सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए सही उम्र कौन-सही? जान लें हर बात कहीं हो न जाए देर

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पहले पति, बच्चों और परिवार के बाकी लोगों की जिम्मेदारी उठाना भारतीय महिलाएं अपना कर्तव्य मानती हैं. इन्हीं सब के चक्कर में वे अपना ही ध्यान रखना भूल जाती हैं. छोटी-मोटी दिक्कतों को तो वे यूं ही नजरअंदाज कर देती हैं, जिसका नुकसान उन्हें बड़ी परेशानी से उठाना पड़ता है. दरअसल, इस लाइफस्टाइल के कारण महिलाएं अपनी हेल्थ को लेकर ज्यादा सीरियस नहीं होती हैं. ऐसा ट्रेंड उम्रदराज ही नहीं, बल्कि कम उम्र की महिलाओं और युवतियों में भी देखा जाता है. यही वजह है कि सर्वाइकल कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां धीरे-धीरे उन्हें अपना शिकार बना लेती हैं. आइए जानते हैं कि महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए सही उम्र कौन-सी होती है? इसके लिए कौन-सा टेस्ट बेस्ट है और इस पर कितना खर्च आता है?

एम्स दिल्ली के डॉक्टर ने कही यह बात
बता दें कि एम्स दिल्ली में हाल ही में कैंसर के मसले पर एक वर्कशॉप आयोजित की गई. इसमें एम्स के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक शंकर ने बताया कि अगर आपकी उम्र 30 साल या उससे ज्यादा है तो सर्वाइकल कैंसर की बार-बार स्क्रीनिंग कराने की जरूरत नहीं है. अब एचपीवी डीएनए टेस्ट के रूप में ऐसा ऑप्शन मिल चुका है, जिससे पांच साल में कैंसर के आने वाले खतरे की जानकारी मिल जाती है. उन्होंने बताया कि एचपीवी डीएनए टेस्ट न सिर्फ कैंसर की शुरुआती स्टेज की पहचान करता है, बल्कि यह वायरस के इंफेक्शन को भी पकड़ लेता है. 

कैसे होता है यह टेस्ट?
डॉ. शंकर के मुताबिक, एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमावायरस) डीएनए टेस्ट 95 पर्सेंट तक सटीक रिजल्ट देता है और यह पैप स्मीयर टेस्ट के मुकाबले ज्यादा कारगर है. इस टेस्ट में महिलाओं के सर्विक्स यानी गर्भाशय ग्रीवा से सैंपल लिया जाता है. कुछ ही मिनटों में डॉक्टरों को यह पता चल जाता है कि महिला के शरीर में एचपीवी वायरस का डीएनए मौजूद है या नहीं. उन्होंने बताया कि यह टेस्ट एम्स में कराया जा सकता है. खास बात यह है कि इस टेस्ट के लिए सैंपल भी महिलाएं खुद दे सकती हैं. 

भारत में क्या है सर्वाइकल कैंसर का हाल?

एम्स के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड डॉ. सुमन भास्कर के मुताबिक, भारत में सर्वाइकल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. हर साल 75 हजार से ज्यादा महिलाओं की मौत सर्वाइकल कैंसर की वजह से होती है. वहीं, 70 से 80 फीसदी केस उस वक्त सामने आते हैं, जब बीमारी अपने आखिरी स्टेज में पहुंच चुकी होती है. अगर शुरुआत में ही बीमारी का पता लग जाए तो इलाज काफी आसान है. सिर्फ सर्जरी या रेडिएशन से इस बीमारी से बचा जा सकता है. 

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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