आखिर क्या बला है डाउन सिंड्रोम, इसमें मरीज को होती हैं क्या-क्या दिक्कतें?

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World Down Syndrome: हर साल 21 मार्च को वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम मनाया जाता है. पूरी दुनिया में इस डिसऑर्डर को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए इस दिन को खास तरीके से 21 मार्च को मनाया जाता है. साल 2012 से यूनाइटेड नेशन के द्वारा इसे हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है.

जिन बच्चों का जन्म से ही त्वचा चपटी, नाक दबी हुई और छोटे-छोटे हाथ-पैर, उंगलियां नॉर्मल बच्चों के मुकाबले छोटी गर्दन होती है. उन्हें डाउन सिंड्रोम की समस्या होती है. इसके अलावा बच्चा जब धीरे-धीरे बड़ा होता है. तो उसे बोलने में परेशानी, जुबान लड़खड़ाने और शारीरिक विकास से लेकर कई सारी चीज को लेकर समस्याएं देखने को मिलती है. लेकिन आज इस बारे में विस्तार से बताएंगे कि बच्चों के साथ इस तरह की स्थितियां कब पैदा होती है? आइए जानें किन कारणों से बच्चों को इस तरह की समस्या से गुजरना पड़ता है.  इंडिया टूडे में छपी खबर के मुताबिक बच्चों में इस तरह की स्थितियां डाउन सिंड्रोम के कारण देखने को मिलती है. डाउन सिंड्रोम अपने आप में एक गंभीर समस्या है. 

डाउन सिंड्रोम क्या है और क्यों होता है?

डाउन सिंड्रोम अपने आप में एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. यह गंभीर स्थिति तब पैदा होती है. जब किसी व्यक्ति के शरीर में क्रोमोसोम की संख्या बढ़ती है. शरीर में क्रोमोसोम छोटे-छोटे जीन से मिलकर बने होते हैं. या यूं कहें कि जीन का एक पैकेज होता है. जब प्रेग्नेंसी के दौरान और बच्चे के बॉडी पार्ट किस तरह के बनेंगे यह पूरी तरह सेस क्रोमोसोम पर निर्भर करता है. 

सेंट्रल डिजीज कंट्रोल (CDC) के मुताबिक जब कोई बच्चा पैदा होता है उसमें 46 क्रोमोसोम होते हैं. जिसे वह अपने माता-पिता से मिलता है. इसमें से 23 वो अपने माता से और पिता से 23 प्राप्त करता है. लेकिन डाउन सिंड्रोम उनमें 46 में 21 क्रोमोसोम एक-एक अतिरिक्त कॉपी होती है. इस स्थिति को डाउन सिंड्रोम ट्राइसॉमी 21 कहते हैं.

डाउन सिंड्रोम क्या होता है

डाउन सिंड्रोम एक अनुवांशिक (Genetic) डिसऑर्डर है, जिसमें बच्चे के शरीर की सेल्स में एक्स्ट्रा क्रोमोसोम पाया जाता है. हर इंसान में 23 जोड़ी गुणसूत्र (Chromosomes) होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों में 21वें गुणसूत्र की एक एक्स्ट्रा कॉपी होती है. इसकी वजह से बच्चे के मेंटेल और फिजिकल ग्रोथ प्रभावित होती है.

किन गलतियों से बढ़ सकता है डाउन सिंड्रोम का खतरा

1. ज्यादा उम्र में प्रेगनेंसी

अगर महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा है, तो डाउन सिंड्रोम होने का खतरा ज्यादा होता है. उम्र बढ़ने के साथ एग्स की क्वालिटी कम होने लगती है, जिससे जेनेटिक डिसऑर्डर का जोखिम बढ़ जाता है.

2. पिता बनने की ज्यादा उम्र

सिर्फ मां की उम्र ही नहीं, बल्कि पिता की उम्र भी डाउन सिंड्रोम के खतरे को बढ़ा सकती है. शोध के मुताबिक, 40 साल से अधिक उम्र के पुरुषों के शुक्राणु (Sperm) में जेनेटिक म्यूटेशन की आशंका ज्यादा होती है, जिससे बच्चे में क्रोमोसोमल असामान्यता हो सकती है.

3. फैमिली हिस्ट्री की अनदेखी

अगर परिवार में पहले से डाउन सिंड्रोम के मामले रहे हैं, तो डॉक्टर से जेनेटिक काउंसलिंग करवानी चाहिए. कई बार अनुवांशिक कारणों से भी यह समस्या आ सकती है. ऐसे में लापरवाही से बचना चाहिए.

4. प्रेगनेंसी में अनहेल्दी लाइफस्टाइल

अगर प्रेगनेंसी के दौरान मां सही पोषण नहीं लेती या नुकसानदायक चीजों का सेवन करती है, तो फीटस यानी भ्रूण का विकास प्रभावित हो सकता है. इसकी वजह से जेनेटिक गड़बड़ी हो सकती है.

प्रेगनेंसी में शराब-सिगरेट पीना, जंक फूड और असंतुलित आहार, फोलिक एसिड और जरूरी पोषक तत्वों की कमी, इस बीमारी का कारण बन सकता है.

5. रेडिएशन और टॉक्सिन के संपर्क में आना

अगर गर्भावस्था के दौरान महिला रेडिएशन या हानिकारक केमिकल्स के संपर्क में आती है, तो इससे बच्चे की कोशिकाओं में जेनेटिक बदलाव हो सकते हैं. इसलिए प्रेगनेंसी में ज्यादा ऐसी जगहों पर जाने से बचना चाहिए.

6. प्रेगनेंसी से पहले हेल्थ चेकअप न कराना

अगर महिला किसी पुरानी बीमारी जैसे डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या थायरॉइड से पीड़ित है और उसका सही इलाज नहीं हो रहा है, तो इससे बच्चे में क्रोमोसोमल डिसऑर्डर का खतरा बढ़ सकता है.

डाउन सिंड्रोम से कैसे करें बचाव

प्रेगनेंसी की सबसे सही उम्र 25 से 30  साल मानी जाती है, इसी दौरान बेबी प्लान करें.

अगर फैमिली में पहले से कोई जेनेटिक बीमारी रही है तो पहले टेस्ट कराएं.

फोलिक एसिड और पोषण का ध्यान रखें. इसके लिए डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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धूम्रपान, शराब और नशे से बचें.

रेडिएशन और टॉक्सिन से बचें. पॉल्यूशन से दूर रहें.

ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर और हार्मोनल बैलेंस पर नजर रखें.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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