे किसी भरोसेमंद वैज्ञानिक संस्था, हवाई जहाज बनाने वाली कंपनी (जैसे Boeing या Airbus), या विमानन सुरक्षा संस्था द्वारा सत्यापित नहीं किया गया है. इसलिए जब तक और पक्की जानकारी नहीं आती, तब तक इसे केवल एक कॉन्सेप्ट ही माना जाना चाहिए.
वैसे उस पोस्ट में कहा गया है कि एक यूक्रेनी इंजीनियर व्लादिमीर तातारेंको (Vladimir Tatarenko) ने इस डिटैचेबल केबिन सिस्टम की अवधारणा पेश की है. तातारेंको ने लगभग तीन साल तक इस प्रोजेक्ट पर काम किया, और 2016 में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में उनका डिज़ाइन चर्चा में आया. यदि यूक्रेन की तीन बड़ी कंपनियों की बात करें तो उनमें Antonov, Motor Sich, और Kharkiv Aviation Institute शामिल हैं. खारकीव एविएशन इंस्टीट्यूट एक शैक्षणिक और शोध संस्थान है, जो विमानन तकनीकों पर काम करता है. हो सकता है कि इस तरह का प्रोटोटाइप उनके किसी प्रोजेक्ट का हिस्सा हो, लेकिन कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है.
पूरे विमान को नीचे ला सकता है पैराशूट
वैसे यह पहली बार नहीं है, जब हवाई जहाज को अधिक सुरक्षित बनाने के लिए इस तरह की अवधारणाएं सामने आई हैं. कुछ छोटे पर्सनल विमान (जैसे Cirrus SR22) में पूरे विमान के लिए एक पैराशूट सिस्टम लगा होता है. यह सिस्टम किसी भी आपात स्थिति में विमान को नीचे लाने में मदद करता है. पर यह बड़े विमानों जैसे बोइंग 747 या एयरबस A380 के लिए संभव नहीं है, क्योंकि उनका आकार और वजन बहुत ज्यादा होता है. इसी तरह, इजेक्शन सीट्स भी सिर्फ फाइटर प्लेन्स में काम आती हैं, ना कि आम यात्री विमानों में. कुछ विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि केबिन को मजबूत सामग्री से बनाया जाए, ताकि हादसे में ज्यादा नुक़सान न हो, लेकिन यह भी सौ प्रतिशत सुरक्षा की गारंटी नहीं देता.
क्या AI करेगा खतरा भांपने में मदद
भविष्य में विमानन क्षेत्र में कई तकनीकी सुधार आ सकते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI सिस्टम विमान की स्थिति पर नज़र रखकर संभावित खतरों का पहले से पता लगा सकते हैं. ऑटोनॉमस फ्लाइट सिस्टम, जो बिना पायलट के काम कर सकते हैं, मानवीय गलती की संभावना को कम कर सकते हैं. नई और मजबूत सामग्री जैसे ग्राफीन, विमान को और अधिक टिकाऊ बना सकती हैं. और सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सिस्टम उड़ान को और भी सटीक और सुरक्षित बना सकते हैं.
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