Santoshi mata ki aarti: जजय संतोषी माता…जरूर करें शुक्रवार के दिन संतोषी माता की ये आरती

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Santoshi mata ki aarti: शुक्रवार का दिन संतोषी माता की पूजा-अर्चना के लिए अत्यंत पुण्यदायी और मंगलकारी माना जाता है.इस दिन माता संतोषी को संतोष, धैर्य,सरलता और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है.ऐसा विश्वास है कि जो श्रद्धालु श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत रखते हैं, ‘संतोषी माता व्रतकथा’का पाठ करते हैं और माता का ध्यान करते हैं,उन्हें जीवन में सुख,शांति,आर्थिक समृद्धि और पारिवारिक संतुलन की प्राप्ति होती है.यह दिन विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा सौभाग्य,संतान सुख और गृहकल्याण के लिए उपासना हेतु श्रेष्ठ माना जाता है. 

इस दिन की पूजा की एक विशिष्ट विधि होती है. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ या लाल या गुलाबी वस्त्र धारण करें. घर के पूजास्थल में माता संतोषी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. उन्हें गुड़ और चने का भोग अर्पित करें क्योंकि यह माता को अत्यंत प्रिय है. पूजा में दीपक जलाकर श्रद्धा से ‘संतोषी माता व्रत कथा’ पढ़ें या सुनें और माता से अपने जीवन में संतोष और शांति की प्रार्थना करें. 

पूजन के बाद माता की आरती करें और उपस्थित सभी भक्तों को गुड़-चना का प्रसाद वितरित करें.उपवास करने वालों को केवल गुड़-चना का सेवन करना चाहिए. इस दिन खट्टे पदार्थ जैसे दही, इमली, नींबू आदि का पूर्णतः त्याग करना चाहिए क्योंकि ऐसा करना माता को अप्रसन्न कर सकता है. मांसाहार,लहसुन-प्याज और तामसिक भोजन से भी बचाव करना चाहिए. माता की उपासना से चित्त में शांति, परिवार में संतुलन और जीवन में मानसिक व आर्थिक संतोष की वृद्धि होती है. 

संतोषी माता का व्रत सच्ची श्रद्धा,संयम और सेवा भाव से किया जाए तो जीवन के सभी दुखों का नाश होकर सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है. 

॥ जय सन्तोषी माता ॥

जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन की, सुख सम्पत्ति दाता॥ 

सुन्दर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो॥ 

गेरू लाल छटा छबि, बदन कमल सोहे।
मंद हंसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे॥ 

स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर दुरे प्यारे।
धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे॥ 

गुड़ अरु चना परम प्रिय, तामें संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो॥ 

शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।
भक्त मंडली छाई, कथा सुनत मोही॥ 

मंदिर जग मग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।
विनय करें हम सेवक, चरणन सिर नाई॥ 

भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारे, इच्छित फल दीजै॥ 

दुखी दारिद्री रोगी, संकट मुक्त किए।
बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए॥ 

ध्यान धरे जो तेरा, वांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो॥ 

चरण गहे की लज्जा, रखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे॥ 

संतोषी माता की आरती, जो कोई जन गावे।
रिद्धि सिद्धि सुख सम्पत्ति, जी भर के पावे॥ 

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