पिछला कार्यक्रम नोनिया और कुम्हार जातियों पर केन्द्रित था। इन आयोजनों का मकसद मुख्य रूप से बीजेपी सरकार द्वारा भारतीय संविधान पर किए जा रहे हमलों पर जनता का ध्यान आकर्षित करना है, लेकिन यह जातीय समूहों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का काम भी करते हैं।
उदाहरण के लिए, पिछले सम्मेलन में स्वतंत्रता आंदोलन के दो लगभग भुला दिए गए प्रतीकों- बुधु नोनिया और रामचंद्र विद्यार्थी को याद किया गया और समाज में उनके योगदान की खूब चर्चा हुई। आयोजकों में से एक मंजीत साहू ने कहा कि कांग्रेस का लक्ष्य अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) और दलितों को एकजुट करना है, जो राज्य की आबादी का लगभग 48 प्रतिशत हिस्सा हैं। साहू ने कहा, “बिहार में अब तक आयोजित तीनों संविधान सम्मेलन ओबीसी, ईबीसी और दलितों के उत्थान पर केन्द्रित रहे हैं। कांग्रेस सिर्फ सामाजिक न्याय की बात नहीं करती, वह इसका पालन भी करती है।”
दलित नेता राजेश राम की राज्य इकाई के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति को इसी पहल का हिस्सा माना जा रहा है। राज्य में कांग्रेस के सभी प्रमुख फ्रंटल संगठनों को नया रूप दिया जा चुका है और अब उनका नेतृत्व दलित और ओबीसी (खासकर यादव) समुदायों के नेताओं के हाथ में है।
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