दुनिया में जहां परमाणु हथियारों को लेकर खौफ और अविश्वास बना हुआ है, वहीं चीन ने एक ऐसी नई तकनीक विकसित की है जो इस दिशा में बड़ा बदलाव ला सकती है. चीन के वैज्ञानिकों ने एक AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) सिस्टम बनाया है जो असली और नकली परमाणु हथियारों में फर्क कर सकता है और वो भी बिना किसी गोपनीय जानकारी को उजागर किए.
इस तकनीक को लेकर दावा किया गया है कि यह दुनिया की पहली AI आधारित परमाणु हथियार जांच प्रणाली है, जो हथियार के डिज़ाइन को देखे बिना ही उसकी सच्चाई बता सकती है. यह तकनीक चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ एटॉमिक एनर्जी (CIAE) के वैज्ञानिकों ने तैयार की है और इसकी जानकारी हाल ही में South China Morning Post की एक रिपोर्ट में सामने आई है.
क्या है इस AI तकनीक की खासियत?
इस AI सिस्टम का नाम जितना जटिल है, उसका काम उतना ही क्रांतिकारी है. नाम है, “Verification Technical Scheme for Deep Learning Algorithm Based on Interactive Zero Knowledge Protocol”. आसान भाषा में कहें तो, यह तकनीक हथियार से निकलने वाले रेडिएशन (radiation) को पढ़कर यह पता लगाती है कि हथियार असली है या नहीं. इसमें हथियार के डिज़ाइन या गुप्त जानकारियों की कोई जरूरत नहीं होती.
इसके लिए वैज्ञानिकों ने एक 400 छेद वाली पॉलीथीन की दीवार बनाई है, जिसे हथियार और जांच मशीन के बीच रखा जाता है. ये दीवार रेडिएशन को तो पास होने देती है लेकिन हथियार की बनावट छिपाए रखती है. फिर AI सिस्टम इस डेटा को समझकर फैसला करता है.
कैसे हुई ट्रेनिंग?
वैज्ञानिकों ने इस AI को सिखाने के लिए Monte Carlo सिमुलेशन का इस्तेमाल किया. इसमें लाखों वर्चुअल परमाणु हथियार बनाए गए कि कुछ असली जैसे और कुछ नकली. AI ने इनका गहराई से अध्ययन किया और रेडिएशन पैटर्न के आधार पर पहचानना सीख लिया कि कौन सा असली है और कौन नकली.
क्यों है यह तकनीक जरूरी?
आज के दौर में जब अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के पास हजारों परमाणु हथियार हैं, तो इन पर नियंत्रण रखने और संख्या घटाने की बातचीत चलती रहती है. लेकिन समस्या ये होती है कि कोई भी देश अपनी हथियारों की गोपनीय जानकारी दूसरे को देना नहीं चाहता.
अभी जो सिस्टम इस्तेमाल होते हैं, उनमें भारी सुरक्षा इंतज़ाम और आपसी भरोसे की जरूरत होती है. जो अक्सर नहीं बन पाता. चीन की ये AI तकनीक इस भरोसे की कमी को पूरा कर सकती है. इससे हथियारों की जांच बिना किसी राज़ खोले की जा सकती है.
क्या हैं इसके सामने चुनौतियां?
वैज्ञानिकों को इस तकनीक को विकसित करने में तीन बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा:
AI को असली परमाणु डेटा से ट्रेन करना
यह भरोसा दिलाना कि AI सिस्टम से कोई गुप्त जानकारी बाहर नहीं जाएगी
अमेरिका जैसे देशों को इस पर विश्वास दिलाना, जो अब भी पुराने तरीके पसंद करते हैं
फिलहाल, इनमें से सिर्फ पहली चुनौती पर पूरा काम हुआ है. बाकी दो पर काम चल रहा है.
चीन का परमाणु इतिहास
इस तकनीक को बनाने वाला CIAE चीन की राष्ट्रीय परमाणु एजेंसी का हिस्सा है और देश के परमाणु कार्यक्रम का बड़ा केंद्र माना जाता है. यहीं के वैज्ञानिक यू मिन को ‘चीन के हाइड्रोजन बम का पिता’ कहा जाता है. अब यही संस्थान हथियार नियंत्रण के नए रास्ते खोल रहा है.
आगे का रास्ता
CIAE ने सुझाव दिया है कि इस तकनीक को जांच करने वाले और करवाने वाले देशों को मिलकर विकसित करना चाहिए. इसके बाद सिस्टम को सील कर दिया जाए ताकि कोई भी उसमें बदलाव न कर सके. इससे पारदर्शिता और भरोसा दोनों बना रहेगा.
चीन की ये AI तकनीक सिर्फ एक वैज्ञानिक खोज नहीं, बल्कि यह परमाणु हथियारों पर वैश्विक नियंत्रण के पूरे नजरिए को बदल सकती है. अगर इसे सही तरीके से अपनाया जाए, तो यह दुनिया को ज्यादा सुरक्षित और पारदर्शी बना सकती है बिना किसी देश की गुप्त जानकारी को खतरे में डाले.
AI और हथियारों का यह नया गठजोड़ अब हथियार नियंत्रण की बहस में एक बड़ा मोड़ ला सकता है.
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