किसे नहीं है वेद पढ़ने का अधिकार ? स्वामी कैलाशानंद गिरी से जानें

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Swami Kailashananda giri, Vedas: वेद सनातन धर्म और विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है. वेद शब्द का सामान्य अर्थ ज्ञान है. वेद ब्रह्माजी के जरिए ऋषिओ को दिए गए ज्ञान का स्रोत हैं. वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुरानी और पहले लिखित दस्तावेज है,जिसमें धर्म, दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद, और संगीत जैसे विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है. इसमें मानव की हर समस्या का समाधान छिपा है.

महर्षि अत्रि कहते हैं की –नास्ति वेदात् परं शास्त्रम्।

अर्थात: वेद से बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है.

महर्षि याज्ञवल्क्य कहते हैं की – यज्ञानां तपसाञ्चैव शुभानां चैव कर्मणाम् । वेद एव द्विजातीनां निःश्रेयसकरः परः ।।

अर्थात: यज्ञ के विषय में, तप के संबंध में और शुभ-कर्मों के ज्ञानार्थ द्विजों के लिए वेद ही परम कल्याण का साधन है.

वेदों का महत्व

शपपथ ब्राह्मण के श्लोक के अनुसार अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया. प्राचीन काल से वेदों के अध्ययन और व्याख्या की परम्परा भारत में रही है. वेद अच्छे आचरण और व्यवहार के बारे में सिखाते हैं, जो हमें एक सभ्य और सुखी जीवन जीने में मदद करते हैं लेकिन वेद पढ़ने का अधिकार किसे है, कौन लोग वेद नहीं पढ़ सकते आइए जानते हैं स्वामी कैलाशानंद गिरी से –

किसे वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है ?

वेद हमारी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं, और उन्हें पढ़कर हम अपनी जड़ों से जुड़ सकते हैं लेकिन स्वामी कैलाशानंद गिरी के अनुसार जिसका उपनयन संस्कार न हुआ हो, जिसने दीक्षा नहीं ली हो वो वेद पढ़ने का अधिकारी नहीं है. उनके अनुसार गुरुकुल में आचार्य या वहां के सन्यासी बच्चों का उपनयन संस्कार कराते हैं, उन्हें रुद्राक्ष की माला या कंठी पहनाई जाती है, कान में गायत्री मंत्र बोला जाता है, इसके बाद ही उन्हें वेद पढ़े की अनुमति होती है.

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