Ramadan 2025: रमजान के पवित्र महीने की शुरुआत होते ही दुनियाभर के मुसलमान रोजा रखते हैं. इस दौरान रमजान के पूरे महीने प्रतिदिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बीच रोजा यानी उपवास रखा जाता है. रमजान में रोजा रखना किसी तरह के कॉन्सेप्ट या इतिहास से नहीं जुड़ा है बल्कि यह अल्लाह का हुक्म है. रमजान में रोजा रखना हर मुसलमान पर फर्ज है.
इस्लामिक मान्यता अनुसार, रोजा रखना सिर्फ भूखा रहना मात्र नहीं होता, बल्कि यह ऐसी अवधि होती है जिसमें इंसान रोजा रखते हुए हर काम को करता है और बुराईयों से दूर रहता है. रोजेदारों ने नेकी और इबादत के इस महीने का तीसरा रोजा आज मंगलवार को रखा है. आइए जानते हैं आखिर तीसरे रोजे का क्या महत्व है.
तीसरे रोजे का महत्व
तीसरे रोजे का अर्थ कि, अगर राह सीधी हो तो मंजिल तक पहुंचना आसान हो जाता है. रोजा भी ठीक इसी तरह है. मजहबे इस्माल में तीसरे रोजे को रहमत और राहत का राहबर कहा गया है. यहां रहमत का अर्थ अल्लाह की मेहरबामी, राहत का अर्थ सुकून और राहबर का अर्थ पथ-प्रदर्शक से है. रोजा नेकी के रास्ते पर चलने में मददगार साबित होता है, क्योंकि रोजा बुराईयों पर लगाम लगाता है.
इस्लाम के धार्मिक किताब कुरआन-ए-पाक के पहले पारे ‘अलिफ लाम मीम’ की सूरत ‘अलबकरह’ की आयत संख्या 213 में जिक्र मिलता है कि, ‘वल्लाहु यहदी मय्यंशाउ इला सिरातिम मुस्तकीम।’ इसका तर्जुमा (अर्थ) है कि ‘और अल्लाह जिसे चाहे सीधी राह दिखाए’. रोजा रखकर जब इंसान बुरे कामों से दूर रहता है और अपनी इंद्रियों पर काबू रखता है तो वह सीधी राह पर चलने लगता है. इसलिए कहा जाता है कि रोजा रहमत और राहत का राहबर है. नेकीयत के साथ रखा गया रोजा सच्चे और अच्छे मुसलमान की पहचान है.
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