Puja Path Niyam: पंचामृत और चरणामृत में क्या अंतर है, क्या है बनाने की विधि, जानिएं पंडित जी से

Must Read

Puja Path Niyam: किसी भी देवी-देवता रूप की पूजा-वंदना आदि करें, दीप पंचामृत या चरणामृत अर्पण कर प्रसाद के साथ उसे भी बांटे, प्रसाद को ग्रहण करने में भले ही कुछ देरी हो जाए पर पंचामृत हो या चरणामृत इसे ग्रहण करने में तनिक भी विलंब नहीं किया जाता है. क्योंकि ये दोनों ही बहुत विशेष और महत्वपूर्ण है. पंचामृत और चरणामृत के लाभ उपलब्धि कारक है.

चाहे घर के बाहर कहीं भी देवी- देव का मंदिर हो या घर में पूजा का स्थान, धूप-दीप, भगवती आदि सभी जगह होना आवश्यक है. तो पंचामृत या चरणामृत भी तैयार रखा जाता है. सबकी अपनी विशेषताएं हैं, पर सबमें पंचामृत तथा चरणामृत को तैयार करने, उसे सम्मान-श्रद्धापूर्व अर्पण के बाद ग्रहण करने के कितने लाभ है, इसका कितना महत्व है? इसे बनाने की प्रक्रिया क्या है? यह जानकर आश्चर्य ही होगा! चरणामृत का अर्थ होता है! भगवान के चरणों का अमृत तथा पंचामृत का अर्थ पांच अमृत यानि पांच पवित्र वस्तुओं से बना. दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है, वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है. चरणामृत के बारे में शास्त्रों में कहा गया है

अकाल मृत्युहरणंसर्व  व्याधि विनाशनम्। विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म  विद्यते ।। 
यानी-भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला है. यह औषधि के समान है. जो चरणामृत का सेवन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है.

कैसे बनता चरणामृत?- तांबे के बर्तन में चरणामृत रूपी जल रखने से उसमें तांबे के औषधीय गुण आ जाते हैं. चरणामृत में तुलसी पता, तिल, दूसरे औषधीय तत्व मिले होते हैं. मंदिर या घर में हमेशा तांबे के लोटे में तुलसी मिला जल रखा ही रहता है.

चरणामृत लेने के नियम चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए . इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है. चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए तथा श्रद्धा भक्ति पूर्वक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए. इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है.

चरणामृत का लाभआयुर्वेद की दृष्टि से चरणामृत स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है. आयुर्वेद के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है. यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है. तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं. इसका जल मस्तिष्क को शांति, निश्चिंतता प्रदान करता है. स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाने भी कारगर होता है.

पंचामृत का अर्थ क्या है

पंचामृत का अर्थ ‘पांच अमृत‘. दूध, दही, घी, शहद, शक्कर को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है. इसी से भगवान का अभिषेक किया जाता है. पांच प्रकार के मिश्रण से बनने वाला पंचामृत कई रोगों में लाभदायक तथा मन को शांति प्रदान करने वाला होता है. इसका एक आध्यात्मिक पहलू भी है. वह यह कि पंचामृत आत्मोन्नति के 5 प्रतीक हैं.

  • दूधशुभ्रता का प्रतीक है, अर्थात हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए.
  • दहीचढ़ाने का अर्थ यही है कि पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं तथा दूसरों को भी अपने जैसा बनाएं.
  • घीस्निग्धता, स्नेह का प्रतीक है. सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हो, यही भावना है.
  • शहदशक्तिशाली होता है. निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन तथा मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है.
  • शक्करचढ़ाने का अर्थ है जीवन में मिठास घोलें. मीठा बोलना सभी को अच्छा लगता है, इससे मधुर व्यवहार बनता है. उपरोक्त गुणों से हमारे जीवन में सफलता हमारे कदम चूमती है.

पंचामृत के लाभ- पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट तथा रोगमुक्त रहता है. पंचामृत उसी मात्रा में सेवन करना चाहिए, जिस मात्रा में किया जाता है. उससे ज्यादा नहीं.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यताजानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

lifestyle, hindi lifestyle news, hindi news, hindi news today, latest hindi news, hindi news, hindi news today,

English News

- Advertisement -

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -

Latest Article

- Advertisement -