कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। उनका कहना था कि आप चाहे तो कोई भी चुनावी वादा कर सकती है लेकिन इस तरह के फार्म भरवाकर लोगों का निजी संवदेनशील डेटा जमा करना किसी भी तरह से जायज नहीं है। इसी के साथ दिल्ली सरकार का एक विज्ञापन कई अखबारों में छपा, इस सार्वजनिक सूचना में कहा गया था कि ऐसी किसी भी योजना को लांच करना धोखाधड़ी है।
फ्रीबीज के राजनीतिक वादे बहुत समय से हम देखते रहे हैं। लेकिन सत्ता में बैठी पार्टियां चुनाव से पहले फ्रीबीज की घोषणाओं से जिस तरह राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश करने लगी हैं, उसे किसी भी तरह से नैतिक नहीं कहा जा सकता।
फ्रीबीज की ऐसी घोषणाएं इन्कम्बेंट पार्टी को एक अनफेयर एडवांटेज दे देती हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमने कुछ ही समय पहले महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में देखा था। महाराष्ट्र में सरकार ने महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये की रकम देने का फैसला कैबिनेट में किया था। चुनाव के ठीक पहले तीन महीने के पैसे महिलाओं के बैंक खाते में जमा करवा दिए। इस कदम का ही नतीजा था कि वहां कुछ ही महीने पहले लोकसभा चुनाव में जिस महायुति गंठबंधन को काफी बड़ी हार मिली थी, वही आसानी से विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही।
यह अलग बात है कि वहां जिस तरह की चुनावी प्रक्रिया अपनाई गई, उसे लेकर भी बहुत से संदेह हैं। इसके पहले हम ठीक ऐसा ही मध्य प्रदेश में भी देख चुके हैं जहां लाडली बहना योजना के जरिए बीजेपी ने चुनाव को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने की कोशिश की थी।
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