अक्सर ऐसा होता है कि हम मोबाइल चार्ज करने के बाद उसे तो हटा लेते हैं, लेकिन चार्जर सॉकेट में ही लगा रह जाता है और स्विच भी ऑन रहता है. सवाल ये उठता है कि जब फोन चार्ज नहीं हो रहा, तब भी क्या बिजली खर्च होती है? इसका जवाब है हां, थोड़ी-बहुत बिजली जरूर लगती है.
कैसे होती है बिजली की खपत?
जब चार्जर स्विच में लगा होता है और बटन ऑन रहता है, तो उसके अंदर मौजूद इलेक्ट्रॉनिक पार्ट जैसे ट्रांसफार्मर और छोटे-छोटे सर्किट चालू स्थिति में बने रहते हैं. भले ही कोई मोबाइल उससे जुड़ा न हो, लेकिन ये सिस्टम स्टैंडबाय मोड में थोड़ी ऊर्जा लेते रहते हैं ताकि जब भी फोन जोड़ा जाए, तुरंत चार्जिंग शुरू हो सके.
एक-दो नहीं, कई डिवाइस मिलकर कर देते हैं असर
मान लीजिए एक चार्जर दिनभर ऐसे ही प्लग में लगा है तो अकेले उसका असर भले ही बहुत बड़ा न हो, लेकिन अगर घर में कई ऐसे डिवाइस हैं जो बंद न होकर लगातार पावर से जुड़े रहते हैं (जैसे टीवी, कंप्यूटर, माइक्रोवेव, आदि), तो कुल मिलाकर बिजली की बर्बादी काफी बढ़ जाती है. इस तरह की बर्बादी को “वैंपायर पावर” भी कहा जाता है.
बिजली बिल और चार्जर की सेहत, दोनों पर असर
चार्जर को हर वक्त प्लग में लगाए रखने से न केवल बिजली का नुकसान होता है, बल्कि यह चार्जर की उम्र पर भी असर डालता है. लगातार एक्टिव रहने से उसके अंदर के पुर्जे धीमे-धीमे घिसने लगते हैं और चार्जर जल्दी खराब हो सकता है.
क्या करें?
अगर आप सच में बिजली की बचत करना चाहते हैं और चाहें कि आपका चार्जर भी लंबे समय तक सही काम करे, तो बेहतर होगा कि चार्जिंग पूरी होते ही:
1. फोन को चार्जर से हटाएं,
2. चार्जर को सॉकेट से निकालें या कम से कम स्विच ऑफ कर दें.
छोटा सा ये कदम आपके महीने के बिजली बिल में थोड़ा फर्क ला सकता है और पर्यावरण की भी थोड़ी मदद कर सकता है.
चार्जिंग के बाद फोन हटाना ही काफी नहीं है, अगर चार्जर सॉकेट में ही लगा रह गया और बटन ऑन रहा, तो बिजली की खपत चलती रहेगी भले ही बहुत कम मात्रा में हो. लेकिन अगर ये आदत हर दिन की बन जाए, तो धीरे-धीरे इसका असर साफ दिखने लगेगा.
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