जैसे ही गर्मियों का मौसम दस्तक देता है, बाजारों में एयर कंडीशनर की मांग अचानक तेज हो जाती है. चिलचिलाती गर्मी से राहत पाने के लिए लोग एसी खरीदना शुरू कर देते हैं, ताकि दिन का चैन और रात की नींद दोनों बर्बाद न हो. लेकिन क्या आपको पता है कि आज भी देश की एक बड़ी आबादी ऐसी है जिसके घर में AC नहीं है?
भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते एसी बाजारों में गिना जाता है, लेकिन जब हकीकत की बात आती है तो चौंकाने वाला सच सामने आता है. देशभर में केवल 7 फीसदी घरों में ही एयर कंडीशनर की सुविधा है मतलब साफ है कि हर 100 में से केवल 7 घरों में एसी है, बाकी के 93 लोग अब भी पंखे या कूलर से ही गर्मी से जूझ रहे हैं.
कीमत बन रही है सबसे बड़ी रुकावट
एसी न होने की सबसे बड़ी वजह इसकी कीमत मानी जा सकती है. एक सामान्य एयर कंडीशनर की कीमत 35,000 से 50,000 रुपए तक होती है, जबकि एयर कूलर 6,000-10,000 रुपए में आराम से मिल जाता है. ऐसे में मध्यमवर्गीय परिवार अक्सर कूलर को ही बेहतर विकल्प मानते हैं।
कई लोग सोचते हैं कि जब कम पैसों में राहत मिल रही है तो फिर इतने पैसे एसी पर क्यों खर्च किए जाएं? कुछ लोग तो इस पैसे को बचाकर कहीं और निवेश करना ज्यादा समझदारी मानते हैं.
कम आमदनी में भी बढ़ रही है एसी की डिमांड
हालांकि, कुछ लोग सीमित आमदनी के बावजूद भी एसी खरीदना जरूरी समझते हैं. 30,000 रुपए महीना कमाने वाले लोग भी किस्तों में एसी खरीद लेते हैं. कंपनियां आजकल EMI और आसान फाइनेंसिंग ऑप्शन देकर इस फैसले को आसान बना रही हैं. यही वजह है कि धीरे-धीरे एसी की बिक्री में इजाफा हो रहा है.
हीट स्ट्रोक से मौतें, चिंता का विषय
गर्मी से जुड़ी एक और गंभीर सच्चाई ये भी है कि 2012 से 2021 के बीच करीब 11,000 लोगों की जान हीट स्ट्रोक की वजह से गई है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ स्टेटस सिंबल माने जाने वाले एसी को अब स्वास्थ्य की जरूरत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए?
कंपनियों के लिए चेतावनी और मौका
अगर एसी कंपनियां वाकई भारत के बड़े उपभोक्ता वर्ग तक पहुंच बनाना चाहती हैं तो उन्हें कीमत, बिजली खपत और किफायती मॉडल्स पर फोकस करना होगा. 7 फीसदी का आंकड़ा बताता है कि देश में एसी मार्केट की संभावनाएं तो बहुत हैं, लेकिन आम आदमी की जेब में फिट होने वाला विकल्प फिलहाल सीमित है.
भारत जैसे विशाल देश में जहां करोड़ों की आबादी है, वहां सिर्फ 7 फीसदी घरों में एसी होना एक तरह से आंखें खोलने वाला आंकड़ा है. ये दिखाता है कि गर्मी से राहत अभी भी एक लग्जरी बनी हुई है, जरूरत नहीं. लेकिन जैसे-जैसे लोगों की आमदनी बढ़ेगी और कंपनियां सस्ते ऑप्शन लाएंगी, उम्मीद है कि ये आंकड़ा आने वाले सालों में जरूर बदलेगा.
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