बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के जान को खतरा! बाबा वेंगा की ये भविष्यवाणी पढ़ फोन छोड़ देंगे आप

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कभी सोचा है कि हमारी जेब में रखा फोन एक दिन हमारे जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएगा? जो चीज हमें दुनिया से जोड़ती है, वही अब धीरे-धीरे हमें दुनिया से काट रही है, और ये सिर्फ आज की बात नहीं है. सालों पहले एक महिला ने इस खतरे को देख लिया था. जिनका नाम था बाबा वेंगा.

बाबा वेंगा कोई आम महिला नहीं थीं. उनका दावा था कि वो भविष्य को देख सकती हैं. उन्होंने कई घटनाएं पहले ही बता दी थीं जो बाद में सच साबित हुईं. जैसे 9/11 का हमला, भूकंप, सुनामी और भी बहुत कुछ. लेकिन जो बात अब सबसे ज़्यादा डराने लगी है, वो है फोन और स्क्रीन से जुड़ी उनकी भविष्यवाणी.

फोन बना नया नशा!

बाबा वेंगा ने बहुत पहले कह दिया था कि एक समय ऐसा आएगा जब इंसान छोटे-छोटे डिब्बों (यानी फोन) में ही खो जाएगा, और आज बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सब मोबाइल स्क्रीन में डूबे रहते हैं. स्कूल जाने वाले बच्चे रात में सोने से पहले फोन देखे बिना नहीं सोते, और बुजुर्ग भी व्हाट्सऐप और यूट्यूब में घंटों बिताते हैं.

क्या आपने कभी गौर किया है कि परिवार में साथ बैठकर बात करने का वक्त कब आखिरी बार मिला था? शायद याद भी न हो. क्योंकि हर कोई अपनी-अपनी स्क्रीन में घुसा है.

बच्चों का बचपन छीना, बड़ों की नींद उड़ाई

भारत में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के लगभग 24 प्रतिशत बच्चे सोने से पहले स्मार्टफोन देखते हैं, और करीब 37 प्रतिशत बच्चे स्क्रीन टाइम ज्यादा होने की वजह से अपनी पढ़ाई या काम पर फोकस नहीं कर पाते. बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा, नींद पूरी नहीं हो रही, आंखें कमजोर हो रही हैं, और ये सब सिर्फ मोबाइल की वजह से. कई डॉक्टर तो अब इसे “डिजिटल बीमारी” कहने लगे हैं. 

वहीं बड़ों की बात करें तो, घंटों फोन स्क्रॉल करने से पीठ दर्द, आंखों की जलन और मानसिक तनाव जैसी परेशानियां तेजी से बढ़ रही हैं. ये सिर्फ एक आदत नहीं रही, अब ये एक लत बन चुकी है और ये लत बेहद खतरनाक है.

क्या हम तब जागेंगे जब बहुत देर हो जाएगी?

बाबा वेंगा की एक और भविष्यवाणी ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है, उन्होंने कहा था कि अगर समय रहते इंसान नहीं संभला, तो तकनीक उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन जाएगी. और आज जो हालात हैं, वो उनकी बात को सही साबित करते दिख रहे हैं.

अब फैसला आपको करना है कि क्या हम अभी से जागेंगे, अपने और अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करेंगे? या फिर उस दिन का इंतजार करेंगे जब शरीर और दिमाग दोनों जवाब दे देंगे?

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